श्री दुर्गा चालीसा एवं दुर्गा चालीसा पाठ से मिलने वाले लाभ
श्री दुर्गा चालीसा
दुर्गा चालीसा पाठ से मिलने वाले लाभ निम्लिखित हैं:-
सर्वशक्तिशाली माता दुर्गा की पूजा आराधना लोग विशेष रूप से अपने सभी दुखों से मुक्ति पाने और जीवन के हर क्षेत्र में माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए करते हैं। इसके अलावा नियमित रूप से दुर्गा चालीसा का पाठ करने से आपको निम्न लाभ प्राप्त हो सकते हैं:-
नियमित रूप से दुर्गा चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है और व्यक्ति को मानसिक तनाव और चिंता से भी मुक्ति मिलती है।
दुर्गा चालीसा का नियमित पाठ करने से आप अपने शत्रुओं के ऊपर विजय प्राप्त कर सकते है और साथ ही आपके ऊपर शत्रु पक्ष का प्रभाव कम ही पड़ता है।
इस चालीसा के पाठ से व्यक्ति के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और उसे सभी विशेष कार्यों को करने में सफलता प्राप्त होती है।
दुर्गा चालीसा का पाठ करने से जीवन में बुरी शक्तियों से निजात मिलती है, साथ ही बुरी शक्तियों से परिवार का भी बचाव होता है।
इसके नियमित जाप करने से आर्थिक लाभ की प्राप्ति होती है और जीवन में आने वाले दुखों से लड़ने की शक्ति मिलती है।
ऐसी मान्यता है कि दुर्गा चालीसा का नियमित पाठ कर व्यक्ति अपना खोया हुआ सम्मान और संपत्ति भी प्राप्त कर सकता है।
यदि आपके मन में किसी बात को लेकर कोई निराशा है तो इस चालीसा के नियमित पाठ से आपके मन से वो निराशा दूर हो जाती है।
दुर्गा चालीसा का नियमित पाठ कर सभी भावनाओं पर समान रूप से नियंत्रण पाया जा सकता है।
दुर्गा चालीसा के पाठ करने की सही विधि
दुर्गा चालीसा का पाठ ज्यादातर लोग अपनी क्षमता और श्रद्धा के अनुसार ही करते हैं लेकिन यदि इसका जाप नियम पूर्वक किया जाए तो इससे माता दुर्गा का ख़ास आशीर्वाद आपको प्राप्त होता है। ज्योतिष विशेषज्ञों द्वारा दुर्गा चालीसा पाठ के कुछ विशेष नियमों के बारे में निम्न प्रकार से उल्लेख किया गया है:-
दुर्गा चालीसा का पाठ करने से पहले सूर्योदय से पूर्व स्नान करके साफ़ सुथरे वस्त्र धारण करें।
अब एक लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछा कर, उस पर माता दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें।
सबसे पहले माता दुर्गा की फूल, रोली, धूप, दीप आदि से पूजा अर्चना करें।
पूजा के दौरान दुर्गा यंत्र का प्रयोग आपके लिए लाभकारी साबित हो सकता है।
अब दुर्गा चालीसा का पाठ शुरू करें।
नवदुर्गा, दुर्गा पूजा, नवरात्रि, नवरात्रे, नवरात्रि, माता की चौकी, देवी जागरण, जगराता, शुक्रवार दुर्गा तथा अष्टमी के शुभ अवसर पर गाये जाने वाला श्री दुर्गा चालीसा।
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला ।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥
रूप मातु को अधिक सुहावे ।
दरश करत जन अति सुख पावे ॥ ४ ॥
तुम संसार शक्ति लै कीना ।
पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला ।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी ।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥ ८ ॥
रूप सरस्वती को तुम धारा ।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा ।
परगट भई फाड़कर खम्बा ॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो ।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं ।
श्री नारायण अंग समाहीं ॥ १२ ॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा ।
दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ।
महिमा अमित न जात बखानी ॥
मातंगी अरु धूमावति माता ।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी ।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥ १६ ॥
केहरि वाहन सोह भवानी ।
लांगुर वीर चलत अगवानी ॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै ।
जाको देख काल डर भाजै ॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला ।
जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत ।
तिहुँलोक में डंका बाजत ॥ २० ॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे ।
रक्तबीज शंखन संहारे ॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी ।
जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
रूप कराल कालिका धारा ।
सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब ।
भई सहाय मातु तुम तब तब ॥ २४ ॥
अमरपुरी अरु बासव लोका ।
तब महिमा सब रहें अशोका ॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।
तुम्हें सदा पूजें नरनारी ॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें ।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ।
जन्ममरण ताकौ छुटि जाई ॥ २८ ॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी ।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
शंकर आचारज तप कीनो ।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥
शक्ति रूप का मरम न पायो ।
शक्ति गई तब मन पछितायो ॥ ३२ ॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी ।
जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो ।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥
आशा तृष्णा निपट सतावें ।
मोह मदादिक सब बिनशावें ॥ ३६ ॥
शत्रु नाश कीजै महारानी ।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥
करो कृपा हे मातु दयाला ।
ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला ॥
जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै ।सब सुख भोग परमपद पावै ॥ ४० ॥
देवीदास शरण निज जानी ।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥
॥दोहा॥
शरणागत रक्षा करे,
भक्त रहे नि:शंक ।
मैं आया तेरी शरण में,
मातु लिजिये अंक ॥
॥ इति श्री दुर्गा चालीसा
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