पद्मा पुराण सेभगवान गणेश का प्राकट्य कथा ः


अलग-अलग पुराणों में देखने से भी गणपत के प्राकत्य की कथाओं में समानता नहीं पाई जाती। नीचे हम पद्म पुराण से  गज बदन के प्राकट्य की कथा लिख रहे हैं ताकि विनायक भक्त इन्हें पढ़कर ज्ञान अर्जन कर सकें और अपने उपास्य देव की लीलाओं का परिचय प्राप्त कर सकें ।
                         । पद्म पुराण से।
          पद्म पुराण के  सृष्टि खंड में श्री गणेश के प्राकत्य की मधुर- मनोहर एवं मंगलमय कथा इस प्रकार वर्णित है कि जब हिमगिरि नंदिनी पार्वती का पाणिग्रहण करने के पश्चात भगवान शंकर रमणीय उद्यानों और एकांत बनो में उनके साथ बिहार करने लगे परमानंद प्रदायिनी भवानी के प्रति शुद्ध आत्मा शिव के ह्रदय में अत्यधिक प्रेम था एक बार की बात है शंकर अर्धांगिनी पार्वती ने सुगंधित तेल और चुर्ण से अपने शरीर में उबटन लगवाया । उस बदन से गिरे उबटन से उन्होंने क़ीड़ा वश  एक पुरुष आकृति का निर्माण किया जिसका मुख्य गज के समान था ।
        जल क्रीड़ा करते समय माता पार्वती ने उस गजमुख  को पुण्य सलिला गंगा जी के जल में डाल दिया ।त्रिलोक के तारने वाली मां गंगा जी पार्वती जी को अपनी सहेली मानती थी। उनके पुण्य में जल में पडते ही वह खिलौना विशाल आकृति मे बदल गया।  माता पार्वती ने उसे पुत्र कह कर पुकारा और माता गंगा ने भी उसे पुत्र कहा। देव समुदाय ने उसे गांगेय कहकर सम्मान दिया। कालोद्भव ब्रह्मा ने उन्हें गणों का आधिपत्य प्रदान किया। इस प्रकार गज बदन देवताओं के द्वारा पूजित हुए।

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