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भगवान शंकर के पुर्ण रूप काल भैरव

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एक बार सुमेरु पर्वत पर बैठे हुए ब्रम्हाजी के पास जाकर देवताओं ने उनसे अविनाशी तत्व बताने का अनुरोध किया | शिवजी की माया से मोहित ब्रह्माजी उस तत्व को न जानते हुए भी इस प्रकार कहने लगे - मैं ही इस संसार को उत्पन्न करने वाला स्वयंभू, अजन्मा, एक मात्र ईश्वर , अनादी भक्ति, ब्रह्म घोर निरंजन आत्मा हूँ|  मैं ही प्रवृति उर निवृति का मूलाधार , सर्वलीन पूर्ण ब्रह्म हूँ | ब्रह्मा जी ऐसा की पर मुनि मंडली में विद्यमान विष्णु जी ने उन्हें समझाते हुए कहा की मेरी आज्ञा से तो तुम सृष्टी के रचियता बने हो, मेरा अनादर करके तुम अपने प्रभुत्व की बात कैसे कर रहे हो ?  इस प्रकार ब्रह्मा और विष्णु अपना-अपना प्रभुत्व स्थापित करने लगे और अपने पक्ष के समर्थन में शास्त्र वाक्य उद्घृत करने लगे| अंततः वेदों से पूछने का निर्णय हुआ तो स्वरुप धारण करके आये चारों वेदों ने क्रमशः अपना मत६ इस प्रकार प्रकट किया -  ऋग्वेद- जिसके भीतर समस्त भूत निहित हैं तथा जिससे सब कुछ प्रवत्त होता है और जिसे परमात्व कहा जाता है, वह एक रूद्र रूप ही है |  यजुर्वेद- जिसके द्वारा हम वेद भी प्रमाणित होते हैं तथा जो ईश्वर के संपूर्

कमला एकादशी व्रत कथा

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                                    कमला एकादशी     युधिष्ठिर ने पूछा- भगवन्! अब मैं श्री विष्णु के उत्तम व्रतजो सब पापोंको हर लेनेवाला तथा व्रती मनुष्योको मनोवाञ्छित फल देनेवाला हो, श्रवण करना चाहता हूँ। जनार्दन ! पुरुषोत्तम मासकी एकादशीको कथा कहिये, उसका क्या फल है ? और उसमें किस देवताका पूजन किया जाता है ? प्रभो ! किस दानका क्या पुण्य है? मनुष्यों को क्या करना चाहिए? उस समय कैसे स्नान किया जाता है? किस मन्त्रका जप होता है? कैसी पूजन-विधि बतायी गयी है? पुरुषोत्तम ! पुरुषोत्तम मासमें किस अन्नका भोजन उत्तम है।   भगवान् श्रीकृष्ण बोले- राजेन्द्र ! अधिक मास आने पर जो एकादशी होती है, वह 'कमला' नाम से प्रसिद्ध है। वह तिथियों में उत्तम तिथि है। उसके व्रतके प्रभाव से लक्ष्मी अनुकूल होती है। उस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान् पुरुषोत्तम का स्मरण करे और विधि पूर्वक स्नान करके व्रती पुरुष व्रत नियम ग्रहण करे। घर पर जप करने का एक गुना, नदी के तट पर दूना, गोशाला में सहस्रगुना, अग्निहोत्र गृहमें एक हजार एक सौ गुना, शिव के क्षेत्रों में, तीर्थो में, देवताओं के निकट तथा तुलसी

पाप नाशक स्तोत्र

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अग्नि पुराण' में अग्निदेव द्वारा महर्षि वशिष्ठ को दिए गए विभिन्न उपदेश हैं। इसी के अंतर्गत इस पापनाशक स्तोत्र के बारे में महात्मा पुष्कर कहते हैं कि मनुष्य चित्त की मलिनता वश चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन आदि विभिन्न पाप करता है, पर जब चित्त कुछ शुद्ध होता है तब उसे इन पापों से मुक्ति की इच्छा होती है। उस समय भगवान नारायण की दिव्य स्तुति करने से समस्त पापों का प्रायश्चित पूर्ण होता है। इसीलिए इस दिव्य स्तोत्र का नाम 'समस्त पापनाशक स्तोत्र' है। इस प्रकार करें भगवान नारायण की स्तुति- पुष्करोवाच विष्णवे विष्णवे नित्यं विष्णवे नमः। नमामि विष्णुं चित्तस्थमहंकारगतिं हरिम्।।1 चित्तस्थमीशमव्यक्तमनन्तमपराजितम्। विष्णुमीड्यमशेषेण अनादिनिधनं विभुम्।।2 विष्णुश्चित्तगतो यन्मे विष्णुर्बुद्धिगतश्च यत्। यच्चाहंकारगो विष्णुर्यद्वष्णुर्मयि संस्थितः।।3 करोति कर्मभूतोऽसौ स्थावरस्य चरस्य च। तत् पापं नाशमायातु तस्मिन्नेव हि चिन्तिते।।4 ध्यातो हरति यत् पापं स्वप्ने दृष्टस्तु भावनात्। तमुपेन्द्रमहं विष्णुं प्रणतार्तिहरं हरिम्।।5 जगत्यस्मिन्निराधारे मज्जमाने तमस्यधः। हस्तावलम्बनं विष्णु प्रणमामि परात्पर

लिंगाष्टक स्तोत्र

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ब़ह्मामुरारिसुरार्चितलिंग निर्मलभासित शोभितलिंगम । जन्मजदु:खविनाशकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।1।। देवमुनिप्रवरार्चितलिंगं कामदहं करुणाकरलिंगम । रावणदर्पविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।2।। सर्वसुगंधिसुलेपित लिंगं बुद्धि विवर्धनकारणलिंगम । सिद्धसुरासुरवंदितलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगम ।।3।। कनकमहामणिभूषितलिंगं फणिपति वेष्टित शोभितलिंगम । दक्षसुयज्ञविनाशकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगम ।।4।। कुंकुमचन्दनलेपितलिंगंं पंकजहारसुशोभितलिंगम । संचितपापविनाशनलिंगं तत्प्रणमामि सदा शिवलिंगम ।।5।। देवगणार्चितसेवितलिंगं भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम । दिनकरकोटिप्रभाकर लिंगम पत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।6।। अष्टदलोपरिवेष्टितलिंगम सर्वसमुद्भवकारणलिंगम । अष्टदरिद्र विनाशितलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।7।। सुरगुरुसुरवरपूजितलिंगम सुरवनपुष्प सदार्चितलिंगम । परात्परपरमात्मकलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।8।। लिंगाष्टकमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ । शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ।।9।।

भाग्यनोत्ति मंत्र-

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Mantra For Good Luck: सोया हुआ भाग्य जगा देगा ये चमत्कारी मंत्र, नियमित जाप से हो सकता है सभी दुखों का नाश Mantra For Good Luck: संसार में हर व्यक्ति की किस्मत एक जैसी नहीं होती, अपने कर्मों और मेहनत के आधार पर ही उसके जीवन की स्थिति बनती है। हां कुछ लोगों का भाग्य इतना तेज होता है कि बिना ज्यादा प्रयास किए ही उन्हें सफलता मिल जाती है। तो वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों को पूरी मेहनत के बाद भी उसका आधा ही फल मिलता है और फिर वह व्यक्ति अपने भाग्य को कोसने लगता है, लेकिन ज्योतिष शास्त्र में भाग्य तेज करने के लिए कई तरह के उपाय बताए गए हैं। जो व्यक्ति के भाग्य को बदलने व सोये हुए भाग्य को जगाने के लिए कारगर साबित होते हैं। जिसमें से एक उपाय है चमत्कारी मंत्र का जाप। जी हां, ज्योतिष में एक ऐसा ही चमत्कारी मंत्र बताया गया है जो भाग्य को चमकाने का काम करता है, साथ ही जीवन में सुख-शांति भी लाता है। आइए जानते हैं कौन सा है वो मंत्र, कैसे करें इसका जाप और क्या-क्या मिलेंगे लाभ- भाग्यनोत्ति मंत्र- ॐ ऐं श्रीं भाग्योदयं कुरु कुरु श्रीं ऐं फट् ।।                                               

पृथ्वी स्तोत्रम्

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पृथ्वी स्तोत्रम  विष्णुरुवाच - यज्ञसूकरजाया त्वं जयं देहि जयावहे । जयेऽजये जयाधारे जयशीले जयप्रदे ॥ १॥ सर्वाधारे सर्वबीजे सर्वशक्तिसमन्विते । सर्वकामप्रदे देवि सर्वेष्टं देहि मे भवे ॥ २॥ सर्वशस्यालये सर्वशस्याढ्ये सर्वशस्यदे । सर्वशस्यहरे काले सर्वशस्यात्मिके भवे ॥ ३॥ मङ्गले मङ्गलाधारे मङ्गल्ये मङ्गलप्रदे । मङ्गलार्थे मङ्गलेशे मङ्गलं देहि मे भवे ॥ ४॥ भूमे भूमिपसर्वस्वे भूमिपालपरायणे । भूमिपाहङ्काररूपे भूमिं देहि च भूमिदे ॥ ५॥ इदं स्तोत्रं महापुण्यं तां सम्पूज्य च यः पठेत् । कोटिकोटि जन्मजन्म स भवेद् भूमिपेश्वरः ॥ ६॥ भूमिदानकृतं पुण्यं लभते पठनाज्जनः । भूमिदानहरात्पापान्मुच्यते नात्र संशयः ॥ ७॥ भूमौ वीर्यत्यागपापाद् भूमौ दीपादिस्थापनात् । पापेन मुच्यते प्राज्ञः स्तोत्रस्य पाठनान्मुने । अश्वमेधशतं पुण्यं लभते नात्र संशयः ॥ ८॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराणे प्रकृतिखण्डे विष्णुकृतं पृथ्वीस्तोत्रं सम्पूर्णम् । हिन्दी भावार्थ - भगवान् विष्णु बोले -- विजयकी प्राप्ति करानेवाली वसुधे ! मुझे विजय दो । तुम भगवान् यज्ञवराहकी पत्नी हो । जये! तुम्हारी कभी पराजय नहीं होती है । तुम विजयका आ

सुर्य मंडल स्तोत्रम्

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सूर्य मंडल स्तोत्रम् नमोऽस्तु सूर्याय सहस्ररश्मये सहस्रशाखान्वित संभवात्मने । सहस्रयोगोद्भव भावभागिने सहस्रसंख्यायुधधारिणे नमः ॥ 1 ॥ यन्मंडलं दीप्तिकरं विशालं रत्नप्रभं तीव्रमनादिरूपम् । दारिद्र्यदुःखक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 2 ॥ यन्मंडलं देवगणैः सुपूजितं विप्रैः स्तुतं भावनमुक्तिकोविदम् । तं देवदेवं प्रणमामि सूर्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 3 ॥ यन्मंडलं ज्ञानघनंत्वगम्यं त्रैलोक्यपूज्यं त्रिगुणात्मरूपम् । समस्ततेजोमयदिव्यरूपं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 4 ॥ यन्मंडलं गूढमतिप्रबोधं धर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानाम् । यत्सर्वपापक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 5 ॥ यन्मंडलं व्याधिविनाशदक्षं यदृग्यजुः सामसु संप्रगीतम् । प्रकाशितं येन च भूर्भुवः स्वः पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 6 ॥ यन्मंडलं वेदविदो वदंति गायंति यच्चारणसिद्धसंघाः । यद्योगिनो योगजुषां च संघाः पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 7 ॥ यन्मंडलं सर्वजनैश्च पूजितं ज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके । यत्कालकालाद्यमनादिरूपं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 8 ॥ यन्मंडलं विष्णुचतुर्मुखाख्यं यद

ढोल गँवार सूद्र पशु नारी*सकल ताड़ना के अधिकारी।।गोस्वामी तुलसीदास जी की इस चौपाई में दोष निकालने वाले अवश्य पढ़ें और गुनें ll

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ढोल गँवार सूद्र पशु नारी*सकल ताड़ना के अधिकारी।। गोस्वामी तुलसीदास जी की इस चौपाई में दोष निकालने वाले अवश्य पढ़ें और गुनें ll ढोल-: काठ की खोल तामें मढ़ो जात मृत चाम।       रसरी सो फाँस वा में मुँदरी अरझाबत हैं। मुँदरी अरझाय तीन गाँठ देत रसरी में।    चतुर सुजान वा को खैंच के चढ़ाबत हैं। खैंच के चढ़ाय मधुर थाप देत मंद मंद।     सप्तक सो साधि-साधि सुर सो मिलाबत हैं। याही विधि ताड़त गुनी बाजगीर ढोलन को।      माधव सुमधुर ताल सुर सो बजाबत हैं।। गँवार-:  मूढ़ मंदमति गुनरहित,अजसी चोर लबार।  मिथ्यावादी दंभरत, माधव निपट गँवार।। इन कहुँ समुझाउब कठिन,सहज सुनत नहिं कान। जा विधि समुझैं ताहि विधि,ताड़त चतुर सुजान।। सूद्र-: भोजन अभक्ष खात पियत अपेय सदा।     दुष्ट दुराचारी जे साधुन्ह सताबत हैं। मानत नहिं मातु-पितु भगिनी अरु पुत्रवधू।     कामरत लोभी नीच नारकी कहाबत हैं। सोइ नर सूद्रन्ह महुँ गने जात हैं माधव।    जिनके अस आचरन यह वेद सब बताबत हैं। इनकहुँ सुधारिबे को सबै विधि ताड़त  चतुर।     नाहक में मूढ़ दोष मानस को लगाबत हैं।। पशु-:  नहिं विद्या नहिं शील गुन,नहिं तप दया न दान। ज्ञान धर्म नह

महाविद्या #उग्र #तारा #प्रत्यंगिरा #कवचं-

🌹🙏#महाविद्या #उग्र #तारा #प्रत्यंगिरा #कवचं-🌹🙏 शत्रु समूह को विध्वंस करने वाला अति शक्ति शाली महाविद्या उग्र तारा कवचं की प्रशंसा जितनी कि जाए उतनी कम है,इसकी व्याख्या करना सूर्य को दीपक दिखाने के सामान है,जो साधक इसका नित्य पाठ करते हैं,उनके शत्रु स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं,वह कारगर की हवा खाते हैं या नगर छोड़ के चले जाते हैं,वह साधक के सेवक बन जाते हैं,जीवन में आ रही प्रत्येक बाधाओं को नष्ट करने में यह कवच अति सक्षम है।यह कवच तन्त्र बाधा नाशक है,किसी भी तरह की नकारात्मक शक्ति साधक को छू नही सकती। ।। तारा प्रत्य़ञ्गिरा कवचम् ।। ।। ॐ प्रत्य़ञ्गिरायै नमः ।। ईश्वर उवाच – ॐ तारायाः स्तम्भिनी देवी मोहिनी क्षोभिनी तथा । हस्तिनी भ्रामिनी रौद्री संहारण्यापि तारिणी । शक्तयोहष्टौ क्रमादेता शत्रुपक्षे नियोजितः । धारिता साधकेन्द्रेण सर्वशत्रु निवारिणी । ॐ स्तम्भिनी स्त्रें स्त्रें मम शत्रुन् स्तम्भय स्तम्भय । ॐ क्षोभिनी स्त्रें स्त्रें मम शत्रुन् क्षोभय क्षोभय । ॐ मोहिनी स्त्रें स्त्रें मम शत्रुन् मोहय मोहय । ॐ जृम्भिनी स्त्रें स्त्रें मम शत्रुन् जृम्भय जृम्भय । ॐ भ्रामिनी स्त्रें स्त्रें मम शत

कुबेर साधना रहस्य

कुबेर साधना रहस्य….. एक वार महा ऋषि पुलस्य के सिर पे बहुत बड़ी विपता आ पढ़ी और उन को उस समय में दरिद्रता का सहमना करना पड़ा जिस के चलते उस राज्य की प्रजा काल और सूखे की चपेट में या गई और धन न होने की वजह से चारो तरफ लोग भूख और गरीबी से बेहाल हो उठे तब महा ऋषि पुलस्य ने इस से उबरने के लिए कुबेर की सहायता लेनी चाही क्यू के वोह जानते थे के कुबेर के बिना धन नहीं आ सकता मगर दैवी नियमो के चलते कुबेर सीधे धन नहीं दे सकते थे !इस लिए महा ऋषि पुलस्य ने गणपती भगवान की साधना की तो गणपती ब्पा ने कुबेर को हुकम दिया के महा ऋषि की सहायता करे तो कुबेर ने कहा के अगर आप कुबेर यंत्र का स्थापन कर मेरे नो रूप में से किसी की भी साधना करेगे तो धन की बरसात होने लगेगी इस लिए महा ऋषि ने गणपती भगवान से प्रार्थना की और गणपती भगवान ने उन्हे कुबेर के 9 दिव्य रूप के मंत्र दिये महा ऋषि ने कुबेर यंत्र स्थापन कर कुबेर के 9 दिव्य रूप की साधना संपन की और परजा को दरिद्रता से उबारा साधना संपन होने से धन की बरसात होने लगी और चारो तरफ खुशहाली फ़ेल गई !इन 9 दिव्य रूपो की साधना आज भी हमारे शास्त्रो में है और जो एक वार इन साधनयो

कार्तिक मास व्रत कथा

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कार्तिक मास की कथा |        वैसे तो हिन्दू वैदिक पंचांग में बारह माह होते हैं किन्तु उन सभी में कार्तिक मास का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। कहा जाता है कि कार्तिक मास में हम जो भी दान – पुण्य करते हैं उसका कई गुना लाभ हमें भविष्य में मिलता है। कार्तिक माह को बहुत से लोग उत्तम माह के नाम से भी जानते हैं, क्योंकि यह सभी माह में सर्वोत्तम है। यदि आपका कोई विशेष कार्य लंबे समय से अटकता चला आ रहा हो तथा उसमें अनेक प्रकार की बढ़ाएँ उत्पन्न हो रही हों तो आपको कार्तिक माह के अंतर्गत नियमित रूप से नदी के तट पर दीपदान करना चाहिए। कार्तिक माह में किसी भी नदी में स्नान करने का भी बहुत अधिक महत्व होता है। साथ ही बहुत से लोग कार्तिक माह में व्रत व उपवास भी करते हैं। मान्यताओं के अनुसार किसी भी व्रत में व्रत कथा का बहुत अधिक महत्व होता है। अतः यदि आप कार्तिक मास का पूर्ण लाभ उठाना चाहते हैं, तो यहां दी हुए कार्तिक मास की कथा का पाठ अवश्य करें। कार्तिक मास की कथा किसी गाँव में एक बुढ़िया रहती थी और वह कार्तिक का व्रत रखा करती थी। उसके व्रत खोलने के समय कृष्ण भगवान आते और एक कटोरा खिचड़ी का

🚩 शयन विधान।🚩🚩

🚩 शयन विधान।🚩🚩 *सूर्यास्त के एक प्रहर (लगभग 3 घंटे) के बाद ही शयन करना।* *सोने की मुद्राऐं:*              *उल्टा सोये भोगी,*             *सीधा सोये योगी,*            *दांऐं सोये रोगी,*            *बाऐं सोये निरोगी।* *शास्त्रीय विधान भी है।*  *आयुर्वेद में ‘वामकुक्षि’ की बात आती हैं,*    *बायीं करवट सोना स्वास्थ्य के लिये हितकर हैं।* *शरीर विज्ञान के अनुसार चित सोने से रीढ़ की हड्डी को नुकसान और औधा या ऊल्टा सोने से आँखे बिगडती है।* *सोते समय कितने गायत्री मंन्त्र गिने जाए :-* *"सूतां सात, उठता आठ”सोते वक्त सात भय को दूर करने के लिए सात मंन्त्र गिनें और उठते वक्त आठ कर्मो को दूर करने के लिए आठ मंन्त्र गिनें।* *"सात भय:-"*  *इहलोक,परलोक,आदान,* *अकस्मात ,वेदना,मरण ,* *अश्लोक (भय)* *दिशा घ्यान:-*  *दक्षिणदिशा (South) में पाँव रखकर कभी सोना नहीं चाहिए । यम और दुष्टदेवों का निवास है ।कान में हवा भरती है । मस्तिष्क  में रक्त का संचार कम को जाता है स्मृति- भ्रंश,व असंख्य बीमारियाँ होती है।* *यह बात वैज्ञानिकों ने एवं वास्तुविदों ने भी जाहिर की है।* *1:- पूर्व ( E ) दिशा में मस

ललिता महालक्ष्मी स्तोत्र

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ललिता महालक्ष्मी स्तोत्र वैष्णव-सम्प्रदाय के प्रसिद्ध ग्रन्थ “लक्ष्मी-नारायण-संहिता” से उद्धृत निम्न स्तोत्र शक्ति-साधना से सम्बन्धित है। वैष्णव ग्रन्थ होने के कारण इनकी साधना-प्रणाली ‘वैष्णवाचार’-परक है। ।। श्री नारायणी श्रीरुवाच ।। ललिताख्य-महा-लक्ष्म्या, नामान्यसंख्यानि वै । तथाप्यष्टोत्तर-शतं, स-पादं श्रावय प्रभो ! ।। हे प्रभो ! ललिता महा-लक्ष्मी के असंख्य नाम हैं । तथापि उनके एक सौ पैंतीस नामों को सुनाइए । ।। श्री पुरुषोत्तमोवाच ।। मुख्य-नाम्नां प्रपाठेन, फलं सर्वाभिधानकम् । भवेदेवेति मुख्यानि, तत्र वक्ष्यामि संश्रृणु ।। ललिता श्री महा-लक्ष्मीर्लक्ष्मी रमा च पद्मिनी । कमला सम्पदीशा च, पद्मालयेन्दिरेश्वरी ।। परमेशी सती ब्राह्मी, नारायणी च वैष्णवी । परमेश्वरी महेशानी, शक्तीशा पुरुषोत्तमी ।। बिम्बी माया महा-माया, मूल-प्रकृतिरच्युती । वासुदेवी हिरण्या च हरिणी च हिरण्मयी ।। कार्ष्णी कामेश्वरी चापि कामाक्षी भगमालिनी । वह्निवासा सुन्दरी च संविच्च विजया जया ।। मंगला मोहिनी तापी वाराही सिद्धिरीशिता । भुक्तिः कौमारिकी बुद्धिश्चामृता दुःखहा प्रसूः ।। सुभाग्यानन्दिनी संपद्, विमला

पंचमुखी हनुमान में है भगवान शंकर के पांच अवतारों की शक्ति!!!!!!!!

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पंचमुखी हनुमान में है भगवान शंकर के पांच अवतारों की शक्ति!!!!!!!! शंकरजी के पांचमुख—तत्पुरुष, सद्योजात, वामदेव, अघोर व ईशान हैं; उन्हीं शंकरजी के अंशावतार हनुमानजी भी पंचमुखी हैं । मार्गशीर्ष (अगहन) मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को, पुष्य नक्षत्र में, सिंहलग्न तथा मंगल के दिन पंचमुखी हनुमानजी ने अवतार धारण किया । हनुमानजी का यह स्वरूप सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है । हनुमानजी का एकमुखी, पंचमुखी और ग्यारहमुखी स्वरूप ही अधिक प्रचलित हैं । हनुमानजी के पांचों मुखों के बारे में श्रीविद्यार्णव-तन्त्र में इस प्रकार कहा गया है— पंचवक्त्रं महाभीमं त्रिपंचनयनैर्युतम् । बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकाम्यार्थ सिद्धिदम् ।। विराट्स्वरूप वाले हनुमानजी के पांचमुख, पन्द्रह नेत्र हैं और दस भुजाएं हैं जिनमें दस आयुध हैं—‘खड्ग, त्रिशूल, खटवांग, पाश, अंकुश, पर्वत, स्तम्भ, मुष्टि, गदा और वृक्ष की डाली । ▪️ पंचमुखी हनुमानजी का पूर्व की ओर का मुख वानर का है जिसकी प्रभा करोड़ों सूर्य के समान है । वह विकराल दाढ़ों वाला है और उसकी भृकुटियां (भौंहे) चढ़ी हुई हैं । ▪️ दक्षिण की ओर वाला मुख नृसिं

कलियुग का खेल!!!!!!

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कलियुग का खेल!!!!!! जैसे द्वार की देहरी पर रखा दीपक कमरे में और कमरे के बाहर भी प्रकाश फैला देता है, वैसे ही यदि तुम अपने बाहर और भीतर प्रकाश चाहते हो तो जीभ की देहरी पर राम-नाम का मणिद्वीप रख दो । पूर्वकाल में एक राम-नामी संत हुए । वे अपने सत्संग में लोगों से कहते— राम जपु, राम जपु, राम जपु बावरे । घोर भव-नीर-निधि नाम निजु नाव, रे ।। (विनयपत्रिका ६६) तुम राजा राम का नाम जपो; क्योंकि यही निर्बल का बल है, असहाय का मित्र है, अभागे का भाग्य है, अंधे की लाठी है, पंगु का हाथ-पांव है, निराधार का आधार और भूखे का मां-बाप है । इस कलिकाल में राम-नाम ही मनुष्य का सच्चा साथी और हाथ पकड़ने वाला गुरु है । यही ‘तारक ब्रह्म’ है— कलिजुग केवल हरि गुन गाहा । गावत नर पावहिं भव थाहा ।। कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना । एक अधार राम गुन गाना ।। (राचमा ७।१०३।४-५) एक दिन उस संत के पास कलियुग ब्राह्मण-वेश में पधारे । कलिपुरुष ने संत को अपना परिचय देकर आदेश दिया कि—‘तुम सत्संग करते हो, उसमें लोगों से आत्मा-परमात्मा की चर्चा करते हो । तुम राम-नाम जप करने पर बल देते हो । इससे लोगों का मनोबल बढ़ता है । भगवन्

वेदों में जब भाट बन कर की राजा राम की स्तुति!!!!!!!

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वेदों में जब भाट बन कर की राजा राम की स्तुति!!!!!!! भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान की आराधना, स्तुति करना आवश्यक है । भगवत्कृपा केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं वरन्, देवता, दानव, वेद, ऋषि-मुनि-त्रिलोकी के समस्त जीवों की चाह रही है; क्योंकि यही सुख-शान्ति व सफलता का साधन है । राज्याभिषेक हो जाने पर राजा की स्तुति करने की परम्परा है । जब प्रभु श्रीराम का राज्याभिषेक हो गया, तब वेदों ने सोचा कि अभी-अभी सिंहासन पर बैठे प्रभु श्रीराम का दर्शन करना चाहिए; किन्तु दरबार में इतनी भीड़ है कि श्रीराम तक पहुँच पाना बहुत कठिन है । वेदों को 'भगवान का भाट' कहा गया है । अत: वेदों ने वन्दी (भाट) का वेष धारण कर लिया क्योंकि भाट का काम राजा का यशोगान करना होता है, अत: अब राजा राम तक पहुंचने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता । भिन्न भिन्न अस्तुति करि गए सुर निज निज धाम । बंदी बेष बेद तब आए जहँ श्रीराम ।। प्रभु सर्बग्य कीन्ह अति आदर कृपानिधान । लखेउ न काहूँ मरम कछु लगै करन गुन गान ।। (राचमा ७।१२ ख-ग) वेद जब वन्दी वेष में श्रीराम दरबार में पधारे तो प्रभु श्रीराम के अलावा अन्य कोई उन्हें

सबकुछ ठीक ना चल रहा हो तो करें बजरंग बाण का पाठ!!!!!?

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सबकुछ ठीक ना चल रहा हो तो करें बजरंग बाण का पाठ!!!!!? जीवन में आ रहे प्रतिकूल प्रभावों को दूर करने के लिए 'बजरंग बाण' का जाप किया जाता है असाध्य रोग, शारीरिक कष्ट, मानसिक अशांति, व्यापार में रुकावट होने पर श्रीराम के परमभक्त मंगलमूर्ति मारुति नंदन श्री हनुमान जी की सेवा व पूजा से लाभ मिलता है। श्री हनुमान जी की उपासना के समय बजरंग बाण का विधिपूर्वक श्रद्धाभाव से पाठ करना विशेष फलदायी होता है। मंगलवार या शनिवार के दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा स्थल पर हनुमानजी का चित्र या मूर्ति स्थापित करें तथा बैठने के लिए लाल रंग के आसन का प्रयोग करें। हनुमानजी की उपासना एवं बजरंग बाण के पाठ से पूर्व शुद्ध तिल का तेल भर दें तथा कच्चे लाल रंग में रंगे सूत की पंचमुखी बत्ती बनाकर दीपक में डालकर प्रज्जवलित करें। शुद्ध गूगल की धूनी, धूप, लाल रंग के पुष्प, लाल चंदन या रोली आदि से हनुमानजी की ध्यान मग्न होकर उपासना करते हुए बजरंग बाण का पाठ शुरू करें। एक ही बैठक में बजरंग बाण का 108 बार पाठ करना ज्यादा लाभ देता है। इसके अलावा हनुमान चालीसा और श्रीरामस्रोत का पठन भी जीवन जातक को कुप्

11 मुखी हनुमान जी की पूजा से मिलते हैं कई लाभ, जानें किस मूर्ति से कौन सी मनोकामना होती है पूरी

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11 मुखी हनुमान जी की पूजा से मिलते हैं कई लाभ, जानें किस मूर्ति से कौन सी मनोकामना होती है पूरी 1. पूर्वमुखी हुनमान जी- पूर्व की तरफ मुख वाले बजरंबली को वानर रूप में पूजा जाता है। इस रूप में भगवान को बेहद शक्तिशाली और करोड़ों सूर्य के तेज के समान बताया गया है। शत्रुओं के नाश के बजरंगबली जाने जाते हैं। दुश्मन अगर आप पर हावी हो रहे तो पूर्वमूखी हनुमान की पूजा शुरू कर दें। 2. पश्चिममुखी हनुमान जी- पश्चिम की तरफ मुख वाले हनुमानजी को गरूड़ का रूप माना जाता है। इसी रूप संकटमोचन का स्वरूप माना गया है। मान्यता है कि भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ अमर है उसी के समान बजरंगबली भी अमर हैं। यही कारण है कि कलयुग के जाग्रत देवताओं में बजरंगबली को माना जाता है। 3. उत्तरामुखी हनुमान जी- उत्तर दिशा की तरफ मुख वाले हनुमान जी की पूजा शूकर के रूप में होती है। एक बात और वह यह कि उत्तर दिशा यानी ईशान कोण देवताओं की दिशा होती है। यानी शुभ और मंगलकारी। इस दिशा में स्थापित बजरंगबली की पूजा से इंसान की आर्थिक स्थिति बेहतर होती है। इस ओर मुख किए भगवान की पूजा आपको धन-दौलत, ऐश्वर्य, प्रतिष्ठा, लंबी आयु के

जन्मों का कर्ज*

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*जन्मों का कर्ज*           एक सेठ जी बहुत ही दयालु थे। धर्म-कर्म में यकीन करते थे। उनके पास जो भी व्यक्ति उधार माँगने आता वे उसे मना नहीं करते थे। सेठ जी मुनीम को बुलाते और जो उधार माँगने वाला व्यक्ति होता उससे पूछते कि "भाई ! तुम उधार कब लौटाओगे ? इस जन्म में या फिर अगले जन्म में ?"           जो लोग ईमानदार होते वो कहते - "सेठ जी ! हम तो इसी जन्म में आपका कर्ज़ चुकता कर देंगे।" और कुछ लोग जो ज्यादा चालक व बेईमान होते वे कहते - "सेठ जी ! हम आपका कर्ज़ अगले जन्म में उतारेंगे।" और अपनी चालाकी पर वे मन ही मन खुश होते कि "क्या मूर्ख सेठ है ! अगले जन्म में उधार वापसी की उम्मीद लगाए बैठा है।" ऐसे लोग मुनीम से पहले ही कह देते कि वो अपना कर्ज़ अगले जन्म में लौटाएंगे और मुनीम भी कभी किसी से कुछ पूछता नहीं था। जो जैसा कह देता मुनीम वैसा ही बही में लिख लेता।          एक दिन एक चोर भी सेठ जी के पास उधार माँगने पहुँचा। उसे भी मालूम था कि सेठ अगले जन्म तक के लिए रकम उधार दे देता है। हालांकि उसका मकसद उधार लेने से अधिक सेठ की तिजोरी को देखना था। चोर

बिल्ववृक्ष

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बिल्ववृक्ष-- 1. बिल्व वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते l 2. अगर किसी की शव यात्रा बिल्व वृक्ष की छाया से होकर गुजरे तो उसका मोक्ष हो जाता है l 3. वायुमंडल में व्याप्त अशुध्दियों को सोखने की क्षमता सबसे ज्यादा बिल्व वृक्ष में होती है l 4. चार, पांच, छः या सात पत्तो वाले बिल्व पत्र पाने वाला परम भाग्यशाली और शिव को अर्पण करने से अनंत गुना फल मिलता है l  5. बेल वृक्ष को काटने से वंश का नाश होता है एवं बेल वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि होती है। 6. सुबह शाम बेल वृक्ष के दर्शन मात्र से पापो का नाश होता है। 7. बेल वृक्ष को सींचने से पित्र तृप्त होते है। 8. बेल वृक्ष और सफ़ेद आक् को जोड़े से लगाने पर अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। 9. बेल पत्र और ताम्र धातु के एक विशेष प्रयोग से ऋषि मुनि स्वर्ण धातु का उत्पादन करते थे । 10. जीवन में सिर्फ एक बार और वो भी यदि भूल से भी शिव लिंग पर बेल पत्र चढ़ा दिया हो तो भी जीव सभी पापों से मुक्त हो जाते है l 11. बेल वृक्ष का रोपण, पोषण और संवर्धन करने से महादेव से साक्षात्कार करने का अवश्य लाभ मिलता है। कृपया बिल्व पत्र का पेड़ जरूर लगाये । बिल्व पत्र के

हनुमान चालीसा में है ये पांच चमत्कारी चौपाई, जिनको पढ़ने से होती है हर इच्छा पूरी

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हनुमान चालीसा में है ये पांच चमत्कारी चौपाई, जिनको पढ़ने से होती है हर इच्छा पूरी  हनुमान चालीसा को महान कवि तुलसीदास जी ने लिखा था। वह भी भगवान राम के बड़े भक्त थे और हनुमान जी को बहुत मानते थे। इसमें 40 छंद होते हैं जिसके कारण इसको चालीसा कहा जाता है। यदि कोई भी इसका पाठ करता है हनुमान चालीसा का पाठ करना सभी के लिए बहुत लाभदायी होता है। इसका संबंध सिर्फ आपकी आस्था और धर्म से नहीं बल्कि आपकी शारीरिक और मानसिक समस्याओं को खत्म करने में भी यह बेहद प्रभावशाली है।  तो उसे चालीसा पाठ बोला जाता है। हनुमान चालीसा पाठ में बालाजी महाराज के गुणों का व्याख्यान करके उनके बड़े बड़े कार्यो को बताया गया है | हनुमानजी के चरित्र का बड़ा ही सुन्दर दर्शन इन चालीसा चौपाइयों के माध्यम से होता है | यह इतना शक्तिशाली पाठ है की मन से पाठ करने वाले भक्त के चारो तरफ के कृपा का चक्र बन जाता है और फिर नकारात्मक शक्तियाँ उसे छू भी नही पाती | जो भी व्यक्ति इसका मंगलवार , शनिवार या हर दिन पाठ करते है उन्हें हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और इनके पाठ करने वाले को कई चमत्कारी लाभ प्राप्त होते है | हनु