श्री गणेश चालीसा

 गणेश :  प्रथम पूज्य की इस आराधना का महत्व, पाठ की विधि और नियम जानें-:
श्री गणेश की आराधना करने से घर में खुशहाली, व्यापार में बरकत और हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है ।

            सनातन धर्म में भगवान श्री गणेश प्रथम पूजनीय माने जाते हैं। किसी भी मांगलिक और शुभ कार्य को शुरू करने से पहले विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश की आराधना और उनके प्रतीक चिन्हों की पूजा करने विधान है, जिससे सारे कार्य सूख पूर्वक संपन्न हो जाये और उसमें सफलता मिल सके। 

        गणेश जी को सबसे पहले पूजने का वरदान भगवान शिव द्वारा प्राप्त है। वहीं श्री गणेश को ग्रहों में बुद्ध का अधिपति माने जाने के साथ ही, सप्ताह में बुधवार के दिन के कारक देव भी माना जाता हैं। 

         सच्चे मन से श्री गणेश की आराधना करने से घर में खुशहाली, व्यापार में बरकत और  हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। भगवान गणेश मंगलकारी और बुद्धि दाता हैं, जिनकी सवारी मूषक यानि चूहा और प्रिय भोग मोदक (लड्डू) है। भगवान गणेश का हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहा जाता है। 

            गणेश जी के कई अन्य नाम भी हैं, जैसे शिवपुत्र, गौरी नंदन आदि। पंडित शर्मा के अनुसार आमतौर पर देखने मे आता है कि ज्यादातर लोग कभी भी श्री गणेश चालीसा का पाठ कर लेते हैं, लेकिन शायद वो ये नहीं जानते कि इसके भी कुछ विशेष नियम बताए गए हैं, जिनको पूरा करने से ही श्री गणेश जल्द प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। 

       ऐसे में आज हम आपको श्री गणेश चालीसा का महत्व, इसे पढ़ने की सही विधि और इसे पढ़ने से होने वाले लाभों के बारे में बताने जा रहे हैं, ताकि आप भी प्रतिदिन पूजा में गणेश चालीसा का पाठ करके जीवन में सुख-संपन्नता ला सकें। 

             ।श्री गणेश चालीसा का महत्व ।

       लोग अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिए उनके पसंद की वस्तुओं का प्रयोग पूजा में करते हैं, ताकि भगवान जल्द खुश हो कर उनकी मुराद पूरी करें। ऐसे में भगवान गणेश को घी, मोदक, दूर्वा आदि बेहद पसंद है। 

          इन सबके अलावा एक और भी चीज़ है जिससे आप गणपति को आसानी से प्रसन्न कर सकते हैं, और वो है श्री गणेश चालीसा। किसी भी पूजा में सबसे पहले गणपति का आह्वान करना बेहद जरूरी होता है, नहीं तो पूजा अधूरी मानी जाती है। गणपति का आह्वान करने का सबसे सही माध्यम श्री गणेश चालीसा को माना जाता है। 

         सच्चे मन से गणेश चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन से दुःख दूर होता है, और उसकी सभी मुरादें पूरी होती हैं। गणेश जी की पूजा करने से घर-परिवार पर आ रही सभी परेशानियां समाप्त हो जाती हैं। भगवान श्री गणेश रिद्धि और सिद्धि के दाता है, इनकी कृपा से भक्तों के जीवन में शुभ समय का आगमन होता है। मान्यता के अनुसार नियमित रूप से 'गणेश चालिसा' का पाठ करने वाले भक्तों को जीवन भर किसी भी चीज़ की कमी नहीं होती है, और घर-परिवार में सदैव सुख-शांति बनी रहती है। 

    गणेश चालीसा का पाठ की उचित विधि-: 

धर्म के जानकारों के मुताबिक प्रतिदिन नित-नियम से गणपति की पूजा करने वाले भक्तों के जीवन से दुख की छाया दूर हो जाती है। श्री गणेश चालीसा का पाठ सही विधि से करने से गणपति जल्द प्रसन्न होते हैं, और व्यक्ति को मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। ऐसे समझें श्री गणेश चालीसा का पाठ करने की सही विधि... 

: हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार गणपति की आराधना करने के लिए प्रातःकाल उठे। 

: नित्य क्रिया से निर्वृत हो कर स्नान आदि करें। 

: स्नान के बाद सबसे पहले साफ वस्त्र धारण करें। 

: अब पूजा स्थल पर भगवान गणेश की तस्वीर या मूर्ति को साफ़ करें। 

: घी, धुप, दीप, पुष्प, मोदक, रौली, मोली, लाल चंदन और दूर्वा आदि से गणपति की पूजा करें। 

: इसके बाद श्री गणेश की आरती करें। 

: पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर के आसान पर बैठ जाएं। 

: अब सच्चे मन से श्री गणेश चालीसा का पाठ करे। 

गणेश चालीसा पाठ के दौरान ज़रूर बरतें ये सावधानियां... 

: श्री गणेश चालीसा का पाठ हमेशा साफ़ सुथरे और धुले वस्त्रों में ही करें। 

: चालीसा जाप के समय प्रसाद के रूप में बूंदी के लड्डू और मोदक ही चढ़ाएं। 

: गणेश चालीसा का पाठ करने के दौरान किसी तरह के बुरे ख्याल मन में ना आने दें। 

: पाठ करते समय हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख रखें। 

: गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान भी अवश्य करें। 

: पाठ के समय गणपति की मूर्ति पर दूर्वा चढ़ाना ना भूलें। 

: श्री गणेश चालीसा का जाप शुरू करने से पहले गणेश जी के समक्ष घी का दीया जलाना ना भूलें। 

सर्वप्रथम पूजनीय हैं गणपति, जानें क्यों? 

       अधिकांश लोग किसी भी कार्य का शुभारंभ करते समय सबसे पहले "श्रीगणेशाय नम:" लिखते हैं, या फिर किसी भी नए कार्य की शुरुआत गणपति के पूजा के साथ ही करते है। लेकिन ऐसा क्यों है, इसके पीछे आखिर कारण क्या है? इस बात की जानकारी बहुत कम लोगों को ही होगी। क्यों गणपति सर्वप्रथम पूजनीय हैं, इसके पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी है। 

पौराणिक कथा... 

एक बार सभी देवताओं में इस बात पर विवाद हुआ कि धरती पर किस देवता की पूजा सभी देवताओं से पहले की जाएगी। हर एक देवता स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बताने लगे और अपनी शक्तियों को गिनवाने लगे। इस स्थिति को देखते हुए नारद जी ने सभी देवताओं को भगवान शिव की शरण में जाने और उनसे इस सवाल का जवाब जानने की सलाह दी। 

जब सभी देवताओं ने भगवान शिव से इस समस्या का हल ढूंढने का आग्रह किया तो भगवान शिव ने एक योजना सोची। उन्होंने एक प्रतियोगिता आयोजित की और सभी देवताओं को कहा कि वे अपने वाहनों पर बैठकर पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाकर आएं, जो भी सबसे पहले ब्रह्माण्ड की परिक्रमा कर उनके पास पहुंचेगा, वही सर्वप्रथम पूजनीय माना जाएगा। 

सभीदेवता अपने-अपने वाहन पर सवार होकर परिक्रमा के लिए निकल पड़े। गणेश जी ने भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया, लेकिन बाकी देवताओं की तरह ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने की जगह वे अपने माता-पिता यानि शिव-पार्वती की सात परिक्रमा पूरी की और उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए। 

जब सभी देवता अपनी-अपनी परिक्रमा पूरी कर लौटे, तब भगवान शिव ने श्री गणेश को प्रतियोगिता का विजेता घोषित कर दिया। शिव का यह निर्णय सुन सभी देवता अचंभित हो गए और इसका कारण पूछने लगे। तब भगवान शिव ने उन्हें बताया कि माता-पिता को पूरे ब्रह्माण्ड और समस्त लोक में सबसे ऊंचा स्थान दिया गया है, जो सभी देवताओं और समस्त सृष्टि से भी उच्च माने गए हैं। यह सुनकर शिव के इस निर्णय से सभी देवता सहमत हुए। 

तभी से भगवान गणेश सर्वश्रेष्ठ माने जाने लगा और अपने तेज़ बुद्धि बल के प्रयोग के कारण देवताओं में सर्वप्रथम पूजे जाने लगे। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य या उत्सव से पहले गणेश वन्दन या श्री गणेश चालीसा को शुभ माना जाता है। 

श्री गणेश रिद्धि-सिद्धि के दाता और विघ्नहर्ता हैं, इनकी कृपा से भक्तों को लाभ प्राप्त होता है, शुभ समय आता है. प्रतिदिन चालीसा करने से भक्तों को जीवन भर किसी वस्तु की कमी नहीं होती, ऐसे लोगों के परिवार में सदैव सुख-शांति बनी रहती है और उस पर कभी कोई संकट नहीं आता है, उसे सुख वैभव की प्राप्ति होती है।

।। श्री गणेश चालीसा ।।

जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल।

विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल॥

 

जय जय जय गणपति राजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥

जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥

राजित मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥

सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥

धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विधाता॥

ऋद्धि सिद्धि तव चँवर डुलावे। मूषक वाहन सोहत द्वारे॥

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगल कारी॥

एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।

अतिथि जानि कै गौरी सुखारी। बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥

अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥

मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥

गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥

अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै। पलना पर बालक स्वरूप ह्वै॥

बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥

सकल मगन सुख मंगल गावहिं। नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं॥

शम्भु उमा बहुदान लुटावहिं। सुर मुनि जन सुत देखन आवहिं॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आए शनि राजा॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक देखन चाहत नाहीं॥

गिरजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर न शनि तुहि भायो॥

कहन लगे शनि मन सकुचाई। का करिहौ शिशु मोहि दिखाई॥

नहिं विश्वास उमा कर भयऊ। शनि सों बालक देखन कह्यऊ॥

पड़तहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक शिर उड़ि गयो आकाशा॥

गिरजा गिरीं विकल ह्वै धरणी। सो दुख दशा गयो नहिं वरणी॥

हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्ह्यों लखि सुत को नाशा॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाए। काटि चक्र सो गज शिर लाए॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ शंकर डारयो॥

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी की प्रदक्षिणा लीन्हा॥

चले षडानन भरमि भुलाई। रची बैठ तुम बुद्धि उपाई॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥

धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहस मुख सकै न गाई॥

मैं मति हीन मलीन दुखारी। करहुं कौन बिधि विनय तुम्हारी॥

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। लख प्रयाग ककरा दुर्वासा॥

अब प्रभु दया दीन पर कीजै। अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥

दोहा
श्री गणेश यह चालीसा पाठ करें धर ध्यान।

नित नव मंगल गृह बसै लहे जगत सन्मान॥

सम्वत् अपन सहस्र दश ऋषि पंचमी दिनेश।

पूरण चालीसा भयो मंगल मूर्ति गणेश॥

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