पंचमुखी हनुमान कवच

प्रात:काल स्नान के बाद करें ये उपाय, हनुमान जी देंगे आपके शत्रुओं को दंड

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हनुमान कवच मंत्र

“संकट तै हनुमान छुडावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै”... हनुमान चालीसा की इस पंक्ति से आशय है कि जो भी भक्त हनुमान जी का नाम जपेगा, उनका ध्यान करेगा, हनुमान जी उसके जीवन के हर संकट को हर लेंगे। उसे कभी किसी पीड़ा का सामना नहीं करना पड़ेगा।

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हनुमान जी करेंगे रक्षा

यह बात विभिन्न शोध द्वारा सिद्ध हो चुकी है कि कलियुग में हनुमत आराधना ही एकमात्र ऐसी आराधना है जो सबसे शीघ्र फल देती है। हनुमान जी के नाम का जाप करने से बड़े से बड़ा संकट दूर हो जाता है।

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हनुमान आराधना है एकमात्र माध्यम

भक्त की परेशानी चाहे कैसी भी हो, शत्रु भय हो या रोग हो या फिर जीवन से जुड़ी कैसी भी दिक्कत को हनुमत आराधना द्वारा हल किया जा सकता है।

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हनुमान महामंत्र

आज हनुमान जी की आराधना का महत्व समझाते हुए हम आपके समक्ष एक ऐसे मंत्र या फिर कहें कि ‘हनुमान महामंत्र’ को प्रस्तुत करने जा रहे हैं जो आपके लिए ‘रक्षा कवच’ का काम करेंगे। इसे शास्त्रों में हनुमान कवच के पाठ के नाम से जाना जाता है।

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पंचमुखी हनुमान कवच

एक पौराणिक कथा के अनुसार ‘हनुमान कवच’ को सच बताया जाता है। कहते हैं कि रावण से युद्ध करते समय स्वयं भगवान राम ने हनुमान कवच का पाठ किया था, जिसके कारण रावण उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा सका।

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पंचमुखी हनुमान कवच

शास्त्रों में हनुमान कवच का पाठ करने के कई लाभ उल्लिखित हैं। सच्चे मन से हनुमान कवच का पाठ करने वाले भक्त को बुरी शक्तियां कभी अपना शिकार नहीं बना सकती हैं। सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियां ऐसे व्यक्ति से दूर रहती हैं।

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पंचमुखी हनुमान कवच

इसके अलावा हनुमान कवच का पाठ करने से व्यक्ति के ऊपर टोना, टोटका, काले जादू का असर भी नहीं होता। यदि कोई ऐसे व्यक्ति पर काला जादू करने का प्रयास भी करे, तो हनुमान जी काला जादू कराने वाले को दंड देते हैं।

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पंचमुखी हनुमान कवच पाठ विधि

चलिए अब आपको बताते हैं कि हनुमान कवच का पाठ किस प्रकार से किया जाता है एवं शास्त्रों में इससे संबंधित कैसे नियम दर्ज हैं।

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पंचमुखी हनुमान कवच पाठ विधि

हनुमान कवच का पाठ करने के लिए सबसे पहले साधक को प्रात: काल स्नान करना चाहिए। इसके बाद आसन लगाकर हनुमान जी की मूर्ति या फिर तस्वीर के सामने बैठ जाएं।

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पंचमुखी हनुमान कवच पाठ विधि

पूजा आरंभ करने से पहले हनुमान जी के प्रभु श्रीराम का आशीर्वाद अवश्य लें। इसके बाद हनुमान जी को चोला, सिंदूर एवं जनेऊ अर्पित करें। अब सच्चे मन से रुद्राक्ष की माला से बताए जा रहे मंत्र का कम से कम एक माला जाप करें – “ॐ श्री हनुमते नम:”

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पंचमुखी हनुमान कवच पाठ विधि

हनुमान जी का यह पाठ 24 घंटे के लिए भक्त के आसपास रक्षा कवच बनाए रखता है। लेकिन यदि जाप की माला बढ़ा दी जाए, यानि कि 1 माला से अधिक जाप किया जाए तो रक्षा कवच 24 घंटे से अधिक समय तक असरदार रहता है।

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पंचमुखी हनुमान कवच पाठ विधि

चलिए अब आपको हनुमान जी के कुछ ऐसे अन्य महामंत्रों के बारे में बताते हैं जो आपकी विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में सक्षम हैं। हनुमान कवच पाठ की तरह ही यदि आप इन मंत्रों का नियमित जाप करेंगे, तो जल्द ही वह संकट दूर हो जाएगा।

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कर्ज मुक्ति के लिए हनुमान मंत्र

“ॐ नमो हनुमते आवेशाय आवेशाय स्वाहा” इस मंत्र का प्रतिदिन कम से कम एक माला जाप अवश्य करें। 45 दिनों के भीतर आपको परिणाम मिल जाएंगे।

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मनोकामना पूर्ति के लिए हनुमान मंत्र

“महाबलाय वीराय चिरंजिवीन उद्दते, हारिणे वज्र देहाय चोलंग्घितमहाव्यये” कैसी भी आपकी मनोकामना हो, इस मंत्र का जाप उसे पूर्ण कराने में सक्षम है।

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संकट दू करने के लिए हनुमान मंत्र

“ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्व-शत्रु-संहारणाय, सर्व-रोग-हराय, सर्व-वशीकरणाय, राम-दूताय स्वाहा” यदि आपको जीवन में किसी संकट का आभास हो तो हनुमान जी के इस मंत्र का जाप करना फलदायी होगा। यह मंत्र शत्रुओं से रक्षा भी करेगा एवं साथ ही उनसे विजय पाने के लिए भी इसी मंत्र का जाप करें।

हनुमान बल और पराक्रम के प्रतीक हैं। इतनी वीरता के बावजूद उनमें अहं लेश मात्र भी नहीं है। तभी वो अपने ईष्ट श्रीराम के सबसे प्रिय भक्तों में हैं। श्रीराम भी हर विपत्ति में हनुमान को ही याद करते हैं। ऐसे वीर, पराक्रमी हनुमान की साधना मात्र से ही समस्त बाधाएँ दूर हो जाती हैं। अनेक ऋषियों मुनियों ने पंचमुखी हनुमान साधना कर अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त किया है। रुद्र संहिता और पंचमुखी हनुमान धारा के अनुसार पंचमुखी हनुमान साधना से असंभव कार्य भी सहजता से संपन्न हो जाते हैं। इस साधना से समस्त बाधाएँ दूर हो जाती हैं।

पंचमुखी हनुमान साधना हनुमान जयंती या किसी भी मंगलवार को रात्रि में की जा सकती है। पूजा इस विधि से की जानी चाहिए-
• दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके बैंठें

• अपने सामने लाल कपड़े में पंचमुखी बजरंग यंत्र स्थापित करें

• यंत्र का चमेली का इत्र, सिंदूर, लाल फूल, और फल आदि से पूजन करें

• तेल का दीपक और सुगंधित पुष्प प्रज्जवलित करें

• मूंगे की माला से 21 माला ओम् हुं हुं हसौं हस्फौं हुं हुं हनुमते नमः मंत्र का जाप करें

• यह जाप नियमित रूप से आठ दिन तक करते रहें

• अंतिम दिवस इसी मंत्र की 108 आहुतियाँ अग्नि में देकर अनुष्ठान पूर्ण करें।

पंचमुखी हनुमान साधना में ब्रम्हचर्य व्रत का पालन करना चाहिए। इसकी अलावा नियम से भूमि पर शयन करें और जो प्रसाद चढ़ाएं उसे गाय के घी में शुद्धापूर्वक बनाएँ। पंचमुखी हनुमान साधना विधान से पूर्ण करने पर बड़े-बडे काम पूरे हो जाते हैं और समस्त बाधाएँ दूर हो जाती हैं।

श्रीगणेशाय नमः । ॐ श्री पञ्चवदनायाञ्जनेयाय नमः । ॐ अस्य श्री पञ्चमुखहनुमन्मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः । गायत्रीछन्दः । पञ्चमुखविराट् हनुमान्देवता । ह्रीं बीजं । श्रीं शक्तिः । क्रौं कीलकं । क्रूं कवचं । क्रैं अस्त्राय फट् । इति दिग्बन्धः । श्री गरुड उवाच । अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि श्रृणुसर्वाङ्गसुन्दरि । यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमतः प्रियम् ॥ १॥ पञ्चवक्त्रं महाभीमं त्रिपञ्चनयनैर्युतम् । बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम् ॥ २॥ पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम् । दन्ष्ट्राकरालवदनं भृकुटीकुटिलेक्षणम् ॥ ३॥ अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम् । अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम् ॥ ४॥ पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम् ॥ सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम् ॥ ५॥ उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोपमम् । पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम् ॥ ६॥ ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम् । येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यं महासुरम् ॥ ७॥ जघान शरणं तत्स्यात्सर्वशत्रुहरं परम् । ध्यात्वा पञ्चमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम् ॥ ८॥ खड्गं त्रिशूलं खट्वाङ्गं पाशमङ्कुशपर्वतम् । मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुम् ॥ ९॥ भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रां दशभिर्मुनिपुङ्गवम् । एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम् ॥ १०॥ प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरणभूषितम् । दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् ॥ ११॥ सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतोमुखम् । पञ्चास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं शशाङ्कशिखरं कपिराजवर्यम । पीताम्बरादिमुकुटैरूपशोभिताङ्गं पिङ्गाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि ॥ १२॥ मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुहरं परम् । शत्रु संहर मां रक्ष श्रीमन्नापदमुद्धर ॥ १३॥ ॐ हरिमर्कट मर्कट मन्त्रमिदं परिलिख्यति लिख्यति वामतले । यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं यदि मुञ्चति मुञ्चति वामलता ॥ १४॥ ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा । ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा । ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा । ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पश्चिममुखाय गरुडाननाय सकलविषहराय स्वाहा । ॐ नमो भगवते पञ्चवदनायोत्तरमुखायादिवराहाय सकलसम्पत्कराय स्वाहा । ॐ नमो भगवते पञ्चवदनायोर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशङ्कराय स्वाहा । ॐ अस्य श्री पञ्चमुखहनुमन्मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः । अनुष्टुप्छन्दः । पञ्चमुखवीरहनुमान् देवता । हनुमानिति बीजम् । वायुपुत्र इति शक्तिः । अञ्जनीसुत इति कीलकम् । श्रीरामदूतहनुमत्प्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । इति ऋष्यादिकं विन्यसेत् । ॐ अञ्जनीसुताय अङ्गुष्ठाभ्यां नमः । ॐ रुद्रमूर्तये तर्जनीभ्यां नमः । ॐ वायुपुत्राय मध्यमाभ्यां नमः । ॐ अग्निगर्भाय अनामिकाभ्यां नमः । ॐ रामदूताय कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ पञ्चमुखहनुमते करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । इति करन्यासः । ॐ अञ्जनीसुताय हृदयाय नमः । ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा । ॐ वायुपुत्राय शिखायै वषट् । ॐ अग्निगर्भाय कवचाय हुम् । ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ पञ्चमुखहनुमते अस्त्राय फट् । पञ्चमुखहनुमते स्वाहा । इति दिग्बन्धः । अथ ध्यानम् । वन्दे वानरनारसिंहखगराट्क्रोडाश्ववक्त्रान्वितं दिव्यालङ्करणं त्रिपञ्चनयनं देदीप्यमानं रुचा । हस्ताब्जैरसिखेटपुस्तकसुधाकुम्भाङ्कुशाद्रिं हलं खट्वाङ्गं फणिभूरुहं दशभुजं सर्वारिवीरापहम् । अथ मन्त्रः । ॐ श्रीरामदूतायाञ्जनेयाय वायुपुत्राय महाबलपराक्रमाय सीतादुःखनिवारणाय लङ्कादहनकारणाय महाबलप्रचण्डाय फाल्गुनसखाय कोलाहलसकलब्रह्माण्डविश्वरूपाय सप्तसमुद्रनिर्लङ्घनाय पिङ्गलनयनायामितविक्रमाय सूर्यबिम्बफलसेवनाय दुष्टनिवारणाय दृष्टिनिरालङ्कृताय सञ्जीविनीसञ्जीविताङ्गदलक्ष्मणमहाकपिसैन्यप्राणदाय दशकण्ठविध्वंसनाय रामेष्टाय महाफाल्गुनसखाय सीतासहित- रामवरप्रदाय षट्प्रयोगागमपञ्चमुखवीरहनुमन्मन्त्रजपे विनियोगः । ॐ हरिमर्कटमर्कटाय बंबंबंबंबं वौषट् स्वाहा । ॐ हरिमर्कटमर्कटाय फंफंफंफंफं फट् स्वाहा । ॐ हरिमर्कटमर्कटाय खेंखेंखेंखेंखें मारणाय स्वाहा । ॐ हरिमर्कटमर्कटाय लुंलुंलुंलुंलुं आकर्षितसकलसम्पत्कराय स्वाहा । ॐ हरिमर्कटमर्कटाय धंधंधंधंधं शत्रुस्तम्भनाय स्वाहा । ॐ टंटंटंटंटं कूर्ममूर्तये पञ्चमुखवीरहनुमते परयन्त्रपरतन्त्रोच्चाटनाय स्वाहा । ॐ कंखंगंघंङं चंछंजंझंञं टंठंडंढंणं तंथंदंधंनं पंफंबंभंमं यंरंलंवं शंषंसंहं ळंक्षं स्वाहा । इति दिग्बन्धः । ॐ पूर्वकपिमुखाय पञ्चमुखहनुमते टंटंटंटंटं सकलशत्रुसंहरणाय स्वाहा । ॐ दक्षिणमुखाय पञ्चमुखहनुमते करालवदनाय नरसिंहाय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः सकलभूतप्रेतदमनाय स्वाहा । ॐ पश्चिममुखाय गरुडाननाय पञ्चमुखहनुमते मंमंमंमंमं सकलविषहराय स्वाहा । ॐ उत्तरमुखायादिवराहाय लंलंलंलंलं नृसिंहाय नीलकण्ठमूर्तये पञ्चमुखहनुमते स्वाहा । ॐ उर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रुंरुंरुंरुंरुं रुद्रमूर्तये सकलप्रयोजननिर्वाहकाय स्वाहा । ॐ अञ्जनीसुताय वायुपुत्राय महाबलाय सीताशोकनिवारणाय श्रीरामचन्द्रकृपापादुकाय महावीर्यप्रमथनाय ब्रह्माण्डनाथाय कामदाय पञ्चमुखवीरहनुमते स्वाहा । भूतप्रेतपिशाचब्रह्मराक्षसशाकिनीडाकिन्यन्तरिक्षग्रह- परयन्त्रपरतन्त्रोच्चटनाय स्वाहा । सकलप्रयोजननिर्वाहकाय पञ्चमुखवीरहनुमते श्रीरामचन्द्रवरप्रसादाय जंजंजंजंजं स्वाहा । इदं कवचं पठित्वा तु महाकवचं पठेन्नरः । एकवारं जपेत्स्तोत्रं सर्वशत्रुनिवारणम् ॥ १५॥ द्विवारं तु पठेन्नित्यं पुत्रपौत्रप्रवर्धनम् । त्रिवारं च पठेन्नित्यं सर्वसम्पत्करं शुभम् ॥ १६॥ चतुर्वारं पठेन्नित्यं सर्वरोगनिवारणम् । पञ्चवारं पठेन्नित्यं सर्वलोकवशङ्करम् ॥ १७॥ षड्वारं च पठेन्नित्यं सर्वदेववशङ्करम् । सप्तवारं पठेन्नित्यं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥ १८॥ अष्टवारं पठेन्नित्यमिष्टकामार्थसिद्धिदम् । नववारं पठेन्नित्यं राजभोगमवाप्नुयात् ॥ १९॥ दशवारं पठेन्नित्यं त्रैलोक्यज्ञानदर्शनम् । रुद्रावृत्तिं पठेन्नित्यं सर्वसिद्धिर्भवेद्ध्रुवम् ॥ २०॥ निर्बलो रोगयुक्तश्च महाव्याध्यादिपीडितः । कवचस्मरणेनैव महाबलमवाप्नुयात् ॥ २१॥ ॥ इति श्रीसुदर्शनसंहितायां श्रीरामचन्द्रसीताप्रोक्तं श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचं सम्पूर्णम् ॥ 

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