श्री महालक्ष्मीअष्टकम

महालक्ष्मीअष्टकम 
श्री महालक्ष्मी अष्टकम् स्तोत्र देवी मां महालक्ष्मी का प्रिय पाठ है। इसको सर्वप्रथम देवराज इंद्र ने पढ़ा था और इसके रचयिता इंद्रदेवजी हैं। जो मनुष्य धन-वैभव, सुख-समृद्धि आदि की कमी के कारण धनाभाव में जी रहे हैं, उन्हें हर शुक्रवार को श्री महालक्ष्मी अष्टकम् स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए।

इतना ही नहीं, कुछ खास अवसरों पर, जैसे हर माह की पूर्णिमा, चतुर्दशी तथा अक्षय तृतीया, वैशाख पूर्णिमा, कार्तिक अमावस्या आदि पर  इसका पाठ करने से मां लक्ष्मी अत्यंत‍ प्रसन्न होकर धनवान होने का आशीष प्रदान करती हैं। आइए पढ़ें श्री महालक्ष्मी का प्रिय पाठ, श्री महालक्ष्मी अष्टकम् :- 
॥ महालक्ष्म्यष्टकम ॥

नमस्तेऽस्तु महामायेश्रीपीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्तेमहालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥१॥

नमस्ते गरुडारूढेकोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देविमहालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥२॥

सर्वज्ञे सर्ववरदेसर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदुःखहरे देविमहालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥३॥

सिद्धिबुद्धिप्रदे देविभुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रमूर्ते सदा देविमहालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥४॥

आद्यन्तरहिते देविआद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूतेमहालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥५॥

स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रेमहाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देविमहालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥६॥

पद्मासनस्थिते देविपरब्रह्मस्वरूपिणि।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥७॥

श्वेताम्बरधरे देविनानालङ्कारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥८॥

महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रंयः पठेद्भक्तिमान्नरः।
सर्वसिद्धिमवाप्नोतिराज्यं प्राप्नोति सर्वदा॥९॥

एककाले पठेन्नित्यंमहापापविनाशनम्।
द्विकालं यः पठेन्नित्यंधनधान्यसमन्वितः॥१०॥

त्रिकालं यः पठेन्नित्यंमहाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मिर्भवेन्नित्यंप्रसन्ना वरदा शुभा॥११॥

॥ इति श्री महालक्ष्मीस्तव ॥

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