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Showing posts from July 23, 2023

भगवान शंकर के पुर्ण रूप काल भैरव

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एक बार सुमेरु पर्वत पर बैठे हुए ब्रम्हाजी के पास जाकर देवताओं ने उनसे अविनाशी तत्व बताने का अनुरोध किया | शिवजी की माया से मोहित ब्रह्माजी उस तत्व को न जानते हुए भी इस प्रकार कहने लगे - मैं ही इस संसार को उत्पन्न करने वाला स्वयंभू, अजन्मा, एक मात्र ईश्वर , अनादी भक्ति, ब्रह्म घोर निरंजन आत्मा हूँ|  मैं ही प्रवृति उर निवृति का मूलाधार , सर्वलीन पूर्ण ब्रह्म हूँ | ब्रह्मा जी ऐसा की पर मुनि मंडली में विद्यमान विष्णु जी ने उन्हें समझाते हुए कहा की मेरी आज्ञा से तो तुम सृष्टी के रचियता बने हो, मेरा अनादर करके तुम अपने प्रभुत्व की बात कैसे कर रहे हो ?  इस प्रकार ब्रह्मा और विष्णु अपना-अपना प्रभुत्व स्थापित करने लगे और अपने पक्ष के समर्थन में शास्त्र वाक्य उद्घृत करने लगे| अंततः वेदों से पूछने का निर्णय हुआ तो स्वरुप धारण करके आये चारों वेदों ने क्रमशः अपना मत६ इस प्रकार प्रकट किया -  ऋग्वेद- जिसके भीतर समस्त भूत निहित हैं तथा जिससे सब कुछ प्रवत्त होता है और जिसे परमात्व कहा जाता है, वह एक रूद्र रूप ही है |  यजुर्वेद- जिसके द्वारा हम वेद भी प्रमाणित होते हैं तथा जो ईश्वर के संपूर्

कमला एकादशी व्रत कथा

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                                    कमला एकादशी     युधिष्ठिर ने पूछा- भगवन्! अब मैं श्री विष्णु के उत्तम व्रतजो सब पापोंको हर लेनेवाला तथा व्रती मनुष्योको मनोवाञ्छित फल देनेवाला हो, श्रवण करना चाहता हूँ। जनार्दन ! पुरुषोत्तम मासकी एकादशीको कथा कहिये, उसका क्या फल है ? और उसमें किस देवताका पूजन किया जाता है ? प्रभो ! किस दानका क्या पुण्य है? मनुष्यों को क्या करना चाहिए? उस समय कैसे स्नान किया जाता है? किस मन्त्रका जप होता है? कैसी पूजन-विधि बतायी गयी है? पुरुषोत्तम ! पुरुषोत्तम मासमें किस अन्नका भोजन उत्तम है।   भगवान् श्रीकृष्ण बोले- राजेन्द्र ! अधिक मास आने पर जो एकादशी होती है, वह 'कमला' नाम से प्रसिद्ध है। वह तिथियों में उत्तम तिथि है। उसके व्रतके प्रभाव से लक्ष्मी अनुकूल होती है। उस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान् पुरुषोत्तम का स्मरण करे और विधि पूर्वक स्नान करके व्रती पुरुष व्रत नियम ग्रहण करे। घर पर जप करने का एक गुना, नदी के तट पर दूना, गोशाला में सहस्रगुना, अग्निहोत्र गृहमें एक हजार एक सौ गुना, शिव के क्षेत्रों में, तीर्थो में, देवताओं के निकट तथा तुलसी

पाप नाशक स्तोत्र

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अग्नि पुराण' में अग्निदेव द्वारा महर्षि वशिष्ठ को दिए गए विभिन्न उपदेश हैं। इसी के अंतर्गत इस पापनाशक स्तोत्र के बारे में महात्मा पुष्कर कहते हैं कि मनुष्य चित्त की मलिनता वश चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन आदि विभिन्न पाप करता है, पर जब चित्त कुछ शुद्ध होता है तब उसे इन पापों से मुक्ति की इच्छा होती है। उस समय भगवान नारायण की दिव्य स्तुति करने से समस्त पापों का प्रायश्चित पूर्ण होता है। इसीलिए इस दिव्य स्तोत्र का नाम 'समस्त पापनाशक स्तोत्र' है। इस प्रकार करें भगवान नारायण की स्तुति- पुष्करोवाच विष्णवे विष्णवे नित्यं विष्णवे नमः। नमामि विष्णुं चित्तस्थमहंकारगतिं हरिम्।।1 चित्तस्थमीशमव्यक्तमनन्तमपराजितम्। विष्णुमीड्यमशेषेण अनादिनिधनं विभुम्।।2 विष्णुश्चित्तगतो यन्मे विष्णुर्बुद्धिगतश्च यत्। यच्चाहंकारगो विष्णुर्यद्वष्णुर्मयि संस्थितः।।3 करोति कर्मभूतोऽसौ स्थावरस्य चरस्य च। तत् पापं नाशमायातु तस्मिन्नेव हि चिन्तिते।।4 ध्यातो हरति यत् पापं स्वप्ने दृष्टस्तु भावनात्। तमुपेन्द्रमहं विष्णुं प्रणतार्तिहरं हरिम्।।5 जगत्यस्मिन्निराधारे मज्जमाने तमस्यधः। हस्तावलम्बनं विष्णु प्रणमामि परात्पर

लिंगाष्टक स्तोत्र

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ब़ह्मामुरारिसुरार्चितलिंग निर्मलभासित शोभितलिंगम । जन्मजदु:खविनाशकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।1।। देवमुनिप्रवरार्चितलिंगं कामदहं करुणाकरलिंगम । रावणदर्पविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।2।। सर्वसुगंधिसुलेपित लिंगं बुद्धि विवर्धनकारणलिंगम । सिद्धसुरासुरवंदितलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगम ।।3।। कनकमहामणिभूषितलिंगं फणिपति वेष्टित शोभितलिंगम । दक्षसुयज्ञविनाशकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगम ।।4।। कुंकुमचन्दनलेपितलिंगंं पंकजहारसुशोभितलिंगम । संचितपापविनाशनलिंगं तत्प्रणमामि सदा शिवलिंगम ।।5।। देवगणार्चितसेवितलिंगं भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम । दिनकरकोटिप्रभाकर लिंगम पत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।6।। अष्टदलोपरिवेष्टितलिंगम सर्वसमुद्भवकारणलिंगम । अष्टदरिद्र विनाशितलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।7।। सुरगुरुसुरवरपूजितलिंगम सुरवनपुष्प सदार्चितलिंगम । परात्परपरमात्मकलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।8।। लिंगाष्टकमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ । शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ।।9।।

भाग्यनोत्ति मंत्र-

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Mantra For Good Luck: सोया हुआ भाग्य जगा देगा ये चमत्कारी मंत्र, नियमित जाप से हो सकता है सभी दुखों का नाश Mantra For Good Luck: संसार में हर व्यक्ति की किस्मत एक जैसी नहीं होती, अपने कर्मों और मेहनत के आधार पर ही उसके जीवन की स्थिति बनती है। हां कुछ लोगों का भाग्य इतना तेज होता है कि बिना ज्यादा प्रयास किए ही उन्हें सफलता मिल जाती है। तो वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों को पूरी मेहनत के बाद भी उसका आधा ही फल मिलता है और फिर वह व्यक्ति अपने भाग्य को कोसने लगता है, लेकिन ज्योतिष शास्त्र में भाग्य तेज करने के लिए कई तरह के उपाय बताए गए हैं। जो व्यक्ति के भाग्य को बदलने व सोये हुए भाग्य को जगाने के लिए कारगर साबित होते हैं। जिसमें से एक उपाय है चमत्कारी मंत्र का जाप। जी हां, ज्योतिष में एक ऐसा ही चमत्कारी मंत्र बताया गया है जो भाग्य को चमकाने का काम करता है, साथ ही जीवन में सुख-शांति भी लाता है। आइए जानते हैं कौन सा है वो मंत्र, कैसे करें इसका जाप और क्या-क्या मिलेंगे लाभ- भाग्यनोत्ति मंत्र- ॐ ऐं श्रीं भाग्योदयं कुरु कुरु श्रीं ऐं फट् ।।