रश्मिरथी प्रथम एवं द्वितीय सर्ग
कथावस्तु रश्मिरथी का अर्थ होता है वह व्यक्ति, जिसका रथ रश्मि अर्थात सूर्य की किरणों का हो। इस काव्य में रश्मिरथी नाम कर्ण का है क्योंकि उसका चरित्र सूर्य के समान प्रकाशमान है कर्ण महाभारत महाकाव्य का अत्यन्त यशस्वी पात्र है। उसका जन्म पाण्डवों की माता कुन्ती के गर्भ से उस समय हुआ जब कुन्ती अविवाहिता थीं, अतएव, कुन्ती ने लोकलज्जा से बचने के लिए, अपने नवजात शिशु को एक मंजूषा में बन्द करके नदी में बहा दिया। वह मंजूषा अधिरथ नाम के सुत को मिली। अधिरथ के कोई सन्तान नहीं थी। इसलिए, उन्होंने इस बच्चे को अपना पुत्र मान लिया। उनकी धर्मपत्नी का नाम राधा था। राधा से पालित होने के कारण ही कर्ण का एक नाम राधेय भी है। कौरव-पाण्डव का वंश परिचय यह है कि दोनों महाराज शान्तनु के कुल में उत्पन्न हुए। शान्तनु से कई पीढ़ी ऊपर महाराज कुरु हुए थे। इसलिए, कौरव-पाण्डव दोनों कुरुवंशी कहलाते हैं। शान्तनु का विवाह गंगाजी से हुआ था, जिनसे कुमार देवव्रत उत्पन्न हुए। यही देवव्रत भीष्म कहलाये, क्योंकि चढ़ती जवानी में ही इन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की भीष्म अथवा भयानक प्रतिज्ञा की थी। महाराज शान्तनु न