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श्री राम चरित मानस बालकाण्ड दोहा संख्या 321 से दोहा संख्या 360 तक

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दोहा : *रामचन्द्र मुख चंद्र छबि लोचन चारु चकोर। करत पान सादर सकल प्रेमु प्रमोदु न थोर॥321॥ भावार्थ:-श्री रामचन्द्रजी के मुख रूपी चन्द्रमा की छबि को सभी के सुंदर नेत्र रूपी चकोर आदरपूर्वक पान कर रहे हैं, प्रेम और आनंद कम नहीं है (अर्थात बहुत है)॥321॥   चौपाई : *समउ बिलोकि बसिष्ठ बोलाए। सादर सतानंदु सुनि आए॥ बेगि कुअँरि अब आनहु जाई। चले मुदित मुनि आयसु पाई॥1॥ भावार्थ:- समय देखकर वशिष्ठजी ने शतानंदजी को आदरपूर्वक बुलाया। वे सुनकर आदर के साथ आए। वशिष्ठजी ने कहा- अब जाकर राजकुमारी को शीघ्र ले आइए। मुनि की आज्ञा पाकर वे प्रसन्न होकर चले॥1॥   *रानी सुनि उपरोहित बानी। प्रमुदित सखिन्ह समेत सयानी॥ बिप्र बधू कुल बृद्ध बोलाईं। करि कुल रीति सुमंगल गाईं॥2॥ भावार्थ:- बुद्धिमती रानी पुरोहित की वाणी सुनकर सखियों समेत बड़ी प्रसन्न हुईं। ब्राह्मणों की स्त्रियों और कुल की बूढ़ी स्त्रियों को बुलाकर उन्होंने कुलरीति करके सुंदर मंगल गीत गाए॥2॥   *नारि बेष जे सुर बर बामा। सकल सुभायँ सुंदरी स्यामा॥ तिन्हहि देखि सुखु पावहिं नारी। बिनु पहिचानि प्रानहु ते प्यारीं॥3॥ भावार्थ:- श्रेष्ठ देवांगनाएँ, जो सुंद