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तिल चौथ की कहानी

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तिल चौथ की कहानी   *एक शहर में देवरानी जेठानी रहती थी । जेठानी अमीर थी और देवरानी गरीब थी। देवरानी गणेश जी की भक्त थी। देवरानी का पति जंगल से लकड़ी काट कर बेचता था और अक्सर बीमार रहता था। देवरानी जेठानी के घर का सारा काम करती और बदले में जेठानी बचा हुआ खाना, पुराने कपड़े आदि उसको दे देती थी। इसी से देवरानी का परिवार चल रहा था।* *माघ महीने में देवरानी ने तिल चौथ का व्रत किया।  पाँच रूपये का तिल व गुड़ लाकर तिलकुट्टा बनाया। पूजा करके तिल चौथ की कथा* *( तिल चौथ की कहानी ) सुनी और तिलकुट्टा छींके में रख दिया और सोचा की चाँद उगने पर पहले तिलकुट्टा और उसके बाद ही कुछ खायेगी।* *कथा सुनकर वह जेठानी के यहाँ चली गई। खाना बनाकर जेठानी के बच्चों से खाना खाने को कहा तो बच्चे बोले माँ ने व्रत किया हैं और माँ भूखी हैं। जब माँ खाना खायेगी हम भी तभी खाएंगे। जेठजी को खाना खाने को कहा तो जेठजी बोले ” मैं अकेला नही खाऊँगा , जब चाँद निकलेगा तब सब खाएंगे तभी मैं भी खाऊँगा ” जेठानी ने उसे कहा कि आज तो किसी ने भी अभी तक खाना नहीं खाया तुम्हें कैसे दे दूँ  तुम सुबह सवेरे ही बचा हुआ खाना ले जाना।* *देव

पंचदेव पूजन मंत्र संस्कृत - सोलह उपचार पूजन, ध्यान, प्राण प्रतिष्ठादि हिंदी विधि सहित

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पंचदेव पूजन मंत्र संस्कृत - सोलह उपचार पूजन, ध्यान, प्राण प्रतिष्ठादि हिंदी विधि सहित || पंचदेव पूजन मंत्र संस्कृत || आज मै आपको बताने वाला हूँ पंचदेव पूजन मन्त्र एवं पूजा विधि के बारे में जिसकी सहायता से आप पंचदेव पूजा आसानी से अपने घर पर कर सकते हैं | तो चलिए देखते है  किस विधि से करनी चाहिए पंचदेव पूजन एवं पंचदेव पूजन मन्त्र संस्कृत में दिया गया है और हर एक मन्त्र के साथ होने वाली क्रियाओं का हिंदी में उल्लेख किया गया है | पंचदेव पूजन में किस देवता की पूजा होती है ? आदित्यं गणनाथं च देवीं रुद्रं च केशवम्। पञ्चदैवत्यमित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत् ।।  अर्थात-   सूर्य ,  गणेश ,  दुर्गा ,  शिव ,  विष्णु - ये पंचदेव कहे गये हैं । इनकी पूजा सभी कार्यों में करनी चाहिय | प्रतिष्ठित मूर्ति, शालग्राम, बाणलिङ्ग, अग्नि और जल में आवाहन करना मना है। इसकी जगह पुष्पाञ्जलि दे। पञ्चायतन देवताओं के स्थान के भी कुछ अपने नियम हैं। इसी नियम के अनुसार इने स्थापित करना चाहिए । इस नियम का उल्लङ्कन करने से हानि हो सकती है। इस  पंचदेव पूजन मंत्र संस्कृत  में पूजा विधि   विष्णु पंचायतन  

श्रीभगवती-मानस-पूजा-स्तोत्र भगवान् श्रीशङ्कराचार्य विरचित श्रीभगवती-मानस-पूजा-स्तोत्र (हिन्दी पद्यानुवाद प्रबोधन ॥

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मानस-पूजा के नियम हिन्दुओं की पूजा का मुख्य ध्येय अपने स्वरूप- मन, बुद्धि, चित्त और ‘अहङ्कार’ को क्रमशः प्रकाशित करना है । अस्तित्व के विभिन्न स्तरों को देखते ही हिन्दुओं ने विविध भावना-मयी पूजन-विधियों की रचना की है । इन सबमें ‘मानस-पूजन’ सबसे उत्तम पूजन-विधि है । इसमें बाह्यत्व का सर्वथा अभाव रहता है तथा भावना के द्वारा ‘इष्ट-देव’ के स्मरण-रूपी प्रकाश से अपने मन, बुद्धि, चित्त और अहङ्कार को प्रकाश-मय किया जाता है । ‘मानस-पूजा’ में पूजा करनेवाला एक ओर अपने मन, बुद्धि, चित्त और अहङ्कार को विषय-वासना से हटाता है, तो दूसरी ओर पूर्ण श्रद्धा के साथ विशुद्ध भावना-मयी क्रियाओं द्वारा एकमात्र सत्य, प्रकाश-मय अपने इष्ट-देव’ का स्मरण करता है, जिससे देह, प्राण, मन, बुद्धि आदि की बाधाएँ क्रमशः दूर हो जाती हैं और अन्ततः चित्त में साक्षात् ‘इष्ट-देव’ आविर्भूत हो जाते हैं । यहाँ यह उल्लेखनीय है कि प्रत्येक जीव के लिए विषय-उपभोगार्थ पाँच प्रधान मार्ग प्रति-क्षण सुलभ हैं । इन्हें हम ‘पञ्च ज्ञानेन्द्रिय’ कहते हैं । यथा- (१) नेत्र, (२) कर्ण, (३) नासिका, (४) जिह्वा और (५) त्वचा । इन्हीं पञ्च-

श्रीकृष्ण मानस पूजा

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श्री कृष्ण मानस पूजा स्तोत्रम् हृदम्भोजे कृष्णस्सजलजलदश्यामलतनुः सरोजाक्षः स्रग्वी मकुटकटकाद्याभरणवान् ।  शरद्राकानाथप्रतिमवदनः श्रीमुरलिकां  वहन् ध्येयो गोपीगणपरिवृतः कुङ्कुमचितः ॥ १ ॥  पयोम्भोधेर्द्वीपान्मम हृदयमायाहि भगवन् मणिव्रातभ्राजत्कनकवरपीठं भज हरे । सुचिह्नौ ते पादौ यदुकुलज नेनेज्मि सुजलैः गृहाणेदं दूर्वादलजलवदर्घ्यं मुररिपो ॥ २ ॥  त्वमाचामोपेन्द्र त्रिदशसरिदम्भोऽतिशिशिरं भजस्वेमं पञ्चामृतरचितमाप्लावमघहन् । द्युनद्याः कालिन्द्या अपि कनककुम्भस्थितमिदं  ।जलं तेन स्नानं कुरु कुरु कुरुष्वाचमनकम् ॥ ३ ॥  तटिद्वर्णे वस्त्रे भज विजयकान्ताधिहरण प्रलम्बारिभ्रातः मृदुलमुपवीतं कुरु गले । ललाटे पाटीरं मृगमदयुतं धारय हरे गृहाणेदं माल्यं शतदलतुलस्यादिरचितम् ॥ ४ ॥ दशाङ्गं धूपं सद्वरद चरणाग्रेऽर्पितमिदं मुखं दीपेनेन्दुप्रभ विरजसं देव कलये । इमौ पाणी वाणीपतिनुत सुकर्पूररजसा विशोध्याग्रे दत्तं सलिलमिदमाचाम नृहरे ॥ ५ ॥ सदातृप्ताऽन्नं षड्रसवदखिलव्यञ्जनयुतं सुवर्णामत्रे गोघृतचषकयुक्ते स्थितमिदम् । यशोदासूनो तत् परमदययाऽशान सखिभिः प्रसादं वाञ्छद्भिः सह तदनु नीरं

शिव मानस पूजा स्तुति

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शिव मानस पूजा स्तुति आदि गुरु  शंकराचार्य द्वारा रचित शिव मानस पूजा शिव की एक अनूठी स्तुति है। इस स्तुति में मात्र कल्पना से शिव को सामग्री अर्पित की गई है और पुराण कहते हैं कि ‍साक्षात शिव ने इस पूजा को स्वीकार किया था। यह स्तुति भगवान भोलेनाथ की महान उदारता को प्रस्तुत करती है। इस स्तुति को पढ़ते हुए भक्तों द्वारा शिवशंकर को श्रद्धापूर्वक मानसिक रूप से समस्त पंचामृत दिव्य सामग्री समर्पित की जाती है। हम कल्पना में ही उन्हें रत्नजडित सिहांसन पर आसीन करते हैं, दिव्य वस्त्र, भोजन तथा आभूषण आदि अर्पण करते हैं। वेबदुनिया पाठकों के लिए प्रस्तुत है हिन्दी अनुवाद सहित शिव मानस पूजा- -  रत्नैः कल्पितमानसं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं। नाना रत्न विभूषितम्‌ मृग मदामोदांकितम्‌ चंदनम॥ जाती चम्पक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा। दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितम्‌ गृह्यताम्‌॥1 ॥ हिन्दी भावार्थ - मैं अपने मन में ऐसी भावना करता हूं कि हे पशुपति देव! संपूर्ण रत्नों से निर्मित इस सिंहासन पर आप विराजमान होइए। हिमालय के शीतल जल से मैं आपको स्नान करवा रहा हूं। स्नान के उपरांत र

॥श्रीदुर्गामानस-पूजा।।

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॥श्रीदुर्गामानस-पूजा।। उद्यच्चन्दनकुङ्कुमारुणपयोधाराभिराप्लावितां नानानर्घ्यमणिप्रवालघटितां दत्तां गृहाणाम्बिके। आमृष्टां सुरसुन्दरीभिरभितो हस्ताम्बुजैर्भक्तितो मातः सुन्दरि भक्तकल्पलतिके श्रीपादुकामादरात्॥१॥ माता त्रिपुरसुन्दरी ! तुम भक्तजनों की मनोवांछा पूर्ण करने वाली कल्पलता हो । माँ ! यह पादुका आदरपूर्वक तुम्हारे श्रीचरणों में समर्पित है , इसे ग्रहण करो । यह उत्तम चन्दन और कुंकुम से मिली हुई लाल जल की धारा से धोयी गयी है । भाँति - भाँति की बहुमूल्य मणियों तथा मूँगों से इसका निर्माण हुआ है और बहुत - सी देवांगनाओं ने अपने कर - कमलों द्वारा भक्ति पूर्वक इसे सब ओर से धो - पोंछकर स्वच्छ बना दिया है ॥१॥ देवेन्द्रादिभिरर्चितं सुरगणैरादाय सिंहासनं चञ्चत्काञ्चनसंचयाभिरचितं चारुप्रभाभास्वरम्। एतच्चम्पककेतकीपरिमलं तैलं महानिर्मलं गन्धोद्वर्तनमादरेण तरुणीदत्तं गृहाणाम्बिके॥२॥ माँ ! देवताओं ने तुम्हारे बैठने के लिये यह दिव्य सिंहासन लाकर रख दिया है , इस पर विराजो । यह वह सिंहासन है , जिसको देवराज इन्द्र आदि भी पूजा करते हैं अपनी कान्ति से दमकते हुए राशि - राशि सुवर्ण से इसका निर्मा

श्रीगणेश मानसपूजा संपूर्णं ॥

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श्रीगणेश मानसपूजा  नानारत्नविचित्रकं रमणिकं सिंहासनं कल्पितम् । स्नानं जान्हविवारिणा गणपते पीतांबरं गृह्यताम् ।  कंठे मौक्तिकमालिका श्रुतियुगे द्वे धारिते कुंडले । नानारत्नविराजितो रविविभायुक्तः किरीटः शिरे ॥ १ ॥ भाले चर्चितकेशरं मृगमदामोदांकितं चंदनम् । नानावृक्षसमुद्गतं सुकुसुमं मंदारदुर्वाशमीः । गुग्गूल्लोद्धवधूपकं विरचितं दीपं त्वदग्रे स्थितम् । स्वीकृत ते गणेश भक्ष्यं जंबूफलं दक्षिणाम् ॥ २ ॥ साष्टांगं प्रणतोऽस्मि ते मम कृता पूजा गृहाण प्रभो । मे कामः सततं तवार्चनविधौ बुद्धिस्तवालिंगने । स्वेच्छा ते मुखदर्शने गणपते भक्तिस्तु पादांबुजे । प्रसीद मम पूजने गणपते मम वांच्छा तव दर्शने ॥ ३ ॥ माता गणेशश्र्च पिता गणेशो । भ्राता गणेशश्र्च सखा गणेशः । विद्यागणेशो द्रविणं गणेशः । स्वामी गणेशः शरणं गणेशः ॥ ४ ॥ इतो गणेशः परतो गणेशः । यतो यतो यामि ततो गणेशः । गणेशदेवादपरं न किंचित् । तस्मात् गणेशं शरणं प्रपद्ये ॥ ५ ॥ इति श्रीगणेश मानसपूजा संपूर्णं ॥ 

॥श्रीदुर्गामानस-पूजा।।

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॥ श्रीदुर्गामानस -पूजा ।। उद्यच्चन्दनकुङ्कुमारुणपयोधाराभिराप्लावितां नानानर्घ्यमणिप्रवालघटितां दत्तां गृहाणाम्बिके। आमृष्टां सुरसुन्दरीभिरभितो हस्ताम्बुजैर्भक्तितो मातः सुन्दरि भक्तकल्पलतिके श्रीपादुकामादरात्॥१॥ माता त्रिपुरसुन्दरी ! तुम भक्तजनों की मनोवांछा पूर्ण करने वाली कल्पलता हो । माँ ! यह पादुका आदरपूर्वक तुम्हारे श्रीचरणों में समर्पित है , इसे ग्रहण करो । यह उत्तम चन्दन और कुंकुम से मिली हुई लाल जल की धारा से धोयी गयी है । भाँति - भाँति की बहुमूल्य मणियों तथा मूँगों से इसका निर्माण हुआ है और बहुत - सी देवांगनाओं ने अपने कर - कमलों द्वारा भक्ति पूर्वक इसे सब ओर से धो - पोंछकर स्वच्छ बना दिया है ॥१॥ देवेन्द्रादिभिरर्चितं सुरगणैरादाय सिंहासनं चञ्चत्काञ्चनसंचयाभिरचितं चारुप्रभाभास्वरम्। एतच्चम्पककेतकीपरिमलं तैलं महानिर्मलं गन्धोद्वर्तनमादरेण तरुणीदत्तं गृहाणाम्बिके॥२॥ माँ ! देवताओं ने तुम्हारे बैठने के लिये यह दिव्य सिंहासन लाकर रख दिया है , इस पर विराजो । यह वह सिंहासन है , जिसको देवराज इन्द्र आदि भी पूजा करते हैं अपनी कान्ति से दमकते हुए राशि - राशि सुवर्ण

हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति)

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हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत ,नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म कहा जाता है। इसे ‘वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म’ भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है।                विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है।             यह धर्म अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए हैं।           अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है। इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम “हिन्दु आगम” है। हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने

पूर्णब्रह्म स्तोत्रम्

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पूर्णब्रह्म स्तोत्रम् पूर्णचन्द्रमुखं निलेन्दु रूपम् उद्भाषितं देवं दिव्यं स्वरूपम् पूर्णं त्वं स्वर्णँ त्वं वर्णं त्वं देवम् पिता माता बंधु त्वमेव सर्वम् जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमा म्यहम् जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमा म्यहम् ।।१।। कुंचि तकेशं च संचितवेशम् वर्तुलस्थूलनयनं ममेशम् पीनकनीनि का नयनकोशम् आकृष्टओष्ठं च उत्कृष्टश्वा सम् जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमा म्यहम् जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमा म्यहम् ।।२।। नीलाचले चंचलया सहितम् आदिदेव निश्चला नंदे स्थितम् आनन्दकन्दं विश्वविन्दुचंद्रम् नंदनन्दनं त्वं इन्द्रस्य इन्द्रम् जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमा म्यहम् जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमा म्यहम् ।।३।। सृष्टि स्थिति प्रलयसर्वमूलं सूक्ष्माति सुक्ष्मं त्वं स्थूला तिस्थूलम् कांति मयानन्तं अन्ति मप्रान्तं प्रशांतकुन्तलं ते मूर्त्तिमंतम् जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमा म्यहम् जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमा म्यहम् ।।४।। यज्ञतपवेदज्ञा ना त् अती तं भा वप्रेमछंदे सदा वशि त्वम् शुद्धा त् शुद्धं त्वं च पूर्णा त् पूर्णं कृष्ण मेघतुल्यं अमूल्यवर्णं जगन्नाथ स्वामी भक्

कर्म का फल

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*विष्णु जी की ये कहानी पढोगे तो आपका उद्धार ज़रुर होगा*🌹 कष्टों और संकटो से मुक्ति पाने के लिए विष्णु जी ने मनुष्य के कर्मो को ही महत्ता दी है। उनके अनुसार आपके कर्म ही आपके भविष्य का निर्धारण करते हैं। भाग्य के भरोसे बैठे रहने वाले लोगों का उद्धार होना संभव नहीं है। भाग्य और कर्म को अच्छे से समझने के लिए पुराणों में एक कहानी का उल्लेख मिलता है। एक बार देवर्षि नारद जी बैकुंठ धाम गए। वहां नारद जी ने श्रीहरि से कहा, "प्रभु! पृथ्वी पर अब आपका प्रभाव कम हो रहा है। धर्म पर चलने वालों को कोई अच्छा फल नहीं प्राप्त हो रहा, जो पाप कर रहे हैं उनका भला हो रहा है।’’ तब श्री विष्णु ने कहा, "ऐसा नहीं है देवर्षि जो भी हो रहा है सब नियति के जरिए हो रहा है।’’ वही उचित है। नारद जी बोले, "मैंने स्वयं अपनी आंखो से देखा है प्रभु, पापियों को अच्छा फल मिल रहा है और, धर्म के रास्ते पर चलने वाले लोगों को बुरा फल मिल रहा है।’’ विष्णु जी ने कहा, “कोई ऐसी घटना का उल्लेख करो।” नारद ने कहा अभी मैं एक जंगल से आ रहा हूं। वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी। कोई उसे बचाने नहीं आ रहा था। तभी एक चोर वहाँ से

तन्त्रोक्तं देवीसूक्तम्‌

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या देवी सर्वभूतेषु देवी से आरंभ देवी सूक्त देवी का सबसे असरकारी पाठ माना गया है। नवरात्रि में प्रतिदिन (प्रातः, मध्यान्ह एवं सायंकाल में) तीन पाठ करने का विधान है। यहां पढ़ें संपूर्ण पाठ ....  नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः। नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणता स्मरताम। ॥1॥   रौद्रायै नमो नित्ययै गौर्य धात्र्यै नमो नमः। ज्योत्यस्त्रायै चेन्दुरुपिण्यै सुखायै सततं नमः ॥2॥   कल्याण्यै प्रणतां वृद्धयै सिद्धयै कुर्मो नमो नमः। नैर्ऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नमः ॥3॥   दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै। ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः ॥4॥   अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नमः। नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै नमो नमः ॥5॥   या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥6॥   या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥7॥   या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरुपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥8॥   या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस