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🚩 शयन विधान।🚩🚩

🚩 शयन विधान।🚩🚩 *सूर्यास्त के एक प्रहर (लगभग 3 घंटे) के बाद ही शयन करना।* *सोने की मुद्राऐं:*              *उल्टा सोये भोगी,*             *सीधा सोये योगी,*            *दांऐं सोये रोगी,*            *बाऐं सोये निरोगी।* *शास्त्रीय विधान भी है।*  *आयुर्वेद में ‘वामकुक्षि’ की बात आती हैं,*    *बायीं करवट सोना स्वास्थ्य के लिये हितकर हैं।* *शरीर विज्ञान के अनुसार चित सोने से रीढ़ की हड्डी को नुकसान और औधा या ऊल्टा सोने से आँखे बिगडती है।* *सोते समय कितने गायत्री मंन्त्र गिने जाए :-* *"सूतां सात, उठता आठ”सोते वक्त सात भय को दूर करने के लिए सात मंन्त्र गिनें और उठते वक्त आठ कर्मो को दूर करने के लिए आठ मंन्त्र गिनें।* *"सात भय:-"*  *इहलोक,परलोक,आदान,* *अकस्मात ,वेदना,मरण ,* *अश्लोक (भय)* *दिशा घ्यान:-*  *दक्षिणदिशा (South) में पाँव रखकर कभी सोना नहीं चाहिए । यम और दुष्टदेवों का निवास है ।कान में हवा भरती है । मस्तिष्क  में रक्त का संचार कम को जाता है स्मृति- भ्रंश,व असंख्य बीमारियाँ होती है।* *यह बात वैज्ञानिकों ने एवं वास्तुविदों ने भी जाहिर की है।* *1:- पूर्व ( E ) दिशा में मस

ललिता महालक्ष्मी स्तोत्र

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ललिता महालक्ष्मी स्तोत्र वैष्णव-सम्प्रदाय के प्रसिद्ध ग्रन्थ “लक्ष्मी-नारायण-संहिता” से उद्धृत निम्न स्तोत्र शक्ति-साधना से सम्बन्धित है। वैष्णव ग्रन्थ होने के कारण इनकी साधना-प्रणाली ‘वैष्णवाचार’-परक है। ।। श्री नारायणी श्रीरुवाच ।। ललिताख्य-महा-लक्ष्म्या, नामान्यसंख्यानि वै । तथाप्यष्टोत्तर-शतं, स-पादं श्रावय प्रभो ! ।। हे प्रभो ! ललिता महा-लक्ष्मी के असंख्य नाम हैं । तथापि उनके एक सौ पैंतीस नामों को सुनाइए । ।। श्री पुरुषोत्तमोवाच ।। मुख्य-नाम्नां प्रपाठेन, फलं सर्वाभिधानकम् । भवेदेवेति मुख्यानि, तत्र वक्ष्यामि संश्रृणु ।। ललिता श्री महा-लक्ष्मीर्लक्ष्मी रमा च पद्मिनी । कमला सम्पदीशा च, पद्मालयेन्दिरेश्वरी ।। परमेशी सती ब्राह्मी, नारायणी च वैष्णवी । परमेश्वरी महेशानी, शक्तीशा पुरुषोत्तमी ।। बिम्बी माया महा-माया, मूल-प्रकृतिरच्युती । वासुदेवी हिरण्या च हरिणी च हिरण्मयी ।। कार्ष्णी कामेश्वरी चापि कामाक्षी भगमालिनी । वह्निवासा सुन्दरी च संविच्च विजया जया ।। मंगला मोहिनी तापी वाराही सिद्धिरीशिता । भुक्तिः कौमारिकी बुद्धिश्चामृता दुःखहा प्रसूः ।। सुभाग्यानन्दिनी संपद्, विमला

पंचमुखी हनुमान में है भगवान शंकर के पांच अवतारों की शक्ति!!!!!!!!

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पंचमुखी हनुमान में है भगवान शंकर के पांच अवतारों की शक्ति!!!!!!!! शंकरजी के पांचमुख—तत्पुरुष, सद्योजात, वामदेव, अघोर व ईशान हैं; उन्हीं शंकरजी के अंशावतार हनुमानजी भी पंचमुखी हैं । मार्गशीर्ष (अगहन) मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को, पुष्य नक्षत्र में, सिंहलग्न तथा मंगल के दिन पंचमुखी हनुमानजी ने अवतार धारण किया । हनुमानजी का यह स्वरूप सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है । हनुमानजी का एकमुखी, पंचमुखी और ग्यारहमुखी स्वरूप ही अधिक प्रचलित हैं । हनुमानजी के पांचों मुखों के बारे में श्रीविद्यार्णव-तन्त्र में इस प्रकार कहा गया है— पंचवक्त्रं महाभीमं त्रिपंचनयनैर्युतम् । बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकाम्यार्थ सिद्धिदम् ।। विराट्स्वरूप वाले हनुमानजी के पांचमुख, पन्द्रह नेत्र हैं और दस भुजाएं हैं जिनमें दस आयुध हैं—‘खड्ग, त्रिशूल, खटवांग, पाश, अंकुश, पर्वत, स्तम्भ, मुष्टि, गदा और वृक्ष की डाली । ▪️ पंचमुखी हनुमानजी का पूर्व की ओर का मुख वानर का है जिसकी प्रभा करोड़ों सूर्य के समान है । वह विकराल दाढ़ों वाला है और उसकी भृकुटियां (भौंहे) चढ़ी हुई हैं । ▪️ दक्षिण की ओर वाला मुख नृसिं

कलियुग का खेल!!!!!!

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कलियुग का खेल!!!!!! जैसे द्वार की देहरी पर रखा दीपक कमरे में और कमरे के बाहर भी प्रकाश फैला देता है, वैसे ही यदि तुम अपने बाहर और भीतर प्रकाश चाहते हो तो जीभ की देहरी पर राम-नाम का मणिद्वीप रख दो । पूर्वकाल में एक राम-नामी संत हुए । वे अपने सत्संग में लोगों से कहते— राम जपु, राम जपु, राम जपु बावरे । घोर भव-नीर-निधि नाम निजु नाव, रे ।। (विनयपत्रिका ६६) तुम राजा राम का नाम जपो; क्योंकि यही निर्बल का बल है, असहाय का मित्र है, अभागे का भाग्य है, अंधे की लाठी है, पंगु का हाथ-पांव है, निराधार का आधार और भूखे का मां-बाप है । इस कलिकाल में राम-नाम ही मनुष्य का सच्चा साथी और हाथ पकड़ने वाला गुरु है । यही ‘तारक ब्रह्म’ है— कलिजुग केवल हरि गुन गाहा । गावत नर पावहिं भव थाहा ।। कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना । एक अधार राम गुन गाना ।। (राचमा ७।१०३।४-५) एक दिन उस संत के पास कलियुग ब्राह्मण-वेश में पधारे । कलिपुरुष ने संत को अपना परिचय देकर आदेश दिया कि—‘तुम सत्संग करते हो, उसमें लोगों से आत्मा-परमात्मा की चर्चा करते हो । तुम राम-नाम जप करने पर बल देते हो । इससे लोगों का मनोबल बढ़ता है । भगवन्

वेदों में जब भाट बन कर की राजा राम की स्तुति!!!!!!!

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वेदों में जब भाट बन कर की राजा राम की स्तुति!!!!!!! भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान की आराधना, स्तुति करना आवश्यक है । भगवत्कृपा केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं वरन्, देवता, दानव, वेद, ऋषि-मुनि-त्रिलोकी के समस्त जीवों की चाह रही है; क्योंकि यही सुख-शान्ति व सफलता का साधन है । राज्याभिषेक हो जाने पर राजा की स्तुति करने की परम्परा है । जब प्रभु श्रीराम का राज्याभिषेक हो गया, तब वेदों ने सोचा कि अभी-अभी सिंहासन पर बैठे प्रभु श्रीराम का दर्शन करना चाहिए; किन्तु दरबार में इतनी भीड़ है कि श्रीराम तक पहुँच पाना बहुत कठिन है । वेदों को 'भगवान का भाट' कहा गया है । अत: वेदों ने वन्दी (भाट) का वेष धारण कर लिया क्योंकि भाट का काम राजा का यशोगान करना होता है, अत: अब राजा राम तक पहुंचने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता । भिन्न भिन्न अस्तुति करि गए सुर निज निज धाम । बंदी बेष बेद तब आए जहँ श्रीराम ।। प्रभु सर्बग्य कीन्ह अति आदर कृपानिधान । लखेउ न काहूँ मरम कछु लगै करन गुन गान ।। (राचमा ७।१२ ख-ग) वेद जब वन्दी वेष में श्रीराम दरबार में पधारे तो प्रभु श्रीराम के अलावा अन्य कोई उन्हें

सबकुछ ठीक ना चल रहा हो तो करें बजरंग बाण का पाठ!!!!!?

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सबकुछ ठीक ना चल रहा हो तो करें बजरंग बाण का पाठ!!!!!? जीवन में आ रहे प्रतिकूल प्रभावों को दूर करने के लिए 'बजरंग बाण' का जाप किया जाता है असाध्य रोग, शारीरिक कष्ट, मानसिक अशांति, व्यापार में रुकावट होने पर श्रीराम के परमभक्त मंगलमूर्ति मारुति नंदन श्री हनुमान जी की सेवा व पूजा से लाभ मिलता है। श्री हनुमान जी की उपासना के समय बजरंग बाण का विधिपूर्वक श्रद्धाभाव से पाठ करना विशेष फलदायी होता है। मंगलवार या शनिवार के दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा स्थल पर हनुमानजी का चित्र या मूर्ति स्थापित करें तथा बैठने के लिए लाल रंग के आसन का प्रयोग करें। हनुमानजी की उपासना एवं बजरंग बाण के पाठ से पूर्व शुद्ध तिल का तेल भर दें तथा कच्चे लाल रंग में रंगे सूत की पंचमुखी बत्ती बनाकर दीपक में डालकर प्रज्जवलित करें। शुद्ध गूगल की धूनी, धूप, लाल रंग के पुष्प, लाल चंदन या रोली आदि से हनुमानजी की ध्यान मग्न होकर उपासना करते हुए बजरंग बाण का पाठ शुरू करें। एक ही बैठक में बजरंग बाण का 108 बार पाठ करना ज्यादा लाभ देता है। इसके अलावा हनुमान चालीसा और श्रीरामस्रोत का पठन भी जीवन जातक को कुप्

11 मुखी हनुमान जी की पूजा से मिलते हैं कई लाभ, जानें किस मूर्ति से कौन सी मनोकामना होती है पूरी

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11 मुखी हनुमान जी की पूजा से मिलते हैं कई लाभ, जानें किस मूर्ति से कौन सी मनोकामना होती है पूरी 1. पूर्वमुखी हुनमान जी- पूर्व की तरफ मुख वाले बजरंबली को वानर रूप में पूजा जाता है। इस रूप में भगवान को बेहद शक्तिशाली और करोड़ों सूर्य के तेज के समान बताया गया है। शत्रुओं के नाश के बजरंगबली जाने जाते हैं। दुश्मन अगर आप पर हावी हो रहे तो पूर्वमूखी हनुमान की पूजा शुरू कर दें। 2. पश्चिममुखी हनुमान जी- पश्चिम की तरफ मुख वाले हनुमानजी को गरूड़ का रूप माना जाता है। इसी रूप संकटमोचन का स्वरूप माना गया है। मान्यता है कि भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ अमर है उसी के समान बजरंगबली भी अमर हैं। यही कारण है कि कलयुग के जाग्रत देवताओं में बजरंगबली को माना जाता है। 3. उत्तरामुखी हनुमान जी- उत्तर दिशा की तरफ मुख वाले हनुमान जी की पूजा शूकर के रूप में होती है। एक बात और वह यह कि उत्तर दिशा यानी ईशान कोण देवताओं की दिशा होती है। यानी शुभ और मंगलकारी। इस दिशा में स्थापित बजरंगबली की पूजा से इंसान की आर्थिक स्थिति बेहतर होती है। इस ओर मुख किए भगवान की पूजा आपको धन-दौलत, ऐश्वर्य, प्रतिष्ठा, लंबी आयु के

जन्मों का कर्ज*

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*जन्मों का कर्ज*           एक सेठ जी बहुत ही दयालु थे। धर्म-कर्म में यकीन करते थे। उनके पास जो भी व्यक्ति उधार माँगने आता वे उसे मना नहीं करते थे। सेठ जी मुनीम को बुलाते और जो उधार माँगने वाला व्यक्ति होता उससे पूछते कि "भाई ! तुम उधार कब लौटाओगे ? इस जन्म में या फिर अगले जन्म में ?"           जो लोग ईमानदार होते वो कहते - "सेठ जी ! हम तो इसी जन्म में आपका कर्ज़ चुकता कर देंगे।" और कुछ लोग जो ज्यादा चालक व बेईमान होते वे कहते - "सेठ जी ! हम आपका कर्ज़ अगले जन्म में उतारेंगे।" और अपनी चालाकी पर वे मन ही मन खुश होते कि "क्या मूर्ख सेठ है ! अगले जन्म में उधार वापसी की उम्मीद लगाए बैठा है।" ऐसे लोग मुनीम से पहले ही कह देते कि वो अपना कर्ज़ अगले जन्म में लौटाएंगे और मुनीम भी कभी किसी से कुछ पूछता नहीं था। जो जैसा कह देता मुनीम वैसा ही बही में लिख लेता।          एक दिन एक चोर भी सेठ जी के पास उधार माँगने पहुँचा। उसे भी मालूम था कि सेठ अगले जन्म तक के लिए रकम उधार दे देता है। हालांकि उसका मकसद उधार लेने से अधिक सेठ की तिजोरी को देखना था। चोर

बिल्ववृक्ष

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बिल्ववृक्ष-- 1. बिल्व वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते l 2. अगर किसी की शव यात्रा बिल्व वृक्ष की छाया से होकर गुजरे तो उसका मोक्ष हो जाता है l 3. वायुमंडल में व्याप्त अशुध्दियों को सोखने की क्षमता सबसे ज्यादा बिल्व वृक्ष में होती है l 4. चार, पांच, छः या सात पत्तो वाले बिल्व पत्र पाने वाला परम भाग्यशाली और शिव को अर्पण करने से अनंत गुना फल मिलता है l  5. बेल वृक्ष को काटने से वंश का नाश होता है एवं बेल वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि होती है। 6. सुबह शाम बेल वृक्ष के दर्शन मात्र से पापो का नाश होता है। 7. बेल वृक्ष को सींचने से पित्र तृप्त होते है। 8. बेल वृक्ष और सफ़ेद आक् को जोड़े से लगाने पर अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। 9. बेल पत्र और ताम्र धातु के एक विशेष प्रयोग से ऋषि मुनि स्वर्ण धातु का उत्पादन करते थे । 10. जीवन में सिर्फ एक बार और वो भी यदि भूल से भी शिव लिंग पर बेल पत्र चढ़ा दिया हो तो भी जीव सभी पापों से मुक्त हो जाते है l 11. बेल वृक्ष का रोपण, पोषण और संवर्धन करने से महादेव से साक्षात्कार करने का अवश्य लाभ मिलता है। कृपया बिल्व पत्र का पेड़ जरूर लगाये । बिल्व पत्र के

हनुमान चालीसा में है ये पांच चमत्कारी चौपाई, जिनको पढ़ने से होती है हर इच्छा पूरी

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हनुमान चालीसा में है ये पांच चमत्कारी चौपाई, जिनको पढ़ने से होती है हर इच्छा पूरी  हनुमान चालीसा को महान कवि तुलसीदास जी ने लिखा था। वह भी भगवान राम के बड़े भक्त थे और हनुमान जी को बहुत मानते थे। इसमें 40 छंद होते हैं जिसके कारण इसको चालीसा कहा जाता है। यदि कोई भी इसका पाठ करता है हनुमान चालीसा का पाठ करना सभी के लिए बहुत लाभदायी होता है। इसका संबंध सिर्फ आपकी आस्था और धर्म से नहीं बल्कि आपकी शारीरिक और मानसिक समस्याओं को खत्म करने में भी यह बेहद प्रभावशाली है।  तो उसे चालीसा पाठ बोला जाता है। हनुमान चालीसा पाठ में बालाजी महाराज के गुणों का व्याख्यान करके उनके बड़े बड़े कार्यो को बताया गया है | हनुमानजी के चरित्र का बड़ा ही सुन्दर दर्शन इन चालीसा चौपाइयों के माध्यम से होता है | यह इतना शक्तिशाली पाठ है की मन से पाठ करने वाले भक्त के चारो तरफ के कृपा का चक्र बन जाता है और फिर नकारात्मक शक्तियाँ उसे छू भी नही पाती | जो भी व्यक्ति इसका मंगलवार , शनिवार या हर दिन पाठ करते है उन्हें हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और इनके पाठ करने वाले को कई चमत्कारी लाभ प्राप्त होते है | हनु

मां जगदंबा ने बचाई इंद्र की पत्नी शची की लाज

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मां जगदंबा ने बचाई इंद्र की पत्नी शची की लाज देवराज इंद्र की पत्नी शची बुरी तरह भयभीत थीं. देवताओं और मुनियों ने उनसे आ कर कहा था कि नहुष उनको पाने की इच्छा रखता है. वह कहता है अब जब सब लोगों ने मुझे इंद्र बना ही दिया है तो इंद्राणी को मेरी सेवा के लिये भेजो. उसने हमें इसी आदेश से भेजा है. शची ने भाग कर गुरु वृहस्पति की शरण ली और पूछा कि अब क्या करूं. वृहस्पति ने कहा चिंता मत करो, मैं तुम्हें उस नीच नहुष के हाथों में न जाने दूंगा. नहुष देवताओं का राजा बन बैठा है और इंद्र का पता ही नहीं चल पा रहा है कहां पर हैं. ऐसे में बस मां जगदंबा ही तुम्हारी रक्षा कर सकती हैं. शची ने पूछा उसके लिये क्या करना होगा. इस पर गुरु वृहस्पति ने कहा, मां आदिशक्ति की कठिन तपस्या कर उन्हें प्रसन्न करना होगा. इसमें समय लग सकता है. सबसे पहले कुछ ऐसी चाल चलनी पड़ेगी कि नहुष के पास जाने में थोड़ा वक्त लगे. इस दौरान तुम मां जगदंबा को प्रसन्न करने का प्रयास कर सकती हो. गुरु वृहस्पति की चाल के अनुसार शची देवताओं के साथ नहुष के पास गयीं. नहुष से बोली कि मैं आपकी सेवा को तैयार हूं. नहुष बहुत खुश हुआ. इंद्राणी

सुंदरकांड-चमत्कारिक प्रभाव देने वाला काव्य

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🙏 साभार अग्रेषित 🙏 सुंदरकांड- चमत्कारिक प्रभाव देने वाला काव्य  सुंदरकांड को समझ कर उसका पाठ करें तो हमें और भी आनंद आएगा। सुंदरकांड में 1 से 26 तक जो दोहे हैं, उनमें शिवजी का अवगाहन है, शिवजी का गायन है, वो शिव कांची है। क्योंकि शिव आधार हैं, अर्थात कल्याण। जहां तक आधार का सवाल है, तो पहले हमें अपने शरीर को स्वस्थ बनाना चाहिए, शरीर स्वस्थ होगा तभी हमारे सभी काम हो पाएंगे। किसी भी काम को करने के लिए अगर शरीर स्वस्थ है तभी हम कुछ कर पाएंगे, या कुछ कर सकते हैं। सुंदरकांड की एक से लेकर 26 चौपाइयों में तुलसी बाबा ने कुछ ऐसे गुप्त मंत्र हमारे लिए रखे हैं जो प्रकट में तो हनुमान जी का ही चरित्र है लेकिन अप्रकट में जो चरित्र है वह हमारे शरीर में चलता है। हमारे शरीर में 72000 नाड़ियां हैं उनमें से भी तीन सबसे महत्वपूर्ण हैं। जैसे ही हम सुंदरकांड प्रारंभ करते हैं- ॐ श्री परमात्मने नमः, तभी से हमारी नाड़ियों का शुद्धिकरण प्रारंभ हो जाता है। सुंदरकांड में एक से लेकर 26 दोहे तक में ऐसी ताकत है, ऐसी शक्ति है... जिसका बखान करना ही इस पृथ्वी के मनुष्यों के बस की बात नहीं है। इन दोहों में

काशी तो काशी है, काशी अविनाशी है!!!!!!

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काशी तो काशी है, काशी अविनाशी है!!!!!! पंचकोशी काशी का अविमुक्त क्षेत्र ज्योतिर्लिंग स्वरूप स्वयं भगवान विश्वनाथ हैं । ब्रह्माजी ने भगवान की आज्ञा से ब्रह्माण्ड की रचना की । तब दयालु शिव जी ने विचार किया कि कर्म-बंधन में बंधे हुए प्राणी मुझे किस प्रकार प्राप्त करेंगे ? इसलिए शिव जी ने काशी को ब्रह्माण्ड से पृथक् रखा और भगवान विश्वनाथ ने समस्त लोकों के कल्याण के लिए काशीपुरी में निवास किया । काशी को स्वयं भगवान शिव ने 'अविनाशी' और 'अविमुक्त क्षेत्र' कहा है । ज्योतिर्लिंग विश्वनाथ स्वरूप होने के कारण प्रलयकाल में भी काशी नष्ट नहीं होती है; क्योंकि प्रलय के समय जैसे-जैसे एकार्णव का जल बढ़ता है, वैसे-वैसे इस क्षेत्र को भगवान शंकर अपने त्रिशूल पर उठाते जाते हैं । स्कंद पुराण के अनुसार काशी नगरी का स्वरूप सतयुग में त्रिशूल के आकार का, त्रेता में चक्र के आकार का, द्वापर में रथ के आकार का तथा कलियुग में शंख के आकार का होता है । संसार की सबसे प्राचीन नगरी है काशी!!!!!! काशी को संसार की सबसे प्राचीन नगरी कहा जाता है; क्योंकि वेदों में भी इसका कई जगह उल्लेख है । पौराणि

विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण!!!!!!!!

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विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण!!!!!!!! भगवान ने सृष्टि रचना के साथ ही मनुष्य के मन, बुद्धि व हृदय के भीतर भगवन्भावना को बनाए रखने के लिए उसकी जिह्वा पर अपने-आप ही भगवन्नाम को प्रकट किया है ।  जब प्राणी पर विपत्ति आती है, दु:ख पड़ता है या अमंगल आता हुआ दिखाई देता है तो स्वत: ही मुख से ‘हे राम !’ या ‘हाय राम !’ की करुण ध्वनि निकल जाती है; आत्मा अनायास ही उस मंगलकर्ता भगवान के पावन मधुर नाम को पुकार उठती है। भगवान मनुष्य के चित्त को सदा आकर्षित करते हैं और वह सदा अंत:करण से भगवान को चाहता है । अत: भगवान का नाम उसकी रसना में अपने-आप स्फुरित होता है । यह भगवान की अहैतुकी कृपा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है । नाम में भगवान ने अपनी समस्त शक्ति और प्रकाश रख दिया है जिससे मनुष्य निर्भय होकर इस संसार की यात्रा कर सकता है । विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण!!!!!! विभिन्न रुचि, प्रकृति और संस्कारों के मनुष्यों के लिए भगवान ने स्वयं को अनेक नामों से व्यक्त किया है—ब्रह्म, परमात्मा, भगवान, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, नारायण, हरि, दुर्गा, काली, त

गायत्री मंत्र के जाप के नियम

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मित्रों आज हम आपको गायत्री मन्त्र के जप के नियम के बारे में बतायेगें!!!! सनातन धर्म के समस्त धर्म ग्रंथों में गायत्री की महिमा एक स्वर से कही गई। समस्त ऋषि-मुनि मुक्त कंठ से गायत्री का गुण-गान करते हैं। शास्त्रों में गायत्री की महिमा के पवित्र वर्णन मिलते हैं। गायत्री मंत्र तीनों देव, बृह्मा, विष्णु और महेश का सार है। गीता में भगवान् ने स्वयं कहा है ‘गायत्री छन्दसामहम्’ अर्थात् गायत्री मंत्र मैं स्वयं ही हूं। यज्ञोपवीत धारण करना, गुरु दीक्षा लेना और विधिवत् मन्त्र ग्रहण करना—शास्त्रों में तीन बातें गायत्री उपासना में आवश्यक और लक्ष्य तक पहुंचने में बड़ी सहायक मानी गई हैं । लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि इनके बिना गायत्री साधना नहीं हो सकती है । ईश्वर की वाणी या वेद की ऋचा को अपनाने में किसी पर भी कोई प्रतिबन्ध नहीं हो सकता है । गायत्री परब्रह्म की पराशक्ति है जो सम्पूर्ण जगत के प्राणों की रक्षा तथा पालन करती है । सृष्टिकर्ता ब्रह्मा से लेकर आधुनिक काल तक ऋषि-मुनियों, साधु-महात्माओं और अपना कल्याण चाहने वाले मनुष्यों ने गायत्री मन्त्र का आश्रय लिया है । यह मन्त्र यजुर्वेद व स

श्रीसरस्वत्यै देवीस्तोत्रम्

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 ।। श्रीसरस्वत्यै  देवीस्तोत्रम् ।। श्रीसरस्वत्यै नमः । श्री शारदे (सरस्वति)!  नमस्तुभ्यं जगद्भवनदीपिके । विद्वज्जनमुखाम्भोजभृङ्गिके!  मे मुखे वस ॥ १॥ वागीश्वरि!  नमस्तुभ्यं नमस्ते हंसगामिनि! । नमस्तुभ्यं जगन्मातर्जगत्कर्त्रिं!  नमोऽस्तु ते ॥ २॥ शक्तिरूपे!  नमस्तुभ्यं कवीश्वरि!  नमोऽस्तु ते । नमस्तुभ्यं भगवति!  सरस्वति!  नमोऽस्तुते ॥ ३॥ जगन्मुख्ये नमस्तुभ्यं वरदायिनि!  ते नमः । नमोऽस्तु तेऽम्बिकादेवि!  जगत्पावनि!  ते नमः ॥ ४॥ शुक्लाम्बरे!  नमस्तुभ्यं ज्ञानदायिनि!  ते नमः । ब्रह्मरूपे!  नमस्तुभ्यं ब्रह्मपुत्रि!  नमोऽस्तु ते ॥ ५॥ विद्वन्मातर्नमस्तुभ्यं वीणाधारिणि!  ते नमः । सुरेश्वरि!  नमस्तुभ्यं नमस्ते सुरवन्दिते! ॥ ६॥ भाषामयि!  नमस्तुभ्यं शुकधारिणि!  ते नमः । पङ्कजाक्षि!  नमस्तुभ्यं मालाधारिणि!  ते नमः ॥ ७॥ पद्मारूढे!  नमस्तुभ्यं पद्मधारिणि!  ते नमः । शुक्लरूपे नमस्तुभ्यं नमञ्जिपुरसुन्दरि ॥ ८॥ श्री(धी)दायिनि!  नमस्तुभ्यं ज्ञानरूपे!  नमोऽस्तुते । सुरार्चिते!  नमस्तुभ्यं भुवनेश्वरि!  ते नमः ॥ ९॥ कृपावति!  नमस्तुभ्यं यशोदायिनि!  ते नमः । सुखप्रदे!  नमस्तुभ्यं नमः सौभाग्यवर्द्ध