अहंकार का #दुष्प्रभाव,राजा #नहुष के पतन की #कथा!
# अहंकार का #दुष्प्रभाव,राजा #नहुष के पतन की #कथा!!!!!!!! अमरावती चिन्ता में डूबी थी। सभी राग-रंग अवसाद में बदल गए थे। इन्द्र कहाँ हैं? देवगण एवं महर्षियों को यह प्रश्न उलझन में डाले था। इन्द्र के न होने से पृथ्वी वनस्पति से रहित होने लगी थी, सदा जल से भरे रहने वाले सरोवर सूख गए थे। सारी प्रकृति आक्रान्त हो उठी थी, समूची पृथ्वी में अराजक उपद्रव छा गए थे। इन्द्र के अभाव में इनका निवारण कौन करे। पर इन्द्र तो कहीं दिखते ही न थे। वे त्रिशिरा एवं नमुचि की हत्या के कलंक से विक्षुब्ध होकर कहीं पलायन कर गए थे। देवगणों ने उन्हें ढूंढ़ने की बहुतेरी कोशिश की, पर सफलता हाथ न लगी। देवों का जीवन इन्द्र के अभाव में अस्त-व्यस्त होने लगा। देवराज का पद खाली नहीं रखा जा सकता। इस सत्य से सभी सहमत थे, पर देवराज के पद पर किसी एक नाम पर सहमति नहीं हो पा रही थी। ‘क्यों न पृथ्वी लोक के चक्रवर्ती सम्राट राजर्षि नहुष को देवराज के पद पर अभिषित किया जाय? एक ऋषि ने अपना सुझाव दिया।’ ‘वही जो परम प्रतापी नरेश होने के साथ मंत्रदृष्टा भी हैं। जिन्होंने अनेक सूक्तों की रचना की है। जो पृथ्वी के सबसे शक्तिवान