श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 17
श्रीमहादेवजी कहते हैं– पार्वती ! सोलहवें अध्याय का माहात्म्य बतलाया गया। अब सत्रहवें अध्याय कीअनन्त महिमा श्रवण करो। राजा खड्गबाहू के पुत्र का दुःशासन नाम का एक नौकर था। वह बहुत खोटीबुद्धि का मनुष्य था। एक बार वह माण्डलीक राजकुमारों के साथ बहुत धन बाजी लगाकर हाथी पर चढ़ाऔर कुछ ही कदम आगे जाने पर लोगों के मना करने पर भी वह मूढ हाथी के प्रति जोर-जोर से कठोर शब्दकरने लगा। उसकी आवाज सुनकर हाथी क्रोध से अंधा हो गया और दुःशासन पैर फिसल जाने के कारणपृथ्वी पर गिर पड़ा। दुःशासन को गिरकर कुछ-कुछ उच्छवास लेते देख काल के समान निरंकुश हाथी नेक्रोध से भरकर उसे ऊपर फेंक दिया। ऊपर से गिरते ही उसके प्राण निकल गये। इस प्रकार कालवश मृत्युको प्राप्त होने के बाद उसे हाथी की योनि मिली और सिंहलद्वीप के महाराज के यहाँ उसने अपना बहुत समयव्यतीत किया। सिंहलद्वीप के राजा की महाराज खड्गबाहु से बड़ी मैत्री थी, अतः उन्होंने जल के मार्ग से उस हाथी को मित्रकी प्रसन्नता के लिए भेज दिया। एक दिन राजा ने श्लोक की सम्सयापूर्ति से संतुष्ट होकर किसी कवि कोपुरस्काररूप में वह हाथी दे दिया और उन्होंने सौ स्वर्णमुद