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हनुमान चालीसा में है ये पांच चमत्कारी चौपाई, जिनको पढ़ने से होती है हर इच्छा पूरी

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हनुमान चालीसा में है ये पांच चमत्कारी चौपाई, जिनको पढ़ने से होती है हर इच्छा पूरी  हनुमान चालीसा को महान कवि तुलसीदास जी ने लिखा था। वह भी भगवान राम के बड़े भक्त थे और हनुमान जी को बहुत मानते थे। इसमें 40 छंद होते हैं जिसके कारण इसको चालीसा कहा जाता है। यदि कोई भी इसका पाठ करता है हनुमान चालीसा का पाठ करना सभी के लिए बहुत लाभदायी होता है। इसका संबंध सिर्फ आपकी आस्था और धर्म से नहीं बल्कि आपकी शारीरिक और मानसिक समस्याओं को खत्म करने में भी यह बेहद प्रभावशाली है।  तो उसे चालीसा पाठ बोला जाता है। हनुमान चालीसा पाठ में बालाजी महाराज के गुणों का व्याख्यान करके उनके बड़े बड़े कार्यो को बताया गया है | हनुमानजी के चरित्र का बड़ा ही सुन्दर दर्शन इन चालीसा चौपाइयों के माध्यम से होता है | यह इतना शक्तिशाली पाठ है की मन से पाठ करने वाले भक्त के चारो तरफ के कृपा का चक्र बन जाता है और फिर नकारात्मक शक्तियाँ उसे छू भी नही पाती | जो भी व्यक्ति इसका मंगलवार , शनिवार या हर दिन पाठ करते है उन्हें हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और इनके पाठ करने वाले को कई चमत्कारी लाभ प्राप्त होते है | हनु

मां जगदंबा ने बचाई इंद्र की पत्नी शची की लाज

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मां जगदंबा ने बचाई इंद्र की पत्नी शची की लाज देवराज इंद्र की पत्नी शची बुरी तरह भयभीत थीं. देवताओं और मुनियों ने उनसे आ कर कहा था कि नहुष उनको पाने की इच्छा रखता है. वह कहता है अब जब सब लोगों ने मुझे इंद्र बना ही दिया है तो इंद्राणी को मेरी सेवा के लिये भेजो. उसने हमें इसी आदेश से भेजा है. शची ने भाग कर गुरु वृहस्पति की शरण ली और पूछा कि अब क्या करूं. वृहस्पति ने कहा चिंता मत करो, मैं तुम्हें उस नीच नहुष के हाथों में न जाने दूंगा. नहुष देवताओं का राजा बन बैठा है और इंद्र का पता ही नहीं चल पा रहा है कहां पर हैं. ऐसे में बस मां जगदंबा ही तुम्हारी रक्षा कर सकती हैं. शची ने पूछा उसके लिये क्या करना होगा. इस पर गुरु वृहस्पति ने कहा, मां आदिशक्ति की कठिन तपस्या कर उन्हें प्रसन्न करना होगा. इसमें समय लग सकता है. सबसे पहले कुछ ऐसी चाल चलनी पड़ेगी कि नहुष के पास जाने में थोड़ा वक्त लगे. इस दौरान तुम मां जगदंबा को प्रसन्न करने का प्रयास कर सकती हो. गुरु वृहस्पति की चाल के अनुसार शची देवताओं के साथ नहुष के पास गयीं. नहुष से बोली कि मैं आपकी सेवा को तैयार हूं. नहुष बहुत खुश हुआ. इंद्राणी

सुंदरकांड-चमत्कारिक प्रभाव देने वाला काव्य

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🙏 साभार अग्रेषित 🙏 सुंदरकांड- चमत्कारिक प्रभाव देने वाला काव्य  सुंदरकांड को समझ कर उसका पाठ करें तो हमें और भी आनंद आएगा। सुंदरकांड में 1 से 26 तक जो दोहे हैं, उनमें शिवजी का अवगाहन है, शिवजी का गायन है, वो शिव कांची है। क्योंकि शिव आधार हैं, अर्थात कल्याण। जहां तक आधार का सवाल है, तो पहले हमें अपने शरीर को स्वस्थ बनाना चाहिए, शरीर स्वस्थ होगा तभी हमारे सभी काम हो पाएंगे। किसी भी काम को करने के लिए अगर शरीर स्वस्थ है तभी हम कुछ कर पाएंगे, या कुछ कर सकते हैं। सुंदरकांड की एक से लेकर 26 चौपाइयों में तुलसी बाबा ने कुछ ऐसे गुप्त मंत्र हमारे लिए रखे हैं जो प्रकट में तो हनुमान जी का ही चरित्र है लेकिन अप्रकट में जो चरित्र है वह हमारे शरीर में चलता है। हमारे शरीर में 72000 नाड़ियां हैं उनमें से भी तीन सबसे महत्वपूर्ण हैं। जैसे ही हम सुंदरकांड प्रारंभ करते हैं- ॐ श्री परमात्मने नमः, तभी से हमारी नाड़ियों का शुद्धिकरण प्रारंभ हो जाता है। सुंदरकांड में एक से लेकर 26 दोहे तक में ऐसी ताकत है, ऐसी शक्ति है... जिसका बखान करना ही इस पृथ्वी के मनुष्यों के बस की बात नहीं है। इन दोहों में

काशी तो काशी है, काशी अविनाशी है!!!!!!

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काशी तो काशी है, काशी अविनाशी है!!!!!! पंचकोशी काशी का अविमुक्त क्षेत्र ज्योतिर्लिंग स्वरूप स्वयं भगवान विश्वनाथ हैं । ब्रह्माजी ने भगवान की आज्ञा से ब्रह्माण्ड की रचना की । तब दयालु शिव जी ने विचार किया कि कर्म-बंधन में बंधे हुए प्राणी मुझे किस प्रकार प्राप्त करेंगे ? इसलिए शिव जी ने काशी को ब्रह्माण्ड से पृथक् रखा और भगवान विश्वनाथ ने समस्त लोकों के कल्याण के लिए काशीपुरी में निवास किया । काशी को स्वयं भगवान शिव ने 'अविनाशी' और 'अविमुक्त क्षेत्र' कहा है । ज्योतिर्लिंग विश्वनाथ स्वरूप होने के कारण प्रलयकाल में भी काशी नष्ट नहीं होती है; क्योंकि प्रलय के समय जैसे-जैसे एकार्णव का जल बढ़ता है, वैसे-वैसे इस क्षेत्र को भगवान शंकर अपने त्रिशूल पर उठाते जाते हैं । स्कंद पुराण के अनुसार काशी नगरी का स्वरूप सतयुग में त्रिशूल के आकार का, त्रेता में चक्र के आकार का, द्वापर में रथ के आकार का तथा कलियुग में शंख के आकार का होता है । संसार की सबसे प्राचीन नगरी है काशी!!!!!! काशी को संसार की सबसे प्राचीन नगरी कहा जाता है; क्योंकि वेदों में भी इसका कई जगह उल्लेख है । पौराणि

विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण!!!!!!!!

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विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण!!!!!!!! भगवान ने सृष्टि रचना के साथ ही मनुष्य के मन, बुद्धि व हृदय के भीतर भगवन्भावना को बनाए रखने के लिए उसकी जिह्वा पर अपने-आप ही भगवन्नाम को प्रकट किया है ।  जब प्राणी पर विपत्ति आती है, दु:ख पड़ता है या अमंगल आता हुआ दिखाई देता है तो स्वत: ही मुख से ‘हे राम !’ या ‘हाय राम !’ की करुण ध्वनि निकल जाती है; आत्मा अनायास ही उस मंगलकर्ता भगवान के पावन मधुर नाम को पुकार उठती है। भगवान मनुष्य के चित्त को सदा आकर्षित करते हैं और वह सदा अंत:करण से भगवान को चाहता है । अत: भगवान का नाम उसकी रसना में अपने-आप स्फुरित होता है । यह भगवान की अहैतुकी कृपा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है । नाम में भगवान ने अपनी समस्त शक्ति और प्रकाश रख दिया है जिससे मनुष्य निर्भय होकर इस संसार की यात्रा कर सकता है । विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण!!!!!! विभिन्न रुचि, प्रकृति और संस्कारों के मनुष्यों के लिए भगवान ने स्वयं को अनेक नामों से व्यक्त किया है—ब्रह्म, परमात्मा, भगवान, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, नारायण, हरि, दुर्गा, काली, त

गायत्री मंत्र के जाप के नियम

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मित्रों आज हम आपको गायत्री मन्त्र के जप के नियम के बारे में बतायेगें!!!! सनातन धर्म के समस्त धर्म ग्रंथों में गायत्री की महिमा एक स्वर से कही गई। समस्त ऋषि-मुनि मुक्त कंठ से गायत्री का गुण-गान करते हैं। शास्त्रों में गायत्री की महिमा के पवित्र वर्णन मिलते हैं। गायत्री मंत्र तीनों देव, बृह्मा, विष्णु और महेश का सार है। गीता में भगवान् ने स्वयं कहा है ‘गायत्री छन्दसामहम्’ अर्थात् गायत्री मंत्र मैं स्वयं ही हूं। यज्ञोपवीत धारण करना, गुरु दीक्षा लेना और विधिवत् मन्त्र ग्रहण करना—शास्त्रों में तीन बातें गायत्री उपासना में आवश्यक और लक्ष्य तक पहुंचने में बड़ी सहायक मानी गई हैं । लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि इनके बिना गायत्री साधना नहीं हो सकती है । ईश्वर की वाणी या वेद की ऋचा को अपनाने में किसी पर भी कोई प्रतिबन्ध नहीं हो सकता है । गायत्री परब्रह्म की पराशक्ति है जो सम्पूर्ण जगत के प्राणों की रक्षा तथा पालन करती है । सृष्टिकर्ता ब्रह्मा से लेकर आधुनिक काल तक ऋषि-मुनियों, साधु-महात्माओं और अपना कल्याण चाहने वाले मनुष्यों ने गायत्री मन्त्र का आश्रय लिया है । यह मन्त्र यजुर्वेद व स

श्रीसरस्वत्यै देवीस्तोत्रम्

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 ।। श्रीसरस्वत्यै  देवीस्तोत्रम् ।। श्रीसरस्वत्यै नमः । श्री शारदे (सरस्वति)!  नमस्तुभ्यं जगद्भवनदीपिके । विद्वज्जनमुखाम्भोजभृङ्गिके!  मे मुखे वस ॥ १॥ वागीश्वरि!  नमस्तुभ्यं नमस्ते हंसगामिनि! । नमस्तुभ्यं जगन्मातर्जगत्कर्त्रिं!  नमोऽस्तु ते ॥ २॥ शक्तिरूपे!  नमस्तुभ्यं कवीश्वरि!  नमोऽस्तु ते । नमस्तुभ्यं भगवति!  सरस्वति!  नमोऽस्तुते ॥ ३॥ जगन्मुख्ये नमस्तुभ्यं वरदायिनि!  ते नमः । नमोऽस्तु तेऽम्बिकादेवि!  जगत्पावनि!  ते नमः ॥ ४॥ शुक्लाम्बरे!  नमस्तुभ्यं ज्ञानदायिनि!  ते नमः । ब्रह्मरूपे!  नमस्तुभ्यं ब्रह्मपुत्रि!  नमोऽस्तु ते ॥ ५॥ विद्वन्मातर्नमस्तुभ्यं वीणाधारिणि!  ते नमः । सुरेश्वरि!  नमस्तुभ्यं नमस्ते सुरवन्दिते! ॥ ६॥ भाषामयि!  नमस्तुभ्यं शुकधारिणि!  ते नमः । पङ्कजाक्षि!  नमस्तुभ्यं मालाधारिणि!  ते नमः ॥ ७॥ पद्मारूढे!  नमस्तुभ्यं पद्मधारिणि!  ते नमः । शुक्लरूपे नमस्तुभ्यं नमञ्जिपुरसुन्दरि ॥ ८॥ श्री(धी)दायिनि!  नमस्तुभ्यं ज्ञानरूपे!  नमोऽस्तुते । सुरार्चिते!  नमस्तुभ्यं भुवनेश्वरि!  ते नमः ॥ ९॥ कृपावति!  नमस्तुभ्यं यशोदायिनि!  ते नमः । सुखप्रदे!  नमस्तुभ्यं नमः सौभाग्यवर्द्ध

कालभैरवाष्टकं

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धार्मिक शास्त्रों के अनुसार श्री कालभैरवाष्टकं अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है। भैरव अष्‍टमी, भैरव जयंती और प्रति रविवार या बुधवार के दिन इसका पाठ करने से मनुष्य की हर आपदा और समस्या दूर होने लग जाती हैं और लाभ मिलने लगते हैं । श्री कालभैरवाष्टकं श्री भैरव जी को समर्पित हैं ! काल भैरव अष्टक देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् । नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ १॥ भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् । कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ २॥ शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् । भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ३॥ भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् । विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ४॥ धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशनं कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुम् । स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ५॥ रत्नपादुकाप्रभाभिरा

श्री नारायण कवच अर्थ सहित

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॥ श्री नारायण सम्पूर्ण कवच अर्थ सहित हिंदी में न्यास-  सर्वप्रथम श्रीगणेश जी तथा भगवान नारायण को नमस्कार करके नीचे लिखे प्रकार से न्यास करें – अङ्गन्यासः  ऊँ ऊँ नमः पादयोः –  (दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगुठा इन दोनों को मिलाकर दोनों पैरों का स्पर्श करें) ऊँ नं नमः जानुनो –  (दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगुठा इन दोनों को मिलाकर दोनों घुटनों का स्पर्श करें) ऊँ मों नमः ऊर्वो: –  (दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगुठा इन दोनों को मिलाकर दोनों पैरों की जाँघो का स्पर्श करें) ऊँ नां नमः उदरे –  (दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगुठा इन दोनों को मिलाकर पेट का स्पर्श करें) ऊँ रां नमः हृदि –  (मध्यमा, अनामिका और तर्जनी से हृदय का स्पर्श करें) ऊँ यं नमः उरसि –  (मध्यमा, अनामिका और तर्जनी से छाती का स्पर्श करें) ऊँ णां नमः मुखे –  (तर्जनी और अँगुठे के संयोग से मुख का स्पर्श करें) ऊँ यं नमः शिरसि –  (तर्जनी और मध्यमा के संयोग से सिर का स्पर्श करें) करन्यासः  ऊँ ऊँ नमः दक्षिणतर्जन्याम् –  (दाहिने अँगुठे से दाहिने तर्जनी के सिरे का स्पर्श करें) ऊँ नं नमः दक्षिणमध्यमायाम् –  (दहिने अँगुठे से दा

तिल चौथ की कहानी

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तिल चौथ की कहानी   *एक शहर में देवरानी जेठानी रहती थी । जेठानी अमीर थी और देवरानी गरीब थी। देवरानी गणेश जी की भक्त थी। देवरानी का पति जंगल से लकड़ी काट कर बेचता था और अक्सर बीमार रहता था। देवरानी जेठानी के घर का सारा काम करती और बदले में जेठानी बचा हुआ खाना, पुराने कपड़े आदि उसको दे देती थी। इसी से देवरानी का परिवार चल रहा था।* *माघ महीने में देवरानी ने तिल चौथ का व्रत किया।  पाँच रूपये का तिल व गुड़ लाकर तिलकुट्टा बनाया। पूजा करके तिल चौथ की कथा* *( तिल चौथ की कहानी ) सुनी और तिलकुट्टा छींके में रख दिया और सोचा की चाँद उगने पर पहले तिलकुट्टा और उसके बाद ही कुछ खायेगी।* *कथा सुनकर वह जेठानी के यहाँ चली गई। खाना बनाकर जेठानी के बच्चों से खाना खाने को कहा तो बच्चे बोले माँ ने व्रत किया हैं और माँ भूखी हैं। जब माँ खाना खायेगी हम भी तभी खाएंगे। जेठजी को खाना खाने को कहा तो जेठजी बोले ” मैं अकेला नही खाऊँगा , जब चाँद निकलेगा तब सब खाएंगे तभी मैं भी खाऊँगा ” जेठानी ने उसे कहा कि आज तो किसी ने भी अभी तक खाना नहीं खाया तुम्हें कैसे दे दूँ  तुम सुबह सवेरे ही बचा हुआ खाना ले जाना।* *देव

पंचदेव पूजन मंत्र संस्कृत - सोलह उपचार पूजन, ध्यान, प्राण प्रतिष्ठादि हिंदी विधि सहित

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पंचदेव पूजन मंत्र संस्कृत - सोलह उपचार पूजन, ध्यान, प्राण प्रतिष्ठादि हिंदी विधि सहित || पंचदेव पूजन मंत्र संस्कृत || आज मै आपको बताने वाला हूँ पंचदेव पूजन मन्त्र एवं पूजा विधि के बारे में जिसकी सहायता से आप पंचदेव पूजा आसानी से अपने घर पर कर सकते हैं | तो चलिए देखते है  किस विधि से करनी चाहिए पंचदेव पूजन एवं पंचदेव पूजन मन्त्र संस्कृत में दिया गया है और हर एक मन्त्र के साथ होने वाली क्रियाओं का हिंदी में उल्लेख किया गया है | पंचदेव पूजन में किस देवता की पूजा होती है ? आदित्यं गणनाथं च देवीं रुद्रं च केशवम्। पञ्चदैवत्यमित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत् ।।  अर्थात-   सूर्य ,  गणेश ,  दुर्गा ,  शिव ,  विष्णु - ये पंचदेव कहे गये हैं । इनकी पूजा सभी कार्यों में करनी चाहिय | प्रतिष्ठित मूर्ति, शालग्राम, बाणलिङ्ग, अग्नि और जल में आवाहन करना मना है। इसकी जगह पुष्पाञ्जलि दे। पञ्चायतन देवताओं के स्थान के भी कुछ अपने नियम हैं। इसी नियम के अनुसार इने स्थापित करना चाहिए । इस नियम का उल्लङ्कन करने से हानि हो सकती है। इस  पंचदेव पूजन मंत्र संस्कृत  में पूजा विधि   विष्णु पंचायतन