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श्री शनि चालीसा

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श्री शनि चालीसा, साढेसाती और शनि दशा में नियमित करें पाठ अगर आप रंक से राजा बनना चाहते हैं तो शनिवार के दिन ये उपाय जरूर करें। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब न्याय के देवता शनि देव किसी के उपर प्रसन्न हो जाते हैं तो उनके जीवन के सारे अभाव दूर करके सभी मनोकामना पूरी कर देते हैं शनि देव। अगर शनिवार के दिन अपने घर में या शनि मंदिर में शुद्ध होकर उपाय स्वरूप इस शनि चालीसा का पाठ दोनों समय करें। इस उपाय से कोई भी गरीब व्यक्ति रंक से राजा बन सकता है।     नवग्रहों में शनि देव ( Shani Dev ) एक ऐसे ग्रह है जो सभी के अच्छे बूरे कर्मो का फल देने में जरा भी संकोच नहीं करते और अगर शनि देव किसी पर प्रसन्न हो गये तो उनके जीवन को सुख समृद्धि से भर देते हैं। अगर शनिवार के दिन शनि मंदिर में श्री शनि चालीसा का पूर्ण विश्वास के साथ श्रद्धा पूर्वक पाठ करने से शनि दे से व्यक्ति जिस चीज की कामना करता है मिलने लगती है। इस शनि चालीसा का पाठ शनि देव के सामने खड़े होकर करें।    दोहा जय-जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महराज। करहुं कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज।। चौपाई जयति-जयति शनिदेव दयाला।

पिप्पलाद ऋषिकृत एवं महाराज दशरथ कृत शनि स्त्रोत

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पिप्पलाद  ऋषिकृत एवं दशरथ कृत शनि स्त्रोत पिप्पलाद ऋषिकृत इस शनि स्तोत्र का पाठ करते समय बार-बार शनिदेव को प्रणाम करते रहना चाहिए. इस स्तोत्र का पाठ शनि यंत्र के सामने नीले अथवा बैंगनी रंग के फूलों के साथ करना चाहिए. यदि यंत्र नहीं है तब इस पाठ को पीपल के पेड़ के सामने बैठकर भी किया जा सकता है और मन में शनिदेव का ध्यान भी करते रहना है. पिप्पलाद ऋषि ने शनि के कष्टों से मुक्ति के लिए इस स्तोत्र की रचना की. राजा नल ने भी इसी स्तोत्र के पाठ द्वारा अपना खोया राज्य पुन: पा लिया था और उनकी राजलक्ष्मी भी लौट आई थी. य: पुरा नष्टराज्याय, नलाय प्रददौ किल । स्वप्ने तस्मै निजं राज्यं, स मे सौरि: प्रसीद तु ।।1।। केशनीलांजन प्रख्यं, मनश्चेष्टा प्रसारिणम् । छाया मार्तण्ड सम्भूतं, नमस्यामि शनैश्चरम् ।।2।। नमोsर्कपुत्राय शनैश्चराय, नीहार वर्णांजनमेचकाय । श्रुत्वा रहस्यं भव कामदश्च, फलप्रदो मे भवे सूर्य पुत्रं ।।3।। नमोsस्तु प्रेतराजाय, कृष्णदेहाय वै नम: । शनैश्चराय ते तद्व शुद्धबुद्धि प्रदायिने ।।4।। य एभिर्नामाभि: स्तौति, तस्य तुष्टो ददात्य सौ । तदीयं तु भयं तस्यस्वप्नेपि न भविष्

भगवान वक्रतुंड के अवतार की कथा

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देवराज इंद्र के प्रमाद से मत्सर नामक असुर का जन्म हुआ ।उसने दैत्य गुरु शुक्राचार्य से शिव पंचाक्षरी मंत्र (ओम नमः शिवाय) की दीक्षा ली । और भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए घोर तप किया ।आशुतोष शंकर ने उसे भगवती पार्वती सहित प्रकट होकर दर्शन दिए और इच्छित वर मांगने को कहा । असुर ने अपने मनोनुकूल वर प्राप्त कर लिए तथा प्रसन्न कामारि ने उसे एक वर और दे दिया - ''तुम्हें किसी से भय नहीं रहेगा।         इस प्रकार पार्वती वल्लभ से वर प्राप्त कर मत्सर अपने निवास पर आया और शुक्राचार्य ने उसे सभी दैत्यों के राजा के रूप में अभिषिक्त किया।  दैत्यों ने वर प्राप्त अपने अधिपति मत्सर से निवेदन किया कि अब आप  निःसंकोच विश्व विजय करें क्योंकि वर के प्रभाव से आपको कोई भयभीत नहीं कर सकता ।            अपने अनुचरों की इस सलाह को मानकर मत्शरासुर ने विश्व - विजय करने का निश्चय किया और अपनी विशाल सेना लेकर पृथ्वी वासी नरेशों पर आक्रमण कर दिया । पृथ्वी के नरपति उस पराक्रमी दैत्य की सेना के सम्मुख अपने को असहाय जानकर कुछ तो अपने प्राण बचा रणभूमि से भाग निकले ,कुछ ने उससे रण में लोहा लेन

हिंदू धर्म सनातन संस्कृति

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हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत ,नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म कहा जाता है। इसे ‘वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म’ भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है।                विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है।             यह धर्म अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए हैं।           अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है। इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम “हिन्दु आगम” है।

श्री दुर्गा चालीसा एवं दुर्गा चालीसा पाठ से मिलने वाले लाभ

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श्री दुर्गा चालीसा दुर्गा चालीसा पाठ से मिलने वाले लाभ निम्लिखित हैं:- सर्वशक्तिशाली माता दुर्गा की पूजा आराधना लोग विशेष रूप से अपने सभी दुखों से मुक्ति पाने और जीवन के हर क्षेत्र में माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए करते हैं। इसके अलावा नियमित रूप से दुर्गा चालीसा का पाठ करने से आपको निम्न लाभ प्राप्त हो सकते हैं:- नियमित रूप से दुर्गा चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है और व्यक्ति को मानसिक तनाव और चिंता से भी मुक्ति मिलती है। दुर्गा चालीसा का नियमित पाठ करने से आप अपने शत्रुओं के ऊपर विजय प्राप्त कर सकते है और साथ ही आपके ऊपर शत्रु पक्ष का प्रभाव कम ही पड़ता है। इस चालीसा के पाठ से व्यक्ति के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और उसे सभी विशेष कार्यों को करने में सफलता प्राप्त होती है। दुर्गा चालीसा का पाठ करने से जीवन में बुरी शक्तियों से निजात मिलती है, साथ ही बुरी शक्तियों से परिवार का भी बचाव होता है। इसके नियमित जाप करने से आर्थिक लाभ की प्राप्ति होती है और जीवन में आने वाले दुखों से लड़ने की शक्ति मिलती है। ऐसी मान्यता है कि दुर्गा चाली

माता लक्ष्मी चालीसा

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लक्ष्मी चालीसा का पाठ बढ़ाएगा सौभाग्‍य देवी लक्ष्मी जी को धन , समृद्धि और वैभव की देवी माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि लक्ष्मी जी की नित्य पूजा करने से मनुष्य के जीवन में कभी दरिद्रता नहीं आती है। मां लक्ष्मी के पूजन का शुभ दिन शुक्रवार को माना गया है और इस मां की पूजा में कई मंत्रों का जाप होता है. मां को आरती के साथ ही चालीसा का पाठ भी बहुत प्रिय है. शास्‍त्रों के अनुसार अगर इस दिन मां की पूजा को पूरे विधि-विधान से किया जाए तो मनुष्‍य को सौभाग्‍य की प्राप्ति होती है. सोरठा ।। यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं। सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥ ।। चौपाई ।। सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही॥ श्री लक्ष्मी चालीसा तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥ जय जय जगत जननि जगदम्बा । सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥ तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥ जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥ विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥ केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥ कृपा दृष्टि चितववो म

दुर्गा अष्टोत्तरशतनाम

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       ।  दुर्गा अष्टोत्तरशतनाम।        देवी दुर्गा, भगवान शिव की पत्नी पार्वती जी का ही स्वरूप है। नवरात्रि में भक्त हर प्रकार की पूजा और विधान से मां दुर्गा को प्रसन्न करने के जतन करते हैं। लेकिन अगर आप व्यस्तताओं के चलते विधिवत आराधना ना कर सकें तो मात्र 108 नाम के जाप करें। इससे माता प्रसन्न होकर सुख, समृद्धि और सफलता का आशीर्वाद देती है मां दुर्गा के अनेक नाम हैं। प्रत्येक नाम के पीछे एक कथा और उसका महत्व समाया है। मुख्यतः मां के 108 नाम हैं। नवरात्र में मां दुर्गा के नाम का जाप करने से माता कष्टों को हर लेती हैं।      कहते हैं कि नवरात्र में जो भी मां दुर्गा की उपासना करना है उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। वैसे तो नवरात्र में माता के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है, लेकिन मां दुर्गा के रूप अनेक हैं।  देश के कोने-कोने में मां दुर्गा के अनेक रूपों के मंदिर स्थापित हैं। नवरात्र में कुछ भक्त जहां कठिन तपस्या करते हैं तो कुछ लोग भागदौड़ भरी जिंदगी के कारण दुर्गा पाठ भी नहीं कर पाते हैं क्योंकि उनको आराधना का समय ही नहीं मिल पाताहै।                जानकारो का कहन

श्री महालक्ष्मीअष्टकम

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महालक्ष्मीअष्टकम   श्री महालक्ष्मी अष्टकम् स्तोत्र देवी मां महालक्ष्मी का प्रिय पाठ है। इसको सर्वप्रथम देवराज इंद्र ने पढ़ा था और इसके रचयिता इंद्रदेवजी हैं। जो मनुष्य धन-वैभव, सुख-समृद्धि आदि की कमी के कारण धनाभाव में जी रहे हैं, उन्हें हर शुक्रवार को श्री महालक्ष्मी अष्टकम् स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए। इतना ही नहीं, कुछ खास अवसरों पर, जैसे हर माह की पूर्णिमा, चतुर्दशी तथा अक्षय तृतीया, वैशाख पूर्णिमा, कार्तिक अमावस्या आदि पर  इसका पाठ करने से मां लक्ष्मी अत्यंत‍ प्रसन्न होकर धनवान होने का आशीष प्रदान करती हैं। आइए पढ़ें श्री महालक्ष्मी का प्रिय पाठ, श्री महालक्ष्मी अष्टकम् :-  ॥ महालक्ष्म्यष्टकम ॥ नमस्तेऽस्तु महामायेश्रीपीठे सुरपूजिते। शङ्खचक्रगदाहस्तेमहालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥१॥ नमस्ते गरुडारूढेकोलासुरभयंकरि। सर्वपापहरे देविमहालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥२॥ सर्वज्ञे सर्ववरदेसर्वदुष्टभयंकरि। सर्वदुःखहरे देविमहालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥३॥ सिद्धिबुद्धिप्रदे देविभुक्तिमुक्तिप्रदायिनि। मन्त्रमूर्ते सदा देविमहालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥४॥ आद्यन्तरहिते देविआद्यशक्तिमहेश्वरि। योगजे योगसम

लक्ष्मी सूक्त

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काम, क्रोध, लोभ वृत्ति से मुक्ति प्राप्त कर धन, धान्य, सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए उपयोगी स्तोत्र है। यहां इस सूक्त को हिन्दी में अनुवाद सहित दिया जा रहा है। इसको पढ़ने से माता लक्ष्मी अति प्रसन्न होती है। माता लक्ष्मी का श्री सूक्त एवं लक्ष्मी सूक्त का नित्य पाठ करना चाहिए। श्री लक्ष्मीसूक्तम्‌ पाठ   पद्मानने पद्मिनि पद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि। विश्वप्रिये विश्वमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व॥ - हे लक्ष्मी देवी! आप कमलमुखी, कमल पुष्प पर विराजमान, कमल-दल के समान नेत्रों वाली, कमल पुष्पों को पसंद करने वाली हैं। सृष्टि के सभी जीव आपकी कृपा की कामना करते हैं। आप सबको मनोनुकूल फल देने वाली हैं। हे देवी! आपके चरण-कमल सदैव मेरे हृदय में स्थित हों।  पद्मानने पद्मऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे। तन्मे भजसिं पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्‌॥  - हे लक्ष्मी देवी! आपका श्रीमुख, ऊरु भाग, नेत्र आदि कमल के समान हैं। आपकी उत्पत्ति कमल से हुई है। हे कमलनयनी! मैं आपका स्मरण करता हूँ, आप मुझ पर कृपा करें।  अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने। धनं मे जुष तां देवि सर्वांकामांश

श्री सूक्त

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धर्म ग्रंथों के अनुसार, धन लाभ के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा करना श्रेष्ठ उपाय है। धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्रों और स्तुतियों की रचना की गई है। उन्हीं में से एक है श्रीसूक्त। श्रीसूक्त का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है। श्रीसूक्त में सोलह मंत्र हैं। इस सूक्त का पाठ अगर पूरी श्रद्धा से किया जाए तो मां लक्ष्मी जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं और साधक को धन-संपत्ति प्रदान करती हैं। वैसे तो श्रीसूक्त का पाठ रोज करना चाहिए, लेकिन अगर समय न हो तो हर शुक्रवार को भी श्रीसूक्त का पाठ कर सकते हैं। श्रीसूक्त का पाठ कैसे करें, जानिए... 1.  शुक्रवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहनकर रेशमी लाल कपड़े पर माता लक्ष्मी की कमल पर बैठी मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। 2.  इसके बाद देवी लक्ष्मी को लाल फूल और पूजा की अन्य सामग्री जैसे- चंदन, अबीर, गुलाल, चावल आदि चढ़ाएं। खीर का भोग भी लगाएं। 3.  इसके बाद श्रीसूक्त का पाठ करें। इसके बाद माता लक्ष्मी की आरती उतारें। 4.  अगर हर शुक्रवार को इस विधि से देवी लक्ष्मी की पूजा न कर पाएं तो प्रत्येक महीने की अमावस्या और पूर्णिमा

ब्रह्मवैवर्त पुराण भगवान गणेश का प्राकट्य

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 जब शैल- पुत्री पार्वती के साथ बृषभध्वज का पाणिग्रहण हो गया तो चराचर आत्मा शिव उन्हें लेकर वन में चले गए दीर्घ काल तक  देवाधिदेव महादेव का बिहार चलता रहा । एक दिन धर्माज्ञा पार्वती ने भगवान शंकर से निवेदन किया-" प्रभो! मैं एक श्रेष्ठ पुत्र चाहती हूं।        सर्व भूत पति भगवान त्रिपुरारी ने अपने धर्म परायणा पत्नी की बात सुनकर कहा-" प्रिय मैं तुम्हें एक श्रेष्ठ व्रत की विधि बतलाता हूं । इस व्रत का नाम पुण्यक व्रत है । इसका अनुष्ठान एक वर्ष का है। धर्मात्मा मनु की पत्नी भी पुत्र न होने से जब क्लेश युक्त थीं । तो उन्होंने विधाता से पुत्र प्राप्ति का उपाय पूछा था । वह  ब्रह्म लोक में जा विधाता से विनय पूर्वक बोली -"प्रभो !"आप सृष्टिकर्ता और कारणों के भी कारण है । पुत्र के बिना गृहस्थ का क्या अर्थ अर्थात गार्हस्थ - जीवन नीरस और व्यर्थ ही है । पुत्र के बिना स्त्री पुरुष का जन्म अन्य धर्म सब निष्फल है । तप और दान का फल जन्म और जन्मांतर में सुख का हेतु होता है, परंतु पुत्र पुञ् नामक नरक से रक्षा करता है । इसलिए बंध्या को पुत्र किस उपाय से हो सकता है , आप कृपा पूर

गुरुवार व्रत कथा

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गुरुवार को भगवान बृहस्पति की पूजा का विधान है. इस पूजा से परिवार में सुख-शांति रहती है. जल्द विवाह के लिए भी गुरुवार का व्रत किया जाता है. गुरुवार व्रत की विधि: गुरुवार की पूजा विधि-विधान के अनुसार की जानी चाहिए. व्रत वाले दिन सुबह उठकर बृहस्पति देव का पूजन करना चाहिए. बृहस्पति देव का पूजन  पीली वस्तुएं , पीले फूल, चने की दाल, मुनक्का, पीली मिठाई, पीले चावल और हल्दी चढ़ाकर किया जाता है. इस व्रत में केले के पेड़ की का पूजा की जाती है. कथा और पूजन के समय मन, कर्म और वचन से शुद्ध होकर मनोकामना पूर्ति के लिए बृहस्पतिदेव से प्रार्थना करनी चाहिए. जल में हल्दी डालकर केले के पेड़ पर चढ़ाएं. केले की जड़ में चने की दाल और मुनक्का चढ़ाएं साथ ही दीपक जलाकर पेड़ की आरती उतारें. दिन में एक समय ही भोजन करें. खाने में चने की दाल या पीली चीजें खाएं, नमक न खा‌एं, पीले वस्त्र पहनें, पीले फलों का इस्तेमाल करें. पूजन के बाद भगवान बृहस्पति की कथा सुननी चाहिए. गुरुवार व्रत की कथा: प्राचीन काल की बात है. किसी राज्य में एक बड़ा प्रतापी और दानी राजा राज करता था. वह प्रत्येक  बृहस्पतिवार  को व्र

सत्यनारायण व्रत कथा

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     ।  सत्यनारायण व्रत कथा। सत्य को नारायण (विष्णु के रूप में पूजना ही सत्यनारायण की पूजा है। इसका दूसरा अर्थ यह है कि संसार में एकमात्र नारायण ही सत्य हैं, बाकी सब माया है। भगवान की पूजा कई रूपों में की जाती है, उनमें से उनका सत्यनारायण स्वरूप इस कथा में बताया गया है। इसके मूल पाठ में पाठान्तर से लगभग 170 श्लोक संस्कृत भाषा में उपलब्ध है जो पाँच अध्यायों में बँटे हुए हैं। इस कथा के दो प्रमुख विषय हैं- जिनमें एक है संकल्प को भूलना और दूसरा है प्रसाद का अपमान। व्रत कथा के अलग-अलग अध्यायों में छोटी कहानियों के माध्यम से बताया गया है कि सत्य का पालन न करने पर किस प्रकार की समस्या आती है। इसलिए जीवन में सत्य व्रत का पालन पूरी निष्ठा और सुदृढ़ता के साथ करना चाहिए। ऐसा न करने पर भगवान न केवल नाराज होते हैं अपितु दण्ड स्वरूप सम्पत्ति और बन्धु बान्धवों के सुख से वंचित भी कर देते हैं। इस अर्थ में यह कथा लोक में सच्चाई की प्रतिष्ठा का लोकप्रिय और सर्वमान्य धार्मिक साहित्य हैं। प्रायः पूर्णमासी को इस कथा का परिवार में वाचन किया जाता है। अन्य पर्वों पर भी इस कथा को विधि विधान से क

श्री विष्णु भगवान चालीसा

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विष्णु चालीसा: आज गुरुवार के दिन जरूर करें श्री विष्णु चालीसा का पाठ, कष्टों से मिलती है    ।    विष्णु चालीसा :  आज गुरुवार है और आज के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विशेष महत्व है। ऐसा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस दिन श्री हरि की पूजा का महत्व बेहद विशेष माना गया है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत करता है उसे भूत-प्रेत, पिशाच जैसी योनियों में जाने का भय नहीं रहता है। सिर्फ यही नहीं, माना तो यह भी जाता है कि व्यक्ति के सभी कष्टों की मुक्ति भी इस व्रत को करने से हो जाती है। गुरुवार के दिन विष्णु जी की पूजा करते समय व्यक्ति को श्री विष्णु चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए। तो आइए पढ़ते हैं श्री विष्णु चालीसा। श्री विष्णु चालीसा: दोहा विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय। कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय। चौपाई नमो विष्णु भगवान खरारी। कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥ प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी। त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥ सुन्दर रूप मनोहर सूरत। सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥ तन पर पीतांबर अति सोहत। बैजन्ती माला मन मोहत॥ शंख चक्र कर गदा बिराजे। देखत दैत्य असुर द

इस चालीसा को गुरु बृहस्पति देव की पूजा में पढें

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बृहस्पति देव की पूजा में पढें इस चालीसा को आज बृह्स्पतिवार के दिन देव गुरु बृहस्पति की पूजा करने से जीवन में सम्पन्नता आती है। इनकी पूजा में केले के पेड की पूजा की जाती है। बृहस्पतिवार के दिन पीले कपडें पहने चाहिए। पीला रंग देव गुरु का प्रिय रंग माना जाता है। इस दिन इनको पीले फूल चढाने चाहिए। खाने में चने की दाल के बने भोजन का प्रयोग करना चाहिए। ब्रहस्पति देव की पूजा करने से धन और विद्या का आशीर्वाद मिलता है। आज बृहस्पति की पूजा करने से घर में सुख शांति बनी रहती है। बृहस्पति देव की पूजा को पूरा करने के लिए आज इस चालीसा को पढने से देवगुरु प्रसन्न होते हैं। दोहा प्रन्वाऊ प्रथम गुरु चरण, बुद्धि ज्ञान गुन खान l श्रीगणेश शारदसहित, बसों ह्रदय में आन ll अज्ञानी मति मंद मैं, हैं गुरुस्वामी सुजान l दोषोंसेमैं भरा हुआहूँ तुम हो कृपा निधान ll चौपाई जय नारायण जय निखिलेशवर l विश्व प्रसिद्ध अखिल तंत्रेश्वर ll 1 ll यंत्र-मंत्र विज्ञानं के ज्ञाता l भारत भू के प्रेम प्रेनता ll 2 ll जब जब हुई धरम की हानि l सिद्धाश्रम ने पठए ज्ञानी ll 3 ll सच्चिदानंद गुरु के प्यारे l सिद्धाश्रम