श्री राम चरित मानस अयोध्या काण्ड दोहा संख्या 121से दोहा संख्या 140तक
दोहा : * अबला बालक बृद्ध जन कर मीजहिं पछिताहिं। होहिं प्रेमबस लोग इमि रामु जहाँ जहँ जाहिं॥121॥ भावार्थ:- (गर्भवती, प्रसूता आदि) अबला स्त्रियाँ, बच्चे और बूढ़े (दर्शन न पाने से) हाथ मलते और पछताते हैं। इस प्रकार जहाँ-जहाँ श्री रामचन्द्रजी जाते हैं, वहाँ-वहाँ लोग प्रेम के वश में हो जाते हैं॥121॥ चौपाई : * गाँव गाँव अस होइ अनंदू। देखि भानुकुल कैरव चंदू॥ जे कछु समाचार सुनि पावहिं। ते नृप रानिहि दोसु लगावहिं॥1॥ भावार्थ:- सूर्यकुल रूपी कुमुदिनी को प्रफुल्लित करने वाले चन्द्रमा स्वरूप श्री रामचन्द्रजी के दर्शन कर गाँव-गाँव में ऐसा ही आनंद हो रहा है, जो लोग (वनवास दिए जाने का) कुछ भी समाचार सुन पाते हैं, वे राजा-रानी (दशरथ-कैकेयी) को दोष लगाते हैं॥1॥ * कहहिं एक अति भल नरनाहू। दीन्ह हमहि जोइ लोचन लाहू॥ कहहिं परसपर लोग लोगाईं। बातें सरल सनेह सुहाईं॥2॥ भावार्थ:- कोई एक कहते हैं कि राजा बहुत ही अच्छे हैं, जिन्होंने हमें अपने नेत्रों का लाभ दिया। स्त्री-पुरुष सभी आपस में सीधी, स्नेहभरी सुंदर बातें कह रहे हैं॥2॥ * ते पितु मातु धन्य जिन्ह जाए। धन्य सो नगरु जहाँ तें आए॥ धन्य सो देसु स