इस चालीसा को गुरु बृहस्पति देव की पूजा में पढें
बृहस्पति देव की पूजा में पढें इस चालीसा को
आज बृह्स्पतिवार के दिन देव गुरु बृहस्पति की पूजा करने से जीवन में सम्पन्नता आती है। इनकी पूजा में केले के पेड की पूजा की जाती है। बृहस्पतिवार के दिन पीले कपडें पहने चाहिए। पीला रंग देव गुरु का प्रिय रंग माना जाता है। इस दिन इनको पीले फूल चढाने चाहिए। खाने में चने की दाल के बने भोजन का प्रयोग करना चाहिए।
ब्रहस्पति देव की पूजा करने से धन और विद्या का आशीर्वाद मिलता है। आज बृहस्पति की पूजा करने से घर में सुख शांति बनी रहती है। बृहस्पति देव की पूजा को पूरा करने के लिए आज इस चालीसा को पढने से देवगुरु प्रसन्न होते हैं।
दोहा
प्रन्वाऊ प्रथम गुरु चरण, बुद्धि ज्ञान गुन खान l
श्रीगणेश शारदसहित, बसों ह्रदय में आन ll
अज्ञानी मति मंद मैं, हैं गुरुस्वामी सुजान l
दोषोंसेमैं भरा हुआहूँ तुम हो कृपा निधान ll
चौपाई
जय नारायण जय निखिलेशवर l विश्व प्रसिद्ध अखिल तंत्रेश्वर ll 1 ll
यंत्र-मंत्र विज्ञानं के ज्ञाता l भारत भू के प्रेम प्रेनता ll 2 ll
जब जब हुई धरम की हानि l सिद्धाश्रम ने पठए ज्ञानी ll 3 ll
सच्चिदानंद गुरु के प्यारे l सिद्धाश्रम से आप पधारे ll 4 ll
उच्चकोटि के ऋषि-मुनि स्वेच्छा l ओय करन धरम की रक्षा ll 5 ll
अबकी बार आपकी बारी l त्राहि त्राहि है धरा पुकारी ll 6 ll
मरुन्धर प्रान्त खरंटिया ग्रामा l मुल्तानचंद पिता कर नामा ll 7 ll
शेषशायी सपने में आये l माता को दर्शन दिखलाये ll 8 ll
रुपादेवि मातु अति धार्मिक l जनम भयो शुभ इक्कीस तारीख ll 9 ll
जन्म दिवस तिथि शुभ साधक की l पूजा करते आराधक की ll 10 ll
जन्म वृतन्त सुनाये नवीना l मंत्र नारायण नाम करि दीना ll 11 ll
नाम नारायण भव भय हारी l सिद्ध योगी मानव तन धारी ll 12 ll
ऋषिवर ब्रह्म तत्व से ऊर्जित l आत्म स्वरुप गुरु गोरवान्वित ll 13 ll
एक बार संग सखा भवन में lकरि स्नान लगे चिन्तन में ll 14 ll
चिन्तन करत समाधि लागी lसुध-बुध हीन भये अनुरागी ll 15 ll
पूर्ण करि संसार की रीती lशंकर जैसे बने गृहस्थी ll 16 ll
अदभुत संगम प्रभु माया का lअवलोकन है विधि छाया का ll 17 ll
युग-युग से भव बंधन रीती lजंहा नारायण वाही भगवती ll 18 ll
सांसारिक मन हुए अति ग्लानी lतब हिमगिरी गमन की ठानी ll 19 ll
अठारह वर्ष हिमालय घूमे lसर्व सिद्धिया गुरु पग चूमें ll 20 ll
त्याग अटल सिद्धाश्रम आसन lकरम भूमि आये नारायण ll 21 ll
धरा गगन ब्रह्मण में गूंजी lजय गुरुदेव साधना पूंजी ll 22 ll
सर्व धर्महित शिविर पुरोधा lकर्मक्षेत्र के अतुलित योधा ll 23 ll
ह्रदय विशाल शास्त्र भण्डारा lभारत का भौतिक उजियारा ll 24 ll
एक सौ छप्पन ग्रन्थ रचयिता lसीधी साधक विश्व विजेता ll 25 ll
प्रिय लेखक प्रिय गूढ़ प्रवक्ता lभुत-भविष्य के आप विधाता ll 26 ll
आयुर्वेद ज्योतिष के सागर l षोडश कला युक्त परमेश्वर ll 27 ll
रतन पारखी विघन हरंता lसन्यासी अनन्यतम संता ll 28 ll
अदभुत चमत्कार दिखलाया lपारद का शिवलिंग बनाया ll 29 ll
वेद पुराण शास्त्र सब गाते lपारेश्वर दुर्लभ कहलाते ll 30 ll
पूजा कर नित ध्यान लगावे lवो नर सिद्धाश्रम में जावे ll 31 ll
चारो वेद कंठ में धारे lपूजनीय जन-जन के प्यारे ll 32 ll
चिन्तन करत मंत्र जब गायें lविश्वामित्र वशिष्ठ बुलायें ll 33 ll
मंत्र नमो नारायण सांचा lध्यानत भागत भुत-पिशाचा ll 34 ll
प्रातः कल करहि निखिलायन lमन प्रसन्न नित तेजस्वी तन ll 35 ll
निर्मल मन से जो भी ध्यावे lरिद्धि सिद्धि सुख-सम्पति पावे ll 36 ll
पथ करही नित जो चालीसा lशांति प्रदान करहि योगिसा ll 37 ll
अष्टोत्तर शत पाठ करत जो lसर्व सिद्धिया पावत जन सो ll 38 ll
श्री गुरु चरण की धारा lसिद्धाश्रम साधक परिवारा ll 39 ll
जय-जय-जय आनंद के स्वामी lबारम्बार नमामी नमामी ll 40
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