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Showing posts from May 8, 2022

हनुमान चालीसा में है ये पांच चमत्कारी चौपाई, जिनको पढ़ने से होती है हर इच्छा पूरी

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हनुमान चालीसा में है ये पांच चमत्कारी चौपाई, जिनको पढ़ने से होती है हर इच्छा पूरी  हनुमान चालीसा को महान कवि तुलसीदास जी ने लिखा था। वह भी भगवान राम के बड़े भक्त थे और हनुमान जी को बहुत मानते थे। इसमें 40 छंद होते हैं जिसके कारण इसको चालीसा कहा जाता है। यदि कोई भी इसका पाठ करता है हनुमान चालीसा का पाठ करना सभी के लिए बहुत लाभदायी होता है। इसका संबंध सिर्फ आपकी आस्था और धर्म से नहीं बल्कि आपकी शारीरिक और मानसिक समस्याओं को खत्म करने में भी यह बेहद प्रभावशाली है।  तो उसे चालीसा पाठ बोला जाता है। हनुमान चालीसा पाठ में बालाजी महाराज के गुणों का व्याख्यान करके उनके बड़े बड़े कार्यो को बताया गया है | हनुमानजी के चरित्र का बड़ा ही सुन्दर दर्शन इन चालीसा चौपाइयों के माध्यम से होता है | यह इतना शक्तिशाली पाठ है की मन से पाठ करने वाले भक्त के चारो तरफ के कृपा का चक्र बन जाता है और फिर नकारात्मक शक्तियाँ उसे छू भी नही पाती | जो भी व्यक्ति इसका मंगलवार , शनिवार या हर दिन पाठ करते है उन्हें हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और इनके पाठ करने वाले को कई चमत्कारी लाभ प्राप्त होते है | हनु

मां जगदंबा ने बचाई इंद्र की पत्नी शची की लाज

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मां जगदंबा ने बचाई इंद्र की पत्नी शची की लाज देवराज इंद्र की पत्नी शची बुरी तरह भयभीत थीं. देवताओं और मुनियों ने उनसे आ कर कहा था कि नहुष उनको पाने की इच्छा रखता है. वह कहता है अब जब सब लोगों ने मुझे इंद्र बना ही दिया है तो इंद्राणी को मेरी सेवा के लिये भेजो. उसने हमें इसी आदेश से भेजा है. शची ने भाग कर गुरु वृहस्पति की शरण ली और पूछा कि अब क्या करूं. वृहस्पति ने कहा चिंता मत करो, मैं तुम्हें उस नीच नहुष के हाथों में न जाने दूंगा. नहुष देवताओं का राजा बन बैठा है और इंद्र का पता ही नहीं चल पा रहा है कहां पर हैं. ऐसे में बस मां जगदंबा ही तुम्हारी रक्षा कर सकती हैं. शची ने पूछा उसके लिये क्या करना होगा. इस पर गुरु वृहस्पति ने कहा, मां आदिशक्ति की कठिन तपस्या कर उन्हें प्रसन्न करना होगा. इसमें समय लग सकता है. सबसे पहले कुछ ऐसी चाल चलनी पड़ेगी कि नहुष के पास जाने में थोड़ा वक्त लगे. इस दौरान तुम मां जगदंबा को प्रसन्न करने का प्रयास कर सकती हो. गुरु वृहस्पति की चाल के अनुसार शची देवताओं के साथ नहुष के पास गयीं. नहुष से बोली कि मैं आपकी सेवा को तैयार हूं. नहुष बहुत खुश हुआ. इंद्राणी

सुंदरकांड-चमत्कारिक प्रभाव देने वाला काव्य

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🙏 साभार अग्रेषित 🙏 सुंदरकांड- चमत्कारिक प्रभाव देने वाला काव्य  सुंदरकांड को समझ कर उसका पाठ करें तो हमें और भी आनंद आएगा। सुंदरकांड में 1 से 26 तक जो दोहे हैं, उनमें शिवजी का अवगाहन है, शिवजी का गायन है, वो शिव कांची है। क्योंकि शिव आधार हैं, अर्थात कल्याण। जहां तक आधार का सवाल है, तो पहले हमें अपने शरीर को स्वस्थ बनाना चाहिए, शरीर स्वस्थ होगा तभी हमारे सभी काम हो पाएंगे। किसी भी काम को करने के लिए अगर शरीर स्वस्थ है तभी हम कुछ कर पाएंगे, या कुछ कर सकते हैं। सुंदरकांड की एक से लेकर 26 चौपाइयों में तुलसी बाबा ने कुछ ऐसे गुप्त मंत्र हमारे लिए रखे हैं जो प्रकट में तो हनुमान जी का ही चरित्र है लेकिन अप्रकट में जो चरित्र है वह हमारे शरीर में चलता है। हमारे शरीर में 72000 नाड़ियां हैं उनमें से भी तीन सबसे महत्वपूर्ण हैं। जैसे ही हम सुंदरकांड प्रारंभ करते हैं- ॐ श्री परमात्मने नमः, तभी से हमारी नाड़ियों का शुद्धिकरण प्रारंभ हो जाता है। सुंदरकांड में एक से लेकर 26 दोहे तक में ऐसी ताकत है, ऐसी शक्ति है... जिसका बखान करना ही इस पृथ्वी के मनुष्यों के बस की बात नहीं है। इन दोहों में

काशी तो काशी है, काशी अविनाशी है!!!!!!

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काशी तो काशी है, काशी अविनाशी है!!!!!! पंचकोशी काशी का अविमुक्त क्षेत्र ज्योतिर्लिंग स्वरूप स्वयं भगवान विश्वनाथ हैं । ब्रह्माजी ने भगवान की आज्ञा से ब्रह्माण्ड की रचना की । तब दयालु शिव जी ने विचार किया कि कर्म-बंधन में बंधे हुए प्राणी मुझे किस प्रकार प्राप्त करेंगे ? इसलिए शिव जी ने काशी को ब्रह्माण्ड से पृथक् रखा और भगवान विश्वनाथ ने समस्त लोकों के कल्याण के लिए काशीपुरी में निवास किया । काशी को स्वयं भगवान शिव ने 'अविनाशी' और 'अविमुक्त क्षेत्र' कहा है । ज्योतिर्लिंग विश्वनाथ स्वरूप होने के कारण प्रलयकाल में भी काशी नष्ट नहीं होती है; क्योंकि प्रलय के समय जैसे-जैसे एकार्णव का जल बढ़ता है, वैसे-वैसे इस क्षेत्र को भगवान शंकर अपने त्रिशूल पर उठाते जाते हैं । स्कंद पुराण के अनुसार काशी नगरी का स्वरूप सतयुग में त्रिशूल के आकार का, त्रेता में चक्र के आकार का, द्वापर में रथ के आकार का तथा कलियुग में शंख के आकार का होता है । संसार की सबसे प्राचीन नगरी है काशी!!!!!! काशी को संसार की सबसे प्राचीन नगरी कहा जाता है; क्योंकि वेदों में भी इसका कई जगह उल्लेख है । पौराणि

विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण!!!!!!!!

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विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण!!!!!!!! भगवान ने सृष्टि रचना के साथ ही मनुष्य के मन, बुद्धि व हृदय के भीतर भगवन्भावना को बनाए रखने के लिए उसकी जिह्वा पर अपने-आप ही भगवन्नाम को प्रकट किया है ।  जब प्राणी पर विपत्ति आती है, दु:ख पड़ता है या अमंगल आता हुआ दिखाई देता है तो स्वत: ही मुख से ‘हे राम !’ या ‘हाय राम !’ की करुण ध्वनि निकल जाती है; आत्मा अनायास ही उस मंगलकर्ता भगवान के पावन मधुर नाम को पुकार उठती है। भगवान मनुष्य के चित्त को सदा आकर्षित करते हैं और वह सदा अंत:करण से भगवान को चाहता है । अत: भगवान का नाम उसकी रसना में अपने-आप स्फुरित होता है । यह भगवान की अहैतुकी कृपा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है । नाम में भगवान ने अपनी समस्त शक्ति और प्रकाश रख दिया है जिससे मनुष्य निर्भय होकर इस संसार की यात्रा कर सकता है । विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण!!!!!! विभिन्न रुचि, प्रकृति और संस्कारों के मनुष्यों के लिए भगवान ने स्वयं को अनेक नामों से व्यक्त किया है—ब्रह्म, परमात्मा, भगवान, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, नारायण, हरि, दुर्गा, काली, त