५१ शक्ति पीठों की स्थापना
ब्रह्मा के पुत्र प्रजापति दक्ष की पुत्री सती से भगवान शिव का विवाह हुआ। कुछ समय बाद दक्ष को पूरे ब्रह्माण्ड का अधिपति बना दिया गया। इससे दक्ष में अभिमान आ गया। वह अपने आपको सर्वश्रेष्ठ समझने लगा। एक यज्ञ में भगवान शिव द्वारा खुद को प्रणाम न करने पर दक्ष ने उन्हें अनेक अपशब्द कहे। दक्ष ने शिव को शाप दिया कि उन्हें देव यज्ञ में उनका हिस्सा नहीं मिलेगा।
यह सुनकर नंदी ने भी दक्ष को शाप दिया कि जिस मुंह से वह शिव निंदा कर रहा है वह बकरे का हो जाएगा।
कुछ समय बाद दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया। उसमें सभी देवी-देवताओं को बुलाया गया पर अभिमानी दक्ष ने शिव को उस यज्ञ से बहिष्कृत कर दिया। किसी तरह सती को यह पता चला तो उन्होंने शिव से उस यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी। पहले तो शिव ने उन्हें समझाया पर जब वे नहीं मानीं तो उन्होंने सती को वहां जाने की अनुमति दे दी। सती अपने पिता के घर पहुंची तो दक्ष ने उनसे आंखें फेर लीं। सती यज्ञ में शिव का भाग न देखकर रूष्ट हो गईं और सभी को बुरा-भला कहने लगीं।
यह सुनकर दक्ष ने भी शिव निंदा प्रारम्भ कर दी।यह सुनकर सती को बड़ा दुख हुआ और उन्होंने योगाग्रि से अपने शरीर को भस्म कर दिया। यह देखकर शिव के गणों ने दक्ष यज्ञ पर हमला कर दिया पर देवताओं ने उन्हें वहां से भगा दिया। वे शिव के पास गए और सारी घटना सुना दी। यह सुनकर शिव को बड़ा क्रोध आया। उन्होंने अपनी एक जटा को उखाड़कर जमीन पर मारा जिससे वीरभद्र और महाकाली प्रकट हुए। शिव ने उन दोनों को दक्ष का यज्ञ विध्वंस करने की आज्ञा दी। उन्होंने पल भर में ही दक्ष का यज्ञ विध्वंश कर डाला और वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट कर उसे यज्ञ कु ण्ड में फेंक दिया।
यह देखकर देवताओं में हडकंप मच गया और उन्होंने शिव स्तुति प्रारम्भ कर दी। उनकी स्तुति उन्होंने सभी को जीवनदान दे दिया और दक्ष के शरीर पर बकरे का सिर लगाकर उसे भी जीवित कर दिया। बाद में शिव की अनुमति से दक्ष ने अपना यज्ञ पूरा किया।अपनी प्रिय पत्नी के शव को लेकर शिव पूरे ब्रह्माण्ड में घूमने लगे।
उनके प्रताप से सारी सृष्टि जलने लगी। तब विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के ५1 टुकड़े कर दिए। ये टुकड़े जहां-जहां गिरे वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
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