अपराजिता स्त्रोत्र

   ॐ अपराजितादेवी को नमस्कार ।

विनियोग ॐ अस्या वैष्णव्याः पराया अजिताया महाविद्यायाः वामदेव बृहस्पति-मार्कण्डेया ऋषयः  गायत्रि उष्णिग् अनुष्टुब् बृहति-छन्दांसि, लक्ष्मीनृसिंहो देवता,  क्लीँ श्रीं ह्रीं बीजम्, हुं शक्तिः, सकलकामनासिद्ध्यर्थम् अपराजिताविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः।


(इस वैष्णवी अपराजिता महाविद्या के वामदेव बृहस्पति मार्कण्डेय ऋषि गायत्री उष्णिग् अनुष्टुप् बृहति छन्द, लक्ष्मी नरसिंह देवता क्लीँ बीजम्, हुं शक्ति, सकलकामना सिद्धिके लिये अपराजिता विद्या मन्त्रपाठ में विनियोग।)
नीलकमलदल के समान श्यामल रंग वाली भुजङ्गों के आभरण से युक्त शुद्धस्फटिकके समान उज्ज्वल तथा कोटी चन्द्र के समान मुख वाली, शंख चक्र धारण करने वाली बालचन्द्र मस्तक पर धारण करने वाली, वैष्णवी अपराजिता देवीको नमस्कार करके महान् तपस्वी मार्कण्डेय ऋषि ने इस स्तोत्र का पाठ किया ।3।
मार्कण्डेय ऋषि ने कहा – हे मुनियो सर्वार्थ सिद्धिदेनेवाली असिद्धसाधिका वैष्णवी अपराजिता देवी (के इस स्तोत्र) को सुने। 4। 
ॐ नारायण भगवानको नमस्कार वासुदेव भगवान को नमस्कार, अनन्तभगवान् को नमस्कार जो सहस्र सिर वाले क्षीर सागर में शयन करने वाले, शेष नाग के शैया में शयन करने वाले, गरुड वाहन वाले, अमोघ, अजन्मा, अजित, तथा पीतांबर धारण करने वाले हैं।
ॐ हे वासुदेव, संकर्षण प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, हयग्रिव, मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह, अच्युत, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर, राम, बलाराम, परशुराम, हे वरदायक, आप मेरे लिये वरदायक हों। आपको नमस्कार है।
ॐ असुर दैत्य यक्ष राक्षस भूत प्रेत पिशाच कूष्माण्ड सिद्धयोगिनी डाकिनी शाकिनी शाकिनी स्कन्दग्रह उपग्रह नक्षत्रग्रह तथा अन्य ग्रहों को मारो मारो पाचन करो पाचन करो। मथन करो मथन करो विध्वंस करो विध्वंस करो तोड दो तोड दो चूर्ण करो चूर्ण करो। शङ्ख चक्र वज्र शूल गदा मुसल तथा हल से भस्म करो ।
ॐ हे सहस्र बाहु , हे सहस्र प्रहार आयुध वाले, जय , विजय, अजित, अमित, अपराजित, अप्रतिहत, सहस्रनेत्र, जलाने वाले, प्रज्वालित करने वाले, विश्वरूप, बहुरूप, मधुसूदन, महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्मनाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषिकेश, केशव, सभी असुरोंको उत्सादन करने वाले, हे सभी भूत प्राणियों को वश में करने वाले, हे सभी दुःस्वप्न नाश करने वाले, सभी यन्त्रों को नाश करने वाले, सभी नागों को विमर्दन करने वाले, सर्वदेवों के महादेव, सभी बन्धनों का विमोक्ष करने वाले, सभी अहितों को मर्दन करने वाले, सभी ज्वरों को नाश करने वाले, सभी ग्रहों को निवारण करने वाले, सभी पापों को प्रशमन करने वाले, हे जनार्दन आप को नमस्कार है। ये भगवान् विष्णुकी विद्या सर्वकामना को देने वाली, सर्वसौभाग्य की जननी, सभी भयको नाश करने वाली है। ये विष्णुकी परम वल्लभा सिद्धों के द्वारा पठित है, इसके समान दुष्टनाश करने वाली कोई और विद्या नहीं है। ये वैष्णवी अपराजिता विद्या  साक्षात् सत्वगुण समन्वित सदा पढने योग्य तथा प्रशस्ता है।
ॐ शुक्लवस्त्र धारण करने वाले चन्द्र वर्ण वाले चार भुजा वाले  प्रसन्न मुख वाले भगवान का सर्व विघ्न विनाश करने के लिये ध्यान करें।
हे वत्स अब मैं मेरी अभया अपराजिता के विषय में कहूंगा जो रजोगुणमयी कही गई हैं। ये सभी सत्व वाली सभी मंत्रों वाली स्मृत पूजित जपित कर्मों में योजित सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली हैं। इसको ध्यान पूर्वक सुनो। जो इस अपराजिता परम वैष्णवी अप्रतिहता पढने से सिद्ध होने वाली, स्मरण करने से सिद्ध होने वाली,विद्याको सुने पढें स्मरण करें धारण करें, कीर्तन करें, उसे अग्नि वायु वज्र पथ्थर खड्ग वृष्टि आदि का भय नहीं होता, समुद्र भय, चौर भय, शत्रु भय, शाप भय, भी नहीं होता।  रात्रि में, अन्धकार में, राजकुल से विद्वेष करने वालों से, विष से विषदेने वालों से, वशीकरण आदि टोना टोटका करने वालों से, विद्वेषियों से, उच्चाटन करने वालों से, वध भय बन्धन का भय आदि समस्त भय से रहित हो जाते हैं। इन मन्त्रों के द्वारा कही गई सिद्ध साधकों द्वारा पूजित, अपराजिता शक्ति है। -
 आप को नमस्कार है। हे भय रहित, पापरहित, परिमाण रहित, अमृत तत्त्ववाली, अपरा, अपराजिता, पढने से सिद्ध होने वाली, जप करने से सिद्ध होने वाली, स्मरण करने मात्र से सिद्धि देने वाली, नवासिवाँ स्थान वाली, अकेले रहने वाली, निश्चेता, सुद्रुमा, सुगन्धा, एक अन्न लेने वाली, उमा, ध्रुवा, अरुन्धती, गायत्री, सावित्री, जतवेदा, मानस्तोका, सरस्वति, धरणी, धारण करने वाली, सौदामिनी, अदिती, दिती, विनता, गौरी, गान्धारी, मातङ्गी, कृष्णा, यशोदा, सत्यवादिनी, बह्मवादिनी, काली कपालिनी, कराल  नेत्र वाली, भद्रा, निद्रा, सत्य की रक्षा करने वाली, जलमे स्थल में अन्तिक्ष में सर्वत्र सभी प्रकार के उपद्रवों से रक्षा करो स्वाहा।
जिस स्त्री का गर्भ नष्ट होता है, गिर जाता है, बालक मर जाता है, अथवा वह काक बन्ध्या भी हो तो इस विद्या को धरण करने से गर्भिणी जीववत्सा होगी इसमे कोई संशय नहीं है।12।
इस मंत्र को भोजपत्र में चन्दन से लिख कर धारण करने से सौभग्यवती स्त्रियाँ पुत्रवती हो जाती है इसमे कोई संदेह नहीं। 13।
युद्ध में राजकुल में जुआ में इस मन्त्र के प्रभाव से नित्य जय हो जाता है। भयंकर युद्ध में ये विद्या अस्त्र सस्त्रों से रक्षा करती है। 14।
गुल्म रोग शूल रोग आँख के रोग की व्यथा शीघ्र नाश हो जाती है। ये विद्या शिरोवेदना, ज्वर आदि नाश करने वाली है। इस प्रकार की अभया अपराजिता विद्या कही गई है, इसके स्मरण मात्र से कहीं भी भय नहीं होता। सर्प भय रोग भय तस्करोंका भय , योद्धाओंका भय, राज भय, द्वेष करने वालोंका भय और शत्रु भय नहीं होता है। यक्ष राक्षस वेताल शाकिनी ग्रह अग्नि वायु समुद्र विष इत्यादि से भी भय नहीं होता। क्रिया से शत्रु के द्वारा किये हुये वशीकरण हो, उच्चाटन स्तम्भन हो विद्वेषण हो इन सब का लेश मात्र भी प्रभाव नहीं होता जहाँ माँ अपराजिता का पाठ हो, यहाँ तक की मुख में कण्ठस्थ हो लिखित रूप में हो, चित्र अर्थात् यन्त्र रूप मे लिखा हो तो भी भय बाधायें कुछ नहीं होते। यदि माँ अपराजिता के इस स्तोत्र को तथा चतुर्भुजा स्वरू को हृदय में धारण करेगा तो बाहर भीतर सब प्रकार से भय रहित शान्त हो जाता है। 21।
लाल पुष्प माला धारण की हुई , कोमल कमलकान्ति के समान कान्ती वाली, पाश अङ्कुश , तथा अभय मुद्राओं से समलङ्कृत सुन्दर स्वरूप वाली, साधकों को मन्त्र वर्ण रूप अमृत  को देती हुई, माँ का ध्यान करें। इस विद्या से बढकर न कोई वशीकरण सिद्धि देने वाली विद्या है, न रक्षा करने वाली, न पवित्र। अतः इस विषय में कोई चिन्तन करनेकी आवश्यकता नहीं है। प्रात काल  में साधकों को माँ के कुमारी रूप की पूजन विविध खाद्य सामग्री से अनेक प्रकार के आभरणों से करनी चाहिये, फिर इस मन्त्र का प्रेम पूर्वक पाठकरना चाहिये। कुमारी देवी के प्रसन्न होने से मेरी ( अपराजिता की ) प्रीति बढ जाती है।
 अब मैं उस महान बलशालिनी विद्या को कहूंगा जो सभी दुष्ट दमन करने वाली सभी शत्रु नाश करने वाली, दारिद्र्य दुःख को नाश करने वाली, दुर्भाग्य का नाश करने वाली, रोग नाश करने वाली, भूत प्रेत पिशाच यक्ष गन्धर्व राक्षस का नाश करने वाली है। डाकिनी शाकिनी स्कन्द कुष्माण्ड आदि का नाश करने वाली, महा रौद्र रूपा, महा शक्ति शालिनी, तत्काल विश्वास देने वाली है। ये विद्या अत्यन्त गोपनीय तथा भगवान भूतभावन भोलेनाथ की तो सर्वस्व  है इस लिये गुप्त रखना  चाहिये। ऐसी विद्या तुम्हें कहता हूं सावधान होकर सुनो। 28।
एक दो , चार दिन या आधे महिने एक महिने, दो महिने, तीन महिने, चार महिने, पाँच महिने, छह महिने, तक चलने वाला वात ज्वर पित्त संबन्धी ज्वर अथवा कफ दोष, या सन्निपात हो, या मुहूर्त मात्र रहने  वाला पित्त ज्वर, विष का ज्वर , विषम ज्वर दो दिन वाला , तीन दिन वाला एक दिन वाला अथवा अन्य ज्वर हो वे सब अपराजिता के स्मरण मात्र से शिघ्र नाश हो जाते हैं।
 हृ हन हन कालि शर शर, गौरि धम धम, हे विद्या स्वरूपा हे आले ताले माले गन्धे बन्धे विद्याको पचा दो पचा दो नाश करो नाश करो पाप हरण करो हरण करो संहार करो संहार करो , दुःस्वप्न विनाश करने वाली कमलपुष्प मे स्थित विनायक मात रजनि सन्ध्या स्वरूपा दुन्दुभि नाद करने वाली मानस वेग वाली शङ्खिनी चक्रिणी वज्रिणी शूलिनी अपस्मृत्यु नाश करने वाली विश्वेश्वरी द्रविडि द्राविडी द्रविणी द्राविणी केशव दयिते पशुपति सहिते, दुन्दुभी दमन करने वाली दुर्मद दमन करने वाली, शबरी किराती मातङ्गी  द्रं द्रं ज्रं ज्रं क्रं क्रं तुरु तुरु  द्रं कुरु कुरु।
जो प्रत्यक्ष या परोक्ष में मुझसे जलते हैं  उन सब का दमन करो दमन करो मर्दन करो मर्दन करो, तापित करो तापित करो, छिपा दो छिपा दो , गिरा दो गिरा दो, शोषण करो शोषण करो, उत्सादित करो , उत्सादित करो, हे ब्रह्माणि हे वैष्णवी, हे माहेश्वरी, कौमारी, वाराही, हे नृसिंह संबन्धिनी, ऐन्द्री, चामुण्डा, महालक्ष्मी, हे विनायक संबन्धिनी, हे उपेन्द्र संबन्धिनी, हे अग्नी संबन्धिनी, हे चण्डी, हे नैऋत्य संबन्धिनी, हे वायव्या, हे सौम्या, हे ईशान संबन्धिनी,  हे प्रचण्डविद्या वाली, हे इन्द्र तथा उपेन्द्र की भगिनी आप उपर तथा नीचे से रक्षा करें।
 जया विजया शान्ती स्वस्ति तुष्टि पुष्टि बढाने वाली देवी आप को नमस्कार।
दुष्टकामनाओं को अंकुश करने वाली शुभ कामना देने वाली, सभी कामनाओं का वर देने वाली, सब प्राणियों मे मूझको प्रिय करो प्रिय करो स्वाहा।
आकर्षण करने वाली, आवेशित करने वाली, ज्वाला माला वाली, रमणी, रमाने वाली, पृथ्वी स्वरूपा, धारण करने वाली, तप करने वाली तपाने वाली, मदन रूपा, मद देने वाली, शोषण करने वाली, सम्मोहन करने वाली, नील ध्वज वाली महानील स्वरूपा, महागौरी, महाश्रिया, महाचान्द्री, महासौरी, महा मायूरी, आदित्य रश्मी, जाह् नवी। यमघण्टा किणि किणि ध्वनी वाली, चिन्तामणी, सुगन्ध वाली, सुरभा, सुर असुर उत्पन्न करने वाली, सब प्रकार के कामनाओं की पूर्ति करने वाली, जैसा मेरा मन इच्छित कार्य है (यहाँ अपनी कामना का चिन्तन कर सकते हैं ) वह सम्पन्न हो जाये स्वाहा।
ॐ स्वाहा । ॐ भूः स्वाहा । ॐ भुवः स्वाहा । ॐ स्वः स्वहा । ॐ महः स्वहा । ॐ जनः स्वहा । ॐ तपः स्वाहा । ॐ सत्यं स्वाहा । ॐ भूभःभुवः स्वः स्वाहा ।
जो पाप जहाँ से आया है वहीं लौट चलें स्वाहा इति ॐ ये महा वैष्णवी अपराजिता महा विद्या अमोघ फलदायी है।  ये महाविद्या महा शक्तिशाली है अतः इसे अपराजिता अर्थात् किसी प्रकार के अन्य विद्या से पराजित न होने वाली कहा गया है। इसको स्वयं विष्णु ने निर्माण किया है सदा पाठ करने से सिद्धि प्राप्त होती है।
इस विद्या के समान तीनों लोकों में कोई रक्षा करने में समर्थ दूसरी विद्या नहीं है। ये तमोगुण स्वरूपा साक्षात् रौद्रशक्ति मानी गई है। इस विद्या के प्रभाव से यमराज भी डरकर चरणों में बैठ जाते हैं। इस विद्या को मूलाधार में स्थापित करना चाहिये तथा रात को स्मरण करना चाहिये। नीले मेघ के समान चमकती बिजली जैसे केश वाली चमकते सूर्यके समान तीन नेत्र वाली माँ मेरे प्रत्यक्ष विराजमान हैं। शक्ति त्रिशूल शङ्ख पानपात्र को धारण की हुई, व्याघ्र चर्म धारण  की हुई, किङ्किणियों से सुशोभित मण्डप में विराजमान, गगनमण्डल के भीतरी भाग में धावन करती हुई, तादुकाहित चरण वाली, भयंकर दाँत तथा मुख वाली, कुण्डल युक्त सर्प के आभरणों से सुसज्जित, खुले मुख वाली, जिह्वा को बाहर निकाली हुई, टेढी भौहें वाली, अपने भक्त से शत्रुता करने वालों का रक्त पानपात्र से पिने वाली, क्रूर दृष्टि से देखने से सात प्रकार के धातु शोषण करने वाली, बारंबार त्रिशूल से शत्रु के जिह्वा को कीलित कर देने वाली, पाश से बाँधकर उसे पास में लाने वाली, ऐसी महा शक्तिशाली माँ को आधे रात के समय में ध्यान करें। फिर रात के तीसरे प्रहर में जिस जिसका नाम लेकर जप किया जाये उस उस को वैसा बना देती हैं ये योगिनी माता।
ॐ बला महाबला असिद्धसाधनी स्वाहा इति। इस अमोघ सिद्ध श्रीवैष्णवी विद्या, श्रीमद् अपराजिता को दुःस्वप्न दुरारिष्ट आपद के अवस्था में, किसी कार्यके आरंभ में ध्यान करें इससे विघ्न बाधायें शान्त हो जायेंगी सिद्धि प्राप्ती होगी।
हे जगज्जननी माँ इस पाठ में मेरे द्वारा कहीं विसर्ग, अनुस्वार, अक्षर, पाठ छोडा गया हो तो भी माँ आप से क्षमा प्रार्थना करता हूँ मेरे पाठ का पूर्ण फल मिले, मेरे सङ्कल्प की सिद्धि हो।


हे माँ मैं आप के वास्तविक स्वरूप को नहीं जानता, आप कैसी हैं ये भी नहीं जानता, बस मूझे तो इतना पता है कि आप का रूप जैसा भी हो उसी रूपको मैं पूज रहा हूँ। आप के सभी रूपों को नमस्कार है। ॐ 

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