भगवान वक्रतुंड के अवतार की कथा
देवराज इंद्र के प्रमाद से मत्सर नामक असुर का जन्म हुआ ।उसने दैत्य गुरु शुक्राचार्य से शिव पंचाक्षरी मंत्र (ओम नमः शिवाय) की दीक्षा ली । और भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए घोर तप किया ।आशुतोष शंकर ने उसे भगवती पार्वती सहित प्रकट होकर दर्शन दिए और इच्छित वर मांगने को कहा । असुर ने अपने मनोनुकूल वर प्राप्त कर लिए तथा प्रसन्न कामारि ने उसे एक वर और दे दिया - ''तुम्हें किसी से भय नहीं रहेगा। इस प्रकार पार्वती वल्लभ से वर प्राप्त कर मत्सर अपने निवास पर आया और शुक्राचार्य ने उसे सभी दैत्यों के राजा के रूप में अभिषिक्त किया। दैत्यों ने वर प्राप्त अपने अधिपति मत्सर से निवेदन किया कि अब आप निःसंकोच विश्व विजय करें क्योंकि वर के प्रभाव से आपको कोई भयभीत नहीं कर सकता । अपने अनुचरों की इस सलाह को मानकर मत्शरासुर ने विश्व - विजय करने का निश्चय किया और अपनी विशाल सेना लेकर पृथ्वी वासी नरेशों पर आक्रमण कर दिया । पृथ्वी के नरपति उस पराक्रमी दैत्य की सेना के सम्मुख अपने को असहाय जानकर कुछ तो अपने प्राण बचा रणभूमि से भाग निकले ,कुछ ने उससे रण में लोहा लेन