शिव और सर्प का गहरा संबंध

भगवान शंकर जिसके आराध्य हों या फिर अगर कोई साधक भगवान शंकर का ध्यान करता हो तो उनके बारे में कई भाव मन में प्रस्फुटित होते हैं। जैसे कि भगवान शंकर त्रिशूल लिए साधना पर बैठे है। उनका तीसरा नेत्र यानी भ्रिकुटी बंद है। उनकी जटाओं से गंगा प्रवाहित हो रही है। उनका शरीर समुद्र मंथन के समय विषपान करने की वजह से नीला दिख रहा है। भगवान शंकर की जटाओं और शरीर के इर्द-गिर्द कई सांप लिपटे हुए है। शिव के मस्तक पर एक ओर चंद्र है तो दूसरी ओर महाविषधर सर्प भी उनके गले का हार है। उनके परिवार में भूत-प्रेत, नंदी, सिंह, सर्प, मयूर व मूषक सभी का समभाव देखने को मिलता है। साधन क्रम में विचार सागर में कई विचारों का आगमन होता है। भगवान शंकर के बारे में कई कथा-कहानियां पुराणों, धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है। उनसे जुड़ी कई कथाएं साधकों को उनसे जोड़े रखती है और साधकों के लिए वह प्रेरणादायी भी है। 

पौराणिक मान्यताओं में भगवान शंकर और सर्प का जुड़ाव गहरा है तभी तो वह उनके शरीर से लिपटे रहते है। यह बात सिर्फ मान्यताओं तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह इस कलियुग में भी हकीकत में परिलक्षित होती दिखती है। यूं तो भगवान जनता जनार्दन के लिए अपनी कृपा बरसाने में अति दयालु है लेकिन कहते हैं कि अगर आपको भगवान शंकर के दर्शन ना हो और अगर सर्प के दर्शन हो जाएं तो समझिए कि साक्षात भगवान शंकर के ही दर्शन हो गए। हम चल रहे हैं राजस्थान के माउंट आबू में। माउंट आबू राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन है जो अर्धकाशी भी कहलाता है। पौराणिक मान्यताओं और पुराणों के मुताबिक माउंट आबू अर्धकाशी इसलिए कहलाता है क्योंकि यहां भगवान शंकर के 108 छोटे-बड़े मंदिर हैं। दुनिया की इकलौती जगह जहां भगवान शंकर नहीं, उनकी शिवलिंग भी नहीं बल्कि उनके अंगूठे की पूजा होती है। माउंट आबू में ही अचलगढ़ दुनिया की इकलौती ऐसी जगह है जहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। भगवान शिव के सभी मंदिरों में तो उनके शिवलिंग की पूजा होती है लेकिन यहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। 
यहीं पर एक मंदिर है पांडव गुफा के करीब जहां के बारे में कहा जाता है पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान कुछ समय यहां बिताया था। शिव मंदिर में बीते सोमवार को भगवान शंकर को जल और दूध से नहलाने पहुंचे श्रद्धालुओं को लगा जैसे भोले एक विशालकाय नाग के रूप में प्रकट हो गए। मंदिर भोले की जयकारों से गूंज रह था। शिवलिंग पर जल, बिल्व पत्र, भांग, धतूरा, फूल आदि चढ़ाए जाने का क्रम जारी था। तभी एक विशालकाय सर्प न जाने कहां से आकर शिवलिंग से लिपट गया। इस नाग का आकार लगभग 6 फीट का था। इस बीच कुछ लोगों ने डरते-डरते शिवलिंग पर जल भी अर्पित किया लेकिन नागराज कई घंटों तक शिवलिंग से लिपटे रहे। सावन का दूसरा सोमवार और शिवलिंग पर जल चढ़ाने का सिलसिला चलता रहा। इस बीच नाग की अटखेलियां भी जारी रही। वह कभी शिवलिंग के ऊपर बैठता तो कभी शिवलिंग की चारों तरफ लिपटकर बैठ जाता। लोग हैरान थे लेकिन जो लोग वहां थे उनके मुताबिक यह हैरानी उस सांप को नहीं थी। वह शायद निर्भय होकर आनंद की अनुभूति कर रहा था। इतने लोगों के बीच कोई सांप लगभग 6 घंटों तक शिवलिंग से लिपटा रहा। लोग टकटकी लगाए देखते रहे। कुछ लोगों के लिए भोले सर्प के रूप में शिवलिंग से आकर लिपटे थे तो कुछ लोग उस पल को शिद्दत से महसूस करना चाह रहे थे। यही वजह थी कि मंदिर में भीड़ बढ़ने लगी। इलाके में खबर फैलने लगी। अचानक सर्प गायब हो गया। वहां श्रद्धालुओं के चढ़ाए पुष्प और फल तो दिख रहे थे लेकिन सर्प नहीं। सांप इंसानों के लिए खतरनाक होता है लेकिन यह बात भी सच है कि उसे हम इंसानों से ज्यादा डर लगता है। आस्था, विश्वास की परिभाषा आध्यात्म की सीमा रेखा में सब कुछ मानने पर ही निर्भर है। स्थानीय लोगों के मुताबिक माउंट आबू के उन मंदिरों में जो जंगल के बीचों बीच है वहां इस प्रकार की घटनाएं सावन के महीने में सोमवार को या फिर शिवरात्रि के मौके पर जरूर होती है। पिछले वर्ष इन्हीं जंगलों के एक शिव मंदिर में पंचमुखी (पांच मुंह वाला सांप) दिखा था। ये घटनाएं ये सिद्ध करती है कि शिव (शिवलिंग) और सर्प का गहरा नाता है। यह रिश्ता इंसानी समझ से परे है। क्या मानें क्या ना मानें यह हमारे विवेक पर निर्भर करता है। कुछ लोगों के लिए यह भोले का रूप हो सकता है तो कुछ के लिए कोरा अंधविश्वास। लेकिन यह बात सोचने पर जरूर विवश करती है कि हजारों की भीड़ में एक सांप छह घंटे तक शिवलिंग से कैसे लिपटा रहा। वह भी भोले के जयकारों और मंदिर में बजती घंटियों के बीच।

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