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राम चरित मानस बालकाण्ड दोहा संख्या 81 से दोहा संख्या 120घ तक

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दोहा : *तुम्ह माया भगवान सिव सकल जगत पितु मातु। नाइ चरन सिर मुनि चले पुनि पुनि हरषत गातु॥81॥ भावार्थ:- आप माया हैं और शिवजी भगवान हैं। आप दोनों समस्त जगत के माता-पिता हैं। (यह कहकर) मुनि पार्वतीजी के चरणों में सिर नवाकर चल दिए। उनके शरीर बार-बार पुलकित हो रहे थे॥81॥   चौपाई : *जाइ मुनिन्ह हिमवंतु पठाए। करि बिनती गिरजहिं गृह ल्याए॥ बहुरि सप्तरिषि सिव पहिं जाई। कथा उमा कै सकल सुनाई॥1॥ भावार्थ:- मुनियों ने जाकर हिमवान्‌ को पार्वतीजी के पास भेजा और वे विनती करके उनको घर ले आए, फिर सप्तर्षियों ने शिवजी के पास जाकर उनको पार्वतीजी की सारी कथा सुनाई॥1॥   *भए मगन सिव सुनत सनेहा। हरषि सप्तरिषि गवने गेहा॥ मनु थिर करि तब संभु सुजाना। लगे करन रघुनायक ध्याना॥2॥ भावार्थ:- पार्वतीजी का प्रेम सुनते ही शिवजी आनन्दमग्न हो गए। सप्तर्षि प्रसन्न होकर अपने घर (ब्रह्मलोक) को चले गए। तब सुजान शिवजी मन को स्थिर करके श्री रघुनाथजी का ध्यान करने लगे॥2॥   *तारकु असुर भयउ तेहि काला। भुज प्रताप बल तेज बिसाला॥ तेहिं सब लोक लोकपति जीते। भए देव सुख संपति रीते॥3॥ भावार्थ:- उसी समय तारक नाम का असुर हुआ, जिसकी