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रश्मिरथी प्रथम एवं द्वितीय सर्ग

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कथावस्तु रश्मिरथी का अर्थ होता है वह व्यक्ति, जिसका रथ रश्मि अर्थात सूर्य की किरणों का हो। इस काव्य में रश्मिरथी नाम कर्ण का है क्योंकि उसका चरित्र सूर्य के समान प्रकाशमान है कर्ण महाभारत महाकाव्य का अत्यन्त यशस्वी पात्र है। उसका जन्म पाण्डवों की माता कुन्ती के गर्भ से उस समय हुआ जब कुन्ती अविवाहिता थीं, अतएव, कुन्ती ने लोकलज्जा से बचने के लिए, अपने नवजात शिशु को एक मंजूषा में बन्द करके नदी में बहा दिया। वह मंजूषा अधिरथ नाम के सुत को मिली। अधिरथ के कोई सन्तान नहीं थी। इसलिए, उन्होंने इस बच्चे को अपना पुत्र मान लिया। उनकी धर्मपत्नी का नाम राधा था। राधा से पालित होने के कारण ही कर्ण का एक नाम राधेय भी है। कौरव-पाण्डव का वंश परिचय यह है कि दोनों महाराज शान्तनु के कुल में उत्पन्न हुए। शान्तनु से कई पीढ़ी ऊपर महाराज कुरु हुए थे। इसलिए, कौरव-पाण्डव दोनों कुरुवंशी कहलाते हैं। शान्तनु का विवाह गंगाजी से हुआ था, जिनसे कुमार देवव्रत उत्पन्न हुए। यही देवव्रत भीष्म कहलाये, क्योंकि चढ़ती जवानी में ही इन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की भीष्म अथवा भयानक प्रतिज्ञा की थी। महाराज शान्तनु न

साप्ताहिक टिप्स

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                        कहते हैं कि दिन की शुरुआत अच्छी हो, तो सबकुछ अच्छा होता है. इसके विपरीत हम कुछ ऐसे काम कर जाते हैं, जो पूरा दिन खराब कर देते हैं. ऐसे में मा​नसिक तनाव तो रहता ही है, साथ ही किसी काम में मन न लगने की वजह से धन हांनि भी होती है. ऐसे में कुछ ऐसे उपाय हैं, जिन्हें करने से दिन की शुरुआत ही अच्छी नहीं होगी, बल्कि मन में शांति भी रहेगी.  सप्ताह के सात दिनों की बात करें, तो हर दिन का धर्म, आस्था और कार्य विशेष की दृष्टि से अलग-अलग महत्व है. सप्ताह का प्रत्येक दिन विशेष ग्रह और देवता द्वारा शासित होता है. यदि आप दिन के हिसाब से कुछ नियमों का पालन करते हैं, तो आपके जीवन की आधी से ज्यादा परेशानियां समाप्त हो जाएंगी. आइये आपको बताते हैं कि दिनों को और अधिक शुभ बनाने के कुछ आसान उपाय..... 1. सोमवार (Monday): सप्ताह का पहला दिन सोमवार भगवान शिव को समर्पित है. इस दिन की शुरुआत शिव जी के आशीर्वाछ के साथ करें. एक नया करियर और कोई वित्तीय गतिविधि शुरू करने के लिए सोमवार एक अच्छा दिन है. इस दिन आप सफेद कपड़े पहनें और काले कपड़े पहनने से बचें. घर से निकलने से पहले दर्प

पूर्णिमा और अमावस्या का रहस्य

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पूर्णिमा और अमावस्या का रहस्य हिन्दू धर्म में पूर्णिमा, अमावस्या और ग्रहण 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ हिन्दू धर्म में पूर्णिमा, अमावस्या और ग्रहण के रहस्य को उजागर किया गया है। इसके अलावा वर्ष में ऐसे कई महत्वपूर्ण दिन और रात हैं जिनका धरती और मानव मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उनमें से ही माह में पड़ने वाले 2 दिन सबसे महत्वपूर्ण हैं- पूर्णिमा और अमावस्या। पूर्णिमा और अमावस्या के प्रति बहुत से लोगों में डर है। खासकर अमावस्या के प्रति ज्यादा डर है। वर्ष में 12 पूर्णिमा और 12 अमावस्या होती हैं। सभी का अलग-अलग महत्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार माह के 30 दिन को चन्द्र कला के आधार पर 15-15 दिन के 2 पक्षों में बांटा गया है- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहते हैं और कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस्या। हिन्दू पंचांग कि अवधारणा 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ यदि शुरुआत से गिनें तो 30 तिथियों के नाम निम्न हैं- पूर्णिमा (पूरनमासी), प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम

शिव पंचाक्षर स्तोत्र अर्थ सहित

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शिव पंचाक्षर स्तोत्र  और अर्थ प्रसिद्ध शिव पंचाक्षर स्तोत्र शिव और पांच पवित्र अक्षरों की शक्ति, न-म-शि-वा-य की स्तुति करता हैं । प्रसिद्ध शिव पंचाक्षर स्तोत्र शिव और पांच पवित्र अक्षरों की शक्ति, न-म-शि-वा-य की स्तुति करता हैं । शिव पंचाक्षर स्तोत्र लिरिक्स और अर्थ संस्कृत नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय । नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नमः शिवाय मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय । मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नमः शिवाय शिवाय गौरीवदनाब्जबृंदा सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय । श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नमः शिवाय वशिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमूनीन्द्र देवार्चिता शेखराय । चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नमः शिवाय यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय । दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नमः शिवाय पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसंनिधौ । शिवलोकमावाप्नोति शिवेन सह मोदते अर्थ वे जिनके पास साँपों का राजा उनकी माला के रूप में है, और जिनकी तीन आँखें हैं, जिनके शरीर पर पवित्र राख मली हुई

प्रातःकाल स्तुति श्लोक

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प्रातःकाल स्तुति श्लोक   प्रात: कर-दर्शनम कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती। करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम॥ पृथ्वी क्षमा प्रार्थना समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते। विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥ त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च। गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥ स्नान मन्त्र गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥ सूर्यनमस्कार ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने। दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्  सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥ ॐ मित्राय नम: ॐ रवये नम: ॐ सूर्याय नम: ॐ भानवे नम: ॐ खगाय नम: ॐ पूष्णे नम: ॐ हिरण्यगर्भाय नम: ॐ मरीचये नम: ॐ आदित्याय नम: ॐ सवित्रे नम: ॐ अर्काय नम: ॐ भास्कराय नम: ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम: आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर। दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥ दीप दर्शन शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।

श्री ललिता सहस्त्रनाम

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श्री ललिता सहस्त्रनाम का विशेष महत्व है,श्री ललिता सहस्त्रनाम के पाठ से इष्टदेवी प्रसन्न हो जाती है और उपासक की कामना को पूर्ण करती है,यदि उपासक नित्य पाठ न कर सके तो पूण्य दिवसों पर संक्रांति पर दीक्षा दिवस पर,पूर्णिमा पर,शुक्रवार को अपने जन्मदिवस पर,t दक्षिणायन ,उत्तरायण के समय ,नवमी चतुर्दशी आदि को अवश्य पाठ करें।पूर्णिमा के दिन श्री चन्द्र बिम्ब में श्री जी का ध्यान कर पंचोपचार पूजा के उपरान्त पाठ करने से साधक के समस्त रोग नष्ट हो जाते है,और वह दीर्घ आयु होता है, हर पूर्णिमा को यह प्रयोग करने से ये प्रयोग सिद्ध हो जाता है।ज्वर से दुखित मनुष्य के सर पर हाथ रखकर पाठ करने से दुखित मनुष्य का ज्वर दूर हो जाता है, सहस्त्रनाम से अभिमंत्रित भस्म को धारण करने से सभी रोग नष्ट हो जाते है,इसी प्रकार सहस्त्रनाम से अभिमंत्रित जल से अभिषेक करने से दुखी मनुष्यो की पीड़ा शांत हो जाती है अथार्त किसी पर कोई ग्रह या भूत,प्रेत चिपट गया हो तो अभिमंत्रित जल के अभिषेक से वे समस्त पीड़ाकारक तत्व दूर भाग जाते है, सुधासागर के मध्य में श्री ललिताम्बा का ध्यान कर पंचोपचार पूजन करके पाठ सुनाने से स

सोमवार व्रत कथा

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भोलेनाथ की कथा के बिना अधूरा है सोमवार का व्रत, भगवान शिव पूरी करेंगे सभी इच्छाएं  देवों के देव महादेव बहुत ही भोले माने जाते हैं, इसलिए उनका एक नाम भोलेनाथ भी है। पौराणिक मान्यतानुसार, भगवान शंकर को प्रसन्‍न करने के लिए किसी भी तरह के खास विशेष पूजन की आवश्‍यकता नहीं होती। क्‍योंकि कहा जाता है कि वह तो भोले हैं और भक्‍त की मन से की गई क्षणिक मात्र की भक्ति से ही वह प्रसन्‍न हो जाते हैं। अगर आप भी शिव की भक्ति और कृपा पाने के लिए सावन के सोमवार का व्रत करते हैं तो इस कथा से भोलेनाथ को प्रसन्‍न कर सकते हैं।  एक बार किसी एक नगर में एक साहूकार था। उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन कोई संतान न होने के कारण वह बहुत दुखी था। संतान प्राप्ति के लिए वह हर सोमवार को व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करता था। उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न होकर भगवान शिव से साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का निवेदन किया। पार्वती जी के आग्रह पर भगवान शिव ने कहा कि 'हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है औ

श्री गणेश चालीसा

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:  प्रथम पूज्य की इस आराधना का महत्व, पाठ की विधि और नियम जानें-: श्री गणेश की आराधना करने से घर में खुशहाली, व्यापार में बरकत और हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है ।             सनातन धर्म में भगवान श्री गणेश प्रथम पूजनीय माने जाते हैं। किसी भी मांगलिक और शुभ कार्य को शुरू करने से पहले विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश की आराधना और उनके प्रतीक चिन्हों की पूजा करने विधान है, जिससे सारे कार्य सूख पूर्वक संपन्न हो जाये और उसमें सफलता मिल सके।         गणेश जी को सबसे पहले पूजने का वरदान भगवान शिव द्वारा प्राप्त है। वहीं श्री गणेश को ग्रहों में बुद्ध का अधिपति माने जाने के  गणेश -:सप्ताह में बुधवार के दिन के कारक देव भी माना जाता हैं।          सच्चे मन से श्री गणेश की आराधना करने से घर में खुशहाली, व्यापार में बरकत और  हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। भगवान गणेश मंगलकारी और बुद्धि दाता हैं, जिनकी सवारी मूषक यानि चूहा और प्रिय भोग मोदक (लड्डू) है। भगवान गणेश का हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहा जाता है।             गणेश जी के कई अन्य नाम भी हैं, जैसे शिवपुत्र, गौरी

शिव पुराण द्वादश ज्योतिर्लिंग कथा

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ज्योतिर्लिंग के प्राद्रुभाव की एक पौराणिक कथा प्रचलित है. कथा के अनुसार राजा दक्ष ने अपनी सताईस कन्याओं का विवाह चन्द देव से किया था. सत्ताईस कन्याओं का पति बन कर देव बेहद खुश थे. सभी कन्याएं भी इस विवाह से प्रसन्न थी. इन सभी कन्याओं में चन्द्र देव सबसे अधिक रोहिंणी नामक कन्या पर मोहित थे. जब यह बात दक्ष को मालूम हुई तो उन्होनें चन्द्र देव को समझाया. लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. उनके समझाने का प्रभाव यह हुआ कि उनकी आसक्ति रोहिणी के प्रति और अधिक हो गई.  यह जानने के बाद राजा दक्ष ने देव चन्द्र को शाप दे दिया कि, जाओं आज से तुम क्षयरोग के मरीज हो जाओ. श्रापवश देव चन्द्र् क्षय रोग से पीडित हो गए. उनके सम्मान और प्रभाव में भी कमी हो गई. इस शाप से मुक्त होने के लिए वे भगवान ब्रह्मा की शरण में गए.  कथा के अनुसार भगवान शंकर के दोनों पुत्रों में आपस में इस बात पर विवाद उत्पन्न हो गया कि पहले किसका विवाह होगा. जब श्री गणेश और श्री कार्तिकेय जब विवाद में किसी हल पर नहीं पहुंच पायें तो दोनों अपना- अपना मत लेकर भगवान शंकर और माता पार्वती के पास गए.  अपने दोनों पुत्रों को इस प्रकार लडता देख,