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गायत्री मंत्र के जाप के नियम

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मित्रों आज हम आपको गायत्री मन्त्र के जप के नियम के बारे में बतायेगें!!!! सनातन धर्म के समस्त धर्म ग्रंथों में गायत्री की महिमा एक स्वर से कही गई। समस्त ऋषि-मुनि मुक्त कंठ से गायत्री का गुण-गान करते हैं। शास्त्रों में गायत्री की महिमा के पवित्र वर्णन मिलते हैं। गायत्री मंत्र तीनों देव, बृह्मा, विष्णु और महेश का सार है। गीता में भगवान् ने स्वयं कहा है ‘गायत्री छन्दसामहम्’ अर्थात् गायत्री मंत्र मैं स्वयं ही हूं। यज्ञोपवीत धारण करना, गुरु दीक्षा लेना और विधिवत् मन्त्र ग्रहण करना—शास्त्रों में तीन बातें गायत्री उपासना में आवश्यक और लक्ष्य तक पहुंचने में बड़ी सहायक मानी गई हैं । लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि इनके बिना गायत्री साधना नहीं हो सकती है । ईश्वर की वाणी या वेद की ऋचा को अपनाने में किसी पर भी कोई प्रतिबन्ध नहीं हो सकता है । गायत्री परब्रह्म की पराशक्ति है जो सम्पूर्ण जगत के प्राणों की रक्षा तथा पालन करती है । सृष्टिकर्ता ब्रह्मा से लेकर आधुनिक काल तक ऋषि-मुनियों, साधु-महात्माओं और अपना कल्याण चाहने वाले मनुष्यों ने गायत्री मन्त्र का आश्रय लिया है । यह मन्त्र यजुर्वेद व स

श्रीसरस्वत्यै देवीस्तोत्रम्

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 ।। श्रीसरस्वत्यै  देवीस्तोत्रम् ।। श्रीसरस्वत्यै नमः । श्री शारदे (सरस्वति)!  नमस्तुभ्यं जगद्भवनदीपिके । विद्वज्जनमुखाम्भोजभृङ्गिके!  मे मुखे वस ॥ १॥ वागीश्वरि!  नमस्तुभ्यं नमस्ते हंसगामिनि! । नमस्तुभ्यं जगन्मातर्जगत्कर्त्रिं!  नमोऽस्तु ते ॥ २॥ शक्तिरूपे!  नमस्तुभ्यं कवीश्वरि!  नमोऽस्तु ते । नमस्तुभ्यं भगवति!  सरस्वति!  नमोऽस्तुते ॥ ३॥ जगन्मुख्ये नमस्तुभ्यं वरदायिनि!  ते नमः । नमोऽस्तु तेऽम्बिकादेवि!  जगत्पावनि!  ते नमः ॥ ४॥ शुक्लाम्बरे!  नमस्तुभ्यं ज्ञानदायिनि!  ते नमः । ब्रह्मरूपे!  नमस्तुभ्यं ब्रह्मपुत्रि!  नमोऽस्तु ते ॥ ५॥ विद्वन्मातर्नमस्तुभ्यं वीणाधारिणि!  ते नमः । सुरेश्वरि!  नमस्तुभ्यं नमस्ते सुरवन्दिते! ॥ ६॥ भाषामयि!  नमस्तुभ्यं शुकधारिणि!  ते नमः । पङ्कजाक्षि!  नमस्तुभ्यं मालाधारिणि!  ते नमः ॥ ७॥ पद्मारूढे!  नमस्तुभ्यं पद्मधारिणि!  ते नमः । शुक्लरूपे नमस्तुभ्यं नमञ्जिपुरसुन्दरि ॥ ८॥ श्री(धी)दायिनि!  नमस्तुभ्यं ज्ञानरूपे!  नमोऽस्तुते । सुरार्चिते!  नमस्तुभ्यं भुवनेश्वरि!  ते नमः ॥ ९॥ कृपावति!  नमस्तुभ्यं यशोदायिनि!  ते नमः । सुखप्रदे!  नमस्तुभ्यं नमः सौभाग्यवर्द्ध

कालभैरवाष्टकं

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धार्मिक शास्त्रों के अनुसार श्री कालभैरवाष्टकं अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है। भैरव अष्‍टमी, भैरव जयंती और प्रति रविवार या बुधवार के दिन इसका पाठ करने से मनुष्य की हर आपदा और समस्या दूर होने लग जाती हैं और लाभ मिलने लगते हैं । श्री कालभैरवाष्टकं श्री भैरव जी को समर्पित हैं ! काल भैरव अष्टक देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् । नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ १॥ भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् । कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ २॥ शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् । भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ३॥ भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् । विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ४॥ धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशनं कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुम् । स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ५॥ रत्नपादुकाप्रभाभिरा

श्री नारायण कवच अर्थ सहित

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॥ श्री नारायण सम्पूर्ण कवच अर्थ सहित हिंदी में न्यास-  सर्वप्रथम श्रीगणेश जी तथा भगवान नारायण को नमस्कार करके नीचे लिखे प्रकार से न्यास करें – अङ्गन्यासः  ऊँ ऊँ नमः पादयोः –  (दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगुठा इन दोनों को मिलाकर दोनों पैरों का स्पर्श करें) ऊँ नं नमः जानुनो –  (दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगुठा इन दोनों को मिलाकर दोनों घुटनों का स्पर्श करें) ऊँ मों नमः ऊर्वो: –  (दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगुठा इन दोनों को मिलाकर दोनों पैरों की जाँघो का स्पर्श करें) ऊँ नां नमः उदरे –  (दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगुठा इन दोनों को मिलाकर पेट का स्पर्श करें) ऊँ रां नमः हृदि –  (मध्यमा, अनामिका और तर्जनी से हृदय का स्पर्श करें) ऊँ यं नमः उरसि –  (मध्यमा, अनामिका और तर्जनी से छाती का स्पर्श करें) ऊँ णां नमः मुखे –  (तर्जनी और अँगुठे के संयोग से मुख का स्पर्श करें) ऊँ यं नमः शिरसि –  (तर्जनी और मध्यमा के संयोग से सिर का स्पर्श करें) करन्यासः  ऊँ ऊँ नमः दक्षिणतर्जन्याम् –  (दाहिने अँगुठे से दाहिने तर्जनी के सिरे का स्पर्श करें) ऊँ नं नमः दक्षिणमध्यमायाम् –  (दहिने अँगुठे से दा

तिल चौथ की कहानी

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तिल चौथ की कहानी   *एक शहर में देवरानी जेठानी रहती थी । जेठानी अमीर थी और देवरानी गरीब थी। देवरानी गणेश जी की भक्त थी। देवरानी का पति जंगल से लकड़ी काट कर बेचता था और अक्सर बीमार रहता था। देवरानी जेठानी के घर का सारा काम करती और बदले में जेठानी बचा हुआ खाना, पुराने कपड़े आदि उसको दे देती थी। इसी से देवरानी का परिवार चल रहा था।* *माघ महीने में देवरानी ने तिल चौथ का व्रत किया।  पाँच रूपये का तिल व गुड़ लाकर तिलकुट्टा बनाया। पूजा करके तिल चौथ की कथा* *( तिल चौथ की कहानी ) सुनी और तिलकुट्टा छींके में रख दिया और सोचा की चाँद उगने पर पहले तिलकुट्टा और उसके बाद ही कुछ खायेगी।* *कथा सुनकर वह जेठानी के यहाँ चली गई। खाना बनाकर जेठानी के बच्चों से खाना खाने को कहा तो बच्चे बोले माँ ने व्रत किया हैं और माँ भूखी हैं। जब माँ खाना खायेगी हम भी तभी खाएंगे। जेठजी को खाना खाने को कहा तो जेठजी बोले ” मैं अकेला नही खाऊँगा , जब चाँद निकलेगा तब सब खाएंगे तभी मैं भी खाऊँगा ” जेठानी ने उसे कहा कि आज तो किसी ने भी अभी तक खाना नहीं खाया तुम्हें कैसे दे दूँ  तुम सुबह सवेरे ही बचा हुआ खाना ले जाना।* *देव

पंचदेव पूजन मंत्र संस्कृत - सोलह उपचार पूजन, ध्यान, प्राण प्रतिष्ठादि हिंदी विधि सहित

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पंचदेव पूजन मंत्र संस्कृत - सोलह उपचार पूजन, ध्यान, प्राण प्रतिष्ठादि हिंदी विधि सहित || पंचदेव पूजन मंत्र संस्कृत || आज मै आपको बताने वाला हूँ पंचदेव पूजन मन्त्र एवं पूजा विधि के बारे में जिसकी सहायता से आप पंचदेव पूजा आसानी से अपने घर पर कर सकते हैं | तो चलिए देखते है  किस विधि से करनी चाहिए पंचदेव पूजन एवं पंचदेव पूजन मन्त्र संस्कृत में दिया गया है और हर एक मन्त्र के साथ होने वाली क्रियाओं का हिंदी में उल्लेख किया गया है | पंचदेव पूजन में किस देवता की पूजा होती है ? आदित्यं गणनाथं च देवीं रुद्रं च केशवम्। पञ्चदैवत्यमित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत् ।।  अर्थात-   सूर्य ,  गणेश ,  दुर्गा ,  शिव ,  विष्णु - ये पंचदेव कहे गये हैं । इनकी पूजा सभी कार्यों में करनी चाहिय | प्रतिष्ठित मूर्ति, शालग्राम, बाणलिङ्ग, अग्नि और जल में आवाहन करना मना है। इसकी जगह पुष्पाञ्जलि दे। पञ्चायतन देवताओं के स्थान के भी कुछ अपने नियम हैं। इसी नियम के अनुसार इने स्थापित करना चाहिए । इस नियम का उल्लङ्कन करने से हानि हो सकती है। इस  पंचदेव पूजन मंत्र संस्कृत  में पूजा विधि   विष्णु पंचायतन  

श्रीभगवती-मानस-पूजा-स्तोत्र भगवान् श्रीशङ्कराचार्य विरचित श्रीभगवती-मानस-पूजा-स्तोत्र (हिन्दी पद्यानुवाद प्रबोधन ॥

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मानस-पूजा के नियम हिन्दुओं की पूजा का मुख्य ध्येय अपने स्वरूप- मन, बुद्धि, चित्त और ‘अहङ्कार’ को क्रमशः प्रकाशित करना है । अस्तित्व के विभिन्न स्तरों को देखते ही हिन्दुओं ने विविध भावना-मयी पूजन-विधियों की रचना की है । इन सबमें ‘मानस-पूजन’ सबसे उत्तम पूजन-विधि है । इसमें बाह्यत्व का सर्वथा अभाव रहता है तथा भावना के द्वारा ‘इष्ट-देव’ के स्मरण-रूपी प्रकाश से अपने मन, बुद्धि, चित्त और अहङ्कार को प्रकाश-मय किया जाता है । ‘मानस-पूजा’ में पूजा करनेवाला एक ओर अपने मन, बुद्धि, चित्त और अहङ्कार को विषय-वासना से हटाता है, तो दूसरी ओर पूर्ण श्रद्धा के साथ विशुद्ध भावना-मयी क्रियाओं द्वारा एकमात्र सत्य, प्रकाश-मय अपने इष्ट-देव’ का स्मरण करता है, जिससे देह, प्राण, मन, बुद्धि आदि की बाधाएँ क्रमशः दूर हो जाती हैं और अन्ततः चित्त में साक्षात् ‘इष्ट-देव’ आविर्भूत हो जाते हैं । यहाँ यह उल्लेखनीय है कि प्रत्येक जीव के लिए विषय-उपभोगार्थ पाँच प्रधान मार्ग प्रति-क्षण सुलभ हैं । इन्हें हम ‘पञ्च ज्ञानेन्द्रिय’ कहते हैं । यथा- (१) नेत्र, (२) कर्ण, (३) नासिका, (४) जिह्वा और (५) त्वचा । इन्हीं पञ्च-

श्रीकृष्ण मानस पूजा

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श्री कृष्ण मानस पूजा स्तोत्रम् हृदम्भोजे कृष्णस्सजलजलदश्यामलतनुः सरोजाक्षः स्रग्वी मकुटकटकाद्याभरणवान् ।  शरद्राकानाथप्रतिमवदनः श्रीमुरलिकां  वहन् ध्येयो गोपीगणपरिवृतः कुङ्कुमचितः ॥ १ ॥  पयोम्भोधेर्द्वीपान्मम हृदयमायाहि भगवन् मणिव्रातभ्राजत्कनकवरपीठं भज हरे । सुचिह्नौ ते पादौ यदुकुलज नेनेज्मि सुजलैः गृहाणेदं दूर्वादलजलवदर्घ्यं मुररिपो ॥ २ ॥  त्वमाचामोपेन्द्र त्रिदशसरिदम्भोऽतिशिशिरं भजस्वेमं पञ्चामृतरचितमाप्लावमघहन् । द्युनद्याः कालिन्द्या अपि कनककुम्भस्थितमिदं  ।जलं तेन स्नानं कुरु कुरु कुरुष्वाचमनकम् ॥ ३ ॥  तटिद्वर्णे वस्त्रे भज विजयकान्ताधिहरण प्रलम्बारिभ्रातः मृदुलमुपवीतं कुरु गले । ललाटे पाटीरं मृगमदयुतं धारय हरे गृहाणेदं माल्यं शतदलतुलस्यादिरचितम् ॥ ४ ॥ दशाङ्गं धूपं सद्वरद चरणाग्रेऽर्पितमिदं मुखं दीपेनेन्दुप्रभ विरजसं देव कलये । इमौ पाणी वाणीपतिनुत सुकर्पूररजसा विशोध्याग्रे दत्तं सलिलमिदमाचाम नृहरे ॥ ५ ॥ सदातृप्ताऽन्नं षड्रसवदखिलव्यञ्जनयुतं सुवर्णामत्रे गोघृतचषकयुक्ते स्थितमिदम् । यशोदासूनो तत् परमदययाऽशान सखिभिः प्रसादं वाञ्छद्भिः सह तदनु नीरं

शिव मानस पूजा स्तुति

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शिव मानस पूजा स्तुति आदि गुरु  शंकराचार्य द्वारा रचित शिव मानस पूजा शिव की एक अनूठी स्तुति है। इस स्तुति में मात्र कल्पना से शिव को सामग्री अर्पित की गई है और पुराण कहते हैं कि ‍साक्षात शिव ने इस पूजा को स्वीकार किया था। यह स्तुति भगवान भोलेनाथ की महान उदारता को प्रस्तुत करती है। इस स्तुति को पढ़ते हुए भक्तों द्वारा शिवशंकर को श्रद्धापूर्वक मानसिक रूप से समस्त पंचामृत दिव्य सामग्री समर्पित की जाती है। हम कल्पना में ही उन्हें रत्नजडित सिहांसन पर आसीन करते हैं, दिव्य वस्त्र, भोजन तथा आभूषण आदि अर्पण करते हैं। वेबदुनिया पाठकों के लिए प्रस्तुत है हिन्दी अनुवाद सहित शिव मानस पूजा- -  रत्नैः कल्पितमानसं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं। नाना रत्न विभूषितम्‌ मृग मदामोदांकितम्‌ चंदनम॥ जाती चम्पक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा। दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितम्‌ गृह्यताम्‌॥1 ॥ हिन्दी भावार्थ - मैं अपने मन में ऐसी भावना करता हूं कि हे पशुपति देव! संपूर्ण रत्नों से निर्मित इस सिंहासन पर आप विराजमान होइए। हिमालय के शीतल जल से मैं आपको स्नान करवा रहा हूं। स्नान के उपरांत र

॥श्रीदुर्गामानस-पूजा।।

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॥श्रीदुर्गामानस-पूजा।। उद्यच्चन्दनकुङ्कुमारुणपयोधाराभिराप्लावितां नानानर्घ्यमणिप्रवालघटितां दत्तां गृहाणाम्बिके। आमृष्टां सुरसुन्दरीभिरभितो हस्ताम्बुजैर्भक्तितो मातः सुन्दरि भक्तकल्पलतिके श्रीपादुकामादरात्॥१॥ माता त्रिपुरसुन्दरी ! तुम भक्तजनों की मनोवांछा पूर्ण करने वाली कल्पलता हो । माँ ! यह पादुका आदरपूर्वक तुम्हारे श्रीचरणों में समर्पित है , इसे ग्रहण करो । यह उत्तम चन्दन और कुंकुम से मिली हुई लाल जल की धारा से धोयी गयी है । भाँति - भाँति की बहुमूल्य मणियों तथा मूँगों से इसका निर्माण हुआ है और बहुत - सी देवांगनाओं ने अपने कर - कमलों द्वारा भक्ति पूर्वक इसे सब ओर से धो - पोंछकर स्वच्छ बना दिया है ॥१॥ देवेन्द्रादिभिरर्चितं सुरगणैरादाय सिंहासनं चञ्चत्काञ्चनसंचयाभिरचितं चारुप्रभाभास्वरम्। एतच्चम्पककेतकीपरिमलं तैलं महानिर्मलं गन्धोद्वर्तनमादरेण तरुणीदत्तं गृहाणाम्बिके॥२॥ माँ ! देवताओं ने तुम्हारे बैठने के लिये यह दिव्य सिंहासन लाकर रख दिया है , इस पर विराजो । यह वह सिंहासन है , जिसको देवराज इन्द्र आदि भी पूजा करते हैं अपनी कान्ति से दमकते हुए राशि - राशि सुवर्ण से इसका निर्मा