मां जगदंबा ने बचाई इंद्र की पत्नी शची की लाज

मां जगदंबा ने बचाई इंद्र की पत्नी शची की लाज

देवराज इंद्र की पत्नी शची बुरी तरह भयभीत थीं. देवताओं और मुनियों ने उनसे आ कर कहा था कि नहुष उनको पाने की इच्छा रखता है. वह कहता है अब जब सब लोगों ने मुझे इंद्र बना ही दिया है तो इंद्राणी को मेरी सेवा के लिये भेजो. उसने हमें इसी आदेश से भेजा है.

शची ने भाग कर गुरु वृहस्पति की शरण ली और पूछा कि अब क्या करूं. वृहस्पति ने कहा चिंता मत करो, मैं तुम्हें उस नीच नहुष के हाथों में न जाने दूंगा. नहुष देवताओं का राजा बन बैठा है और इंद्र का पता ही नहीं चल पा रहा है कहां पर हैं. ऐसे में बस मां जगदंबा ही तुम्हारी रक्षा कर सकती हैं.

शची ने पूछा उसके लिये क्या करना होगा. इस पर गुरु वृहस्पति ने कहा, मां आदिशक्ति की कठिन तपस्या कर उन्हें प्रसन्न करना होगा. इसमें समय लग सकता है. सबसे पहले कुछ ऐसी चाल चलनी पड़ेगी कि नहुष के पास जाने में थोड़ा वक्त लगे. इस दौरान तुम मां जगदंबा को प्रसन्न करने का प्रयास कर सकती हो.

गुरु वृहस्पति की चाल के अनुसार शची देवताओं के साथ नहुष के पास गयीं. नहुष से बोली कि मैं आपकी सेवा को तैयार हूं. नहुष बहुत खुश हुआ. इंद्राणी ने कहा, आप देवराज हैं आपसे एक वरदान चाहिये. मुझे दो चार दिन दीजिये. इसके बाद मैं आपके पास आ जाऊंगी ये देवता गण इसके गवाह रहेंगे.

असल में मैं हर ओर से पता कर के निश्चिंत हो जाना चाहती हूं कि मेरे पति अब नहीं रहे. क्यों कि इधर मैं आपको समर्पित हो जाऊं और उधर वे आ जायें तो यह तो धर्म के खिलाफ होगा. नहुष शची की निकटता की सोच कर खुश होता हुआ बोला, ठीक है ऐसा ही हो.

शची ने देवताओं से कहा कि अब इंद्र को जल्द से जल्द ढूंढ कर लाना आपकी जिम्मेदारी है. देवताओं ने मिलकर विचार किया और शची के साथ इस मुसीबत से निबटने के लिये क्या किया जाये जानने भगवान विष्णु के पास पहुंचे.

विष्णु ने कहा मैं इंद्र को ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त कराने की कोशिश कर सकता हूं जिसके भय से वे कहीं जा छिपे हैं पर वे कहां हैं यह तो मां जगदंबा ही बता सकती हैं और वही इस समस्या को हल कर सकती हैं. शची को उनकी पूजा कर उन्हें प्रसन्न करना चाहिये.

शची तुरंत ही मां जगदंबा की आराधन में लग गयी. शची पर संकट गंभीर था सो उन्होंने सभी भोग त्याग कर कड़ी कठिन तपस्या आरंभ कर दी. मां जगदंबा जल्द ही उनकी साधना से प्रसन्न हो गयीं और साक्षात दर्शन दिया.

करोड़ों सूर्यों के प्रकाश और चंद्रमाओं की शीतलता का अनुभव कराने वाले तीन नेत्रों वाले दिव्य शरीर के साथ वे प्रकट हुई उन्होंने पैरों की लंबाई तक का जो हार पहन रखा था वह चमकने वाले मोतियों से बना था.

मुसकराते हुये मां जगदंबा ने हाथ जोड़ कर खड़ी हुई शची से कहा. तुम्हारी आराधना से प्रसन्न हूं, मैं सुगमता से प्रकट नहीं होती करोड़ों जीवन का पुण्य इकट्ठा होने पर ही प्राणी मेरे दर्शन पा सकते हैं. अब मांगो जो कुछ मन में हो. शची बोली, माते पति का दर्शन हो जाये और नहुष से कोई भय न रहे. बस इतना ही.

देवी जगदंबा ने कहा, मेरी इस दूती के साथ जाओ. मानसरोवर के पास मेरी एक मूर्ति को जिसे विश्वकामा कहते हैं. वहीं इंद्र से तुम्हारी भेंट हो जायेगी. जल्द ही मैं नहुष को मोहित करुंगी और इसके कारण उसकी ताकत नष्ट हो जायेगी. इंद्र का पद उसके हाथ से जाता रहेगा. तुम्हारा मनोरथ मैं पूरा कर दूंगी.

देवी की दूती को साथ ले कर शची मानसरोवर पर विश्वकामा प्रतिमा के पास पहुंची. इंद्र उस समय वहीं छिपे थे. शची को मिल गये. इंद्र शची को वहां देखकर हैरान होकर पूछा मेरा यहां का पता किसने दिया तो शची ने कहा, मां जगदंबा ने.

शची ने सारी कहानी बतायी तो इंद्र ने कहा, विष्णु ने मेरे ब्रह्म हत्या का पाप टुकड़े टुकड़े कर खत्म कर दिया है अब तुम मां जगदंबा पर विश्वास रख कर गुरु वृहस्पति द्वारा बतायी विधि से उनकी आराधना करती रहो. वे ही राअस्ता बताएंगी और उसकी बुद्धि भ्रमित कर हमारे सारे मनोरथ पूरे करेंगी.

हुआ भी वही, मां ने शची को ऐसी बुद्धि प्रदान की कि वह नहुष के पास जाकर बोली कि, आप के लिये मैं उपलब्ध हूँ यदि आप आज तक किसी भी देवता द्वारा इस्लेमाल न की गयी अनूठी सवारी यानी अटल मुनियों के कांधों पर रखी पालकी में मेरे पास आएं.

इंद्र होने के घमंड में नहुष ने ऐसा ही किया, शची के पास पहुंचने की बेताबी में सप्तऋषियों को सर्प:सर्प: यानी चलो चलो कहते हुए अपशब्द कहे और कोड़े फटकारे. नाराज ऋषियों ने उसे भयंकर शरीर वाला सर्प बन जाने का श्राप दिया और वह तत्काल सांप बन कर धरते पर गिर पड़ा.

वृहस्पति ने यह समाचार सुना तो इसकी सूचना तुरंत इंद्र तक पहुंचा दी. उधर ऋषि मुनियों, देवताओं को यह समाचार मिला तो सब वृहस्पति जी से पता ले कर इंद्र के पास गये और पूरे सम्मान के साथ इंद्र को उनके आसन पर बैठा दिया, साथ ही शची की भी सारी समस्या मां जगदंबा ने दूर कर दी.

!! जय माता दी !!
दुर्गा दुर्गति दूर कर, मंगल कर सब काज|
मन मंदिर उज्वल करो, मात भवानी आज
!! जय माता रानी !!
   सुप्रभात वंदन

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